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पटना डेस्कः एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी दो दिवसीय बिहार के दौरे पर हैं। उनका यह दौरा 19 मार्च तक सीमांचल के जिलों में होगा। बताते चलें कि यह इलाका राज्य का सर्वाधिक मुस्लिम बहुल क्षेत्र है और ऐसे में राज्य के अल्पसंख्यक वोटों के हिसाब से असदुद्दीन ओवैसी के दौरे से कई राजनीतिक दलों की मुसीबत बढ़ा सकते हैं। अपने दौरे में मुस्लिम समुदाय से जुड़े मुद्दे पर और सीमांचल से जुडी समस्याओं को रख सकते हैं. साथ ही अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव और उसके बाद विधानसभा चुनाव 2025 के पूर्व राज्य में अपनी पार्टी की जड़ों को मजबूत करने के लिए अहम रणनीति बना सकते हैं। 

वहीं एआईएमआईएम के प्रदेश अध्यक्ष अख्तरुल इमान ने कहा की केंद्र और राज्य सरकार ने सीमांचल को उपेक्षा का शिकार बना दिया है। महागठबंधन पर वार करते हुए कहा कि ए.आई.एम.आई.एम के चार विधायकों को तोड़कर राजद बड़ी पार्टी बनी है। सीमांचल के मैंडेट से महागठबंधन की सरकार बनी है। लेकिन वादे के अनुसार इस इलाके के लिए महागठबंधन की सरकार ने कुछ भी नहीं किया है। इसके अलावा केंद्र सरकार भी इस इलाके के लिए ध्यान नहीं देती हैं। अमित शाह जैसा जिम्मेवार व्यक्ति भी सीमांचल में आकर इस क्षेत्र के बदहाली पर एक शब्द नहीं बोला। उन्होंने कहा की इस क्षेत्र के विकास की आवाज बुलंद करने के लिए 18 और 19 मार्च को ए.आई.एम.आई.एम सुप्रीमो असदुद्दीन ओवैसी सीमांचल के दौरा करेंगे। 

असदुद्दीन ओवैसी’अधिकार पदयात्रा’ के तहत राज्य के सीमांचल के जिलो का दौरा करने आ रहे हैं. ओवैसी जिस इलाके में आ रहे हैं उसकी क्षेत्रीय पहचान अल्पसंख्यक बहुल इलाके के रूप में है. यानी पूर्णिया, किशनगंज, कटिहार, अररिया वे जिले हैं जहाँ लोकसभा की 4 और विधानसभा की करीब 24 सीटें हैं. ओवैसी की पहचान मुस्लिम हितों के लिए देशभर में आवाज उठाने वाले नेता की रही है. अब उनका सीमांचल के मुस्लिम बहुल इलाके में आने का कार्यक्रम भी बिहार में मुसलमानों के बीच AIMIM की पैठ बढ़ाने की पहल के रूप में देखा जा रहा है. लेकिन, उनके इस दौरे में सबसे ज्यादा चिंता बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और राजद सुप्रीमो लालू यादव को होगी. 

असदुद्दीन ओवैसी ने वर्ष 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में भी राजद और जदयू को झटका दिया था. उस चुनाव में AIMIM को बिहार की पांच सीटों पर जीत मिली थी जिनमें अमौर, कोचाधाम, जोकीहाट, बायसी और बहादुरगंज सीट शामिल रही. ये सीटें सीमांचल के इलाके की थी. इसके पहले AIMIM को बिहार में पहली सफलता 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद किशनगंज सीट पर हुए चुनाव में मिली थी. इतना ही नहीं 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में भले ही ओवैसी की पार्टी 5 सीटें जीती हो लेकिन इसके अलावे करीब एक दर्जन ऐसी सीट रही जहाँ AIMIM उम्मीदवारों ने जीत-हार का आंकड़ा बदल दिया. नतीजा रहा कि जदयू से एक भी मुस्लिम नहीं जीत सका. वहीं राजद के 8 मुस्लिम चेहरे जीते जो 2015 चुनाव की तुलना में 3 कम रहा. इतना ही नहीं विधानसभा में मुस्लिम विधायकों की संख्या भी घटकर 19 रह गई. 

माना गया कि इन सबके पीछे बड़ा कारण बिहार में ओवैसी की पार्टी का तेजी से मुस्लिम समुदाय में पैठ बढ़ाना रहा. वहीं पिछले साल 2022 में हुए गोपालगंज विधानसभा उपचुनाव में राजद को भाजपा से 1794 वोटों से हार का सामना करना पड़ा था. जबकि गोपालगंज में एआईएमआईएम के अब्दुल सलाम को करीब 12 हजार वोट आए थे. माना जा रहा था कि राजद की हार के पीछे बड़ा कारण एआईएमआईएम  उम्मीदवार को आए 12 हजार से ज्यादा वोट थे. यहां तक कि तेजस्वी यादव ने भी 1794 वोटों से हार के बाद इसके लिए ओवैसी की पार्टी को बड़ा कारण माना था. इन आंकड़ों से माना गया कि ओवैसी बिहार में तेजी से मुस्लिम समुदाय के बीच पकड़ मजबूत कर रहे हैं।

अब उनका 18 और 19 मार्च को ‘अधिकार पदयात्रा’ करना अगले लोकसभा चुनाव के पहले राजद और जदयू की चिंताओं को बढ़ाने वाला होगा. ओवैसी अपनी यात्रा के दौरान पूर्णिया के बैसी-अमोर और किशनगंज जिले के कुछ स्थानों पर पहुंचेंगे. वे वहां सीमांचल के मुद्दें और मुसलमानों के हितों की बातें उठाकर अगले चुनाव के पहले AIMIM को मजबूत करने की रणनीति को आगे बढ़ा सकते हैं. ऐसे उनके दौरे से सीमांचल में राजद और जदयू को बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ सकता है।

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