पीएम मोदी से मिलते नवीन पटनायक
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पटना डेस्कः मुख्यमंत्री नीतीश कुमार 2024 लोकसभा चुनाव को लेकर लगातार विपक्षी दलों के नेताओं से मिल रहे है। जहां विपक्षी एकता की मुहिम को लेकर 6 राज्यों में घूम चुके हैं। लेकिन 3 राज्यों को छोड़ दें तो बाकी के तीन राज्यों में उन्हें पूर्ण सहमति नहीं मिली है। दरअसल 9 मई को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ओडिशा के सीएम नवीन पटनायक से मिलने पहुंचे थे। मुलाकात के दौरान पटनायक नीतीश से करीबी दिखा रहे थे, लेकिन ठीक 2 दिन बाद पटनायक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिले और कहा मुझे नहीं लगता फिलहाल तीसरे मोर्चे की कोई संभावना है।

बता दें 2019 के आम चुनाव में NDA को 352 सीटें मिली थी। इनमें से अकेले बीजेपी ने 303 सीटों पर जीत हासिल की। हालांकि, 2022 में जदयू एक बार फिर NDA से अलग हो गई। जदयू को पिछले चुनाव में 16 लोकसभा सीट जीत मिली थी। वहीं, पूरा विपक्ष महज 92 सीटों पर सिमट गया, जिसमें कांग्रेस पूरे देश में सिर्फ 52 सीट ही जीत पाई।

दिल्ली में कुल 7 लोकसभा सीट है। यहां आम आदमी पार्टी और कांग्रेस का एक भी सांसद नहीं है। राजधानी की सभी सीटों पर भाजपा का वर्चस्व है। सातों सीट भाजपा की झोली में है। नीचे दिए ग्राफिक्स से समझिए कि दिल्ली में लोकसभा सीटों की क्या है स्थिति।

दूसरी तरफ नीतीश कुमार का मानना है कि विपक्ष देश में भाजपा का मुकाबला तभी कर सकती है जब कांग्रेस उनके साथ रहे। यही वजह है कि उन्होंने विपक्षी एकता की मुहिम की शुरुआत दिल्ली में कांग्रेस नेताओं के साथ मिलकर की। बिहार के मुख्यमंत्री ने दिल्ली में कांग्रेस प्रेसिडेंट मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी से मिले और विपक्षी एकता बनाने पर सहमति ली। इस मुलाकात के बाद सीएम नीतीश दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से भी मिले। नीतीश से मुलाकात के बाद केजरीवाल ने कहा कि 1 दिन के मुलाकात से सारी रणनीति नहीं बन जाती है। उसके लिए बार-बार मिलना होता है।

ओडिशा के CM नवीन पटनायक ने PM नरेंद्र मोदी से मिलते ही बोले-देश में तीसरे मोर्चे की संभावना ही नहीं 1
सीएम नीतीश और नवीन पटनायक

वहीं पश्चिम बंगाल में 2019 के लोकसभा चुनाव में ममता बनर्जी की पार्टी TMC ने बेहतर प्रदर्शन किया था। हालांकि, भाजपा ने भी TMC को टक्कर जरूर दी थी। TMC ने 22 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल की थी। वहीं, बीजेपी ने बंगाल में 2 सीट से छलांग लगाकर 18 लोकसभा सीटें जीती। जबकि कांग्रेस को केवल 2 सीटें ही मिली। वहीं, लेफ्ट पार्टियों का सुपड़ा साफ हो गया।

दिल्ली के बाद सीएम नीतीश 25 अप्रैल को विपक्षी एकता को मजबूत करने के लिए पश्चिम बंगाल पहुंच गए। वहां उन्होंने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से मुलाकात की। हालांकि, इस मुलाकात में ममता बनर्जी ने विपक्षी एकता को लेकर किसी तरह की दिलचस्पी नहीं दिखाई। हालांकि, उन्होंने नीतीश को आश्वासन जरूर दिया कि समय आने पर सब कुछ तय किया जाएगा।

यूपी में लोकसभा 2019 के चुनाव में बीजपी ने 62 सीटों पर जीत हासिल की थी। वहीं, अखिलेश यादव की पार्टी समाजवादी पार्टी को महज 5 सीटें आई थी। उस चुनाव में अखिलेश यादव ने BSP की मायावती के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था। जिसमें मायावती को सिर्फ 10 सीटें ही मिली थी। दूसरी तरफ कांग्रेस की हालत ऐसी थी कि केवल सोनिया गांधी की बरेली सीट को छोड़कर एक भी सीट उनके खाते में नहीं आई। पार्टी की हालत ऐसी हो गई की राहुल गांधी ने अपनी परंपरागत सीट अमेठी को भी गंवा दिया।

25 अप्रैल को ही बंगाल के बाद नीतीश कुमार लखनऊ पहुंचे। वहां उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से मुलाकात की। अखिलेश यादव ने खुलकर नीतीश कुमार का स्वागत भी किया और समर्थन देने की बात भी कही। लेकिन, उत्तर प्रदेश की राजनीति में कभी अखिलेश यादव का भी वर्चस्व रहा है। वह अपनी पुरानी जमीन को वापस पाना चाहते हैं। ऐसे में अखिलेश के पास कांग्रेस के लिए कितना स्पेस होगा यह बाद में तय होगा।

पिछले कई सालों से बीजेपी ओडिशा में अपनी जमीन तलाश रही है। 2019 में पार्टी सफल भी रही। पिछले लोकसभा चुनाव में ओडिशा की 21 लोकसभा सीट में से 12 सीटों पर भाजपा ने कब्जा जमा लिया। नवीन पटनायक की पार्टी बीजेडी को महज 8 सीट मिले। जबकि कांग्रेस को सिर्फ एक सीट से संतोष करना पड़ा।

कभी बीजेपी से अपनी राजनीति की शुरुआत करने वाले ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक फिलहाल भाजपा से अलग हैं। उनकी राजनीतिक छवि ज्यादातर न्यूट्रल रहती है। मतलब वे किसी तरह की गठबंधन में विश्वास नहीं करते। वह जितना पक्ष में रहते हैं उतना ही विपक्ष में रहते हैं।

यही वजह रही कि नीतीश कुमार जब उनके पास पहुंचे, तो मुलाकात के बाद उन्होंने कह दिया कि पटनायक से विपक्षी एकता पर कोई बात नहीं हुई। तब पटनायक ने भी इस मुलाकात को नॉन पॉलिटिकल बता दिया। ऐसे में माना जा रहा कि बिहार के मुख्यमंत्री को ओडिशा में विपक्षी एकता पर पूर्ण सहमति मिलती नहीं दिख रही है। इसका दूसरा कारण ये भी है कि नवीन पटनायक नरेंद्र मोदी के भी उतने ही दोस्त हैं जितने नीतीश कुमार के हैं।

झारखंड में JMM की सरकार है। भले ही पार्टी की विधानसभा में स्थिति मजबूत हो, लेकिन लोकसभा में बीजेपी की स्थिति काफी मजबूत है। इसका कारण ये है कि 2019 में 14 लोकसभा सीटों में JMM, कांग्रेस को सिर्फ एक सीट ही मिली थी। जबकि 12 सीटों पर NDA ने कब्जा जमाया था। जिसमें 11 सीट बीजेपी जीती थी और एक सीट आजसू के हिस्से आई थी।

लोकसभा में शानदार जीत के बाद उसी साल विधानसभा चुनाव में दोनों पार्टियों के बीच मुख्यमंत्री को लेकर खटास बढ़ गई। हालात ऐसे हो गए कि उद्धव को एनसीपी और कांग्रेस का साथ लेना पड़ा। एनसीपी और कांग्रेस के समर्थन से ही उद्धव महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बने।

ओडिशा के CM नवीन पटनायक ने PM नरेंद्र मोदी से मिलते ही बोले-देश में तीसरे मोर्चे की संभावना ही नहीं 2
सीएम नीतीश कुमार और झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन

नीतीश कुमार बुधवार को जब झारखंड पहुंचे तो हेमंत सोरेन ने उनका भव्य स्वागत किया। उन्हें गार्ड ऑफ ऑनर से सम्मानित किया गया। इसके बाद नीतीश ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से मुलाकात की। सोरेन ने भी विपक्षी एकता को भरपूर समर्थन देने की घोषणा की। पड़ोसी राज्य होने की वजह से नीतीश कुमार को झारखंड से काफी उम्मीदें हैं, क्योंकि आरजेडी झारखंड सरकार में शामिल है। ऐसे में झारखंड को साधना नीतीश कुमार के लिए काफी आसान है।

नीतीश कुमार बुधवार को जब झारखंड पहुंचे तो हेमंत सोरेन ने उनका भव्य स्वागत किया। उन्हें गार्ड ऑफ ऑनर से सम्मानित किया गया। इसके बाद नीतीश ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से मुलाकात की। सोरेन ने भी विपक्षी एकता को भरपूर समर्थन देने की घोषणा की। पड़ोसी राज्य होने की वजह से नीतीश कुमार को झारखंड से काफी उम्मीदें हैं, क्योंकि आरजेडी झारखंड सरकार में शामिल है। ऐसे में झारखंड को साधना नीतीश कुमार के लिए काफी आसान है।

पिछले लोकसभा चुनाव में उद्धव ठाकरे की शिवसेना ने बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था। जिसमें कुल 48 सीटों में दोनों दलों ने मिलकर 41 सीटों पर कब्जा किया। इसमें भाजपा ने 23 सीट और शिवसेना ने 18 सीट पर जीत हासिल की थी। जबकि, एनसीपी को महज 4 सीटें आई थी। महाराष्ट्र के अंदर AIMIM ने 1 सीट हासिल किया था और निर्दलीय ने 1 सीट जीती थी। कांग्रेस को भी एक ही सी मिली थी।

झारखंड के बाद महाराष्ट्र ऐसा राज्य है जहां नीतीश की विपक्षी एकता की मुहिम को मजबूती मिल सकती है। इसे लेकर बिहार के मुख्यमंत्री गुरुवार को मुंबई में उद्धव ठाकरे और एनसीपी प्रमुख शरद पवार से मुलाकात की। दोनों ही नेताओं ने नीतीश कुमार को अपना समर्थन देने की बात कही।

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