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Patna: ज्ञानपीठ से छपा यह उपन्यास Bhumika Dwivedi जी को स्त्री विमर्श की क़द्दावर लेखिकाओं की पंक्ति में शुमार कराता है।लेखिका की अन्य रचनाओं को यदि आप पढ़ें तो आपको लगेगा कि इनकी कथानकों की स्त्री किरदार संघर्ष करते हुये अपने ध्येय को प्राप्त करती है।

“किराये का मकान” एक ऐसी अभिव्यक्ति है जिसमें आप शहरी अभिजात्य वर्ग से रु-ब-रु तो होते ही हैं उनके दम्भ से भी,आभिजात्यिक चोला के नीचे की सत्यता और एक रोज़ी-रोटी के अभाव वाली लड़की की बहादुरी,साहस और स्वाभिमान की कहानी है।एक माँ की की कहानी जो अपने घर से निर्वासित की जा चुकी है,अपने दो बच्चों को किस प्रकार सीमित संसाधनों में भी पढ़ाती-लिखाती है और अपने स्वाभिमान को ज़िंदा रखे हुये है।उस माँ के स्वाभिमान की इज़्ज़त सभी करते हैं चाहे वह विद्यालय की मालकिन हो या मकान मालकिन।

लेखिका वैसे तो सामान्य पाठक तक पहुँचने में सफल है ये इनकी भाषा की सरलता के प्रवाह से ज्ञात होता है,और किसी रचनाकार का ध्येय यही होना चाहिये;पर रुख़सती अध्याय के शुरूआत में जो दार्शनिक बातें हैं वो लेखिका के दर्शन के ज्ञान की झलक है। उपन्यास की भूमिका में ईशवास्योपनिषद का प्रथम मंत्र हो या यत्र-तत्र शेरों-शायरी का प्रयोग ये सब कलम की प्रौढ़ता और गहन अध्ययनशीलता को सिद्ध करता है।

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