भारत अपना 79वां स्वतंत्रता दिवस मनाने की पूरे तैयारी में हैं। 15 अगस्त के मौके पर पूरे देश में सुबह तिरंगा फहराया जाएगा, लेकिन, बिहार के पूर्णिया में यह परंपरा अलग है। यहां 15 अगस्त की जगह 14 अगस्त की आधी रात को ही तिरंगा फहराया जाता है। भारत-पाकिस्तान के बाघा बॉर्डर की तरह, पूर्णिया के झंडा चौक पर भी रात 12 बजे झंडा फहराकर आजादी का जश्न मनाया जाता है। इसके पीछे आजादी से जुड़ी एक दिलचस्प कहानी है।
स्वतंत्रता दिवस से ठीक पहले की रात की लोग हर दिन देश की आजादी का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे। आखिर वो पल आ ही गया जब आजादी की घोषणा होने वाली थी। 14 अगस्त 1947 को पूर्णिया के लोग आजादी की खबर सुनने के लिए बेताब थे। झंडा चौक स्थित मिश्रा रेडियो की दुकान पर पूरे दिन भीड़ लगी रही, लेकिन काफी देर तक रेडियो पर कोई खबर नहीं आई। लोग निराश होकर घर लौट गए, मगर मिश्रा रेडियो की दुकान पूरी रात खुली रही।
खबरों की माने तो रात करीब 11 बजे, पूर्णिया के झंडा चौक स्थित मिश्रा रेडियो की दुकान पर रामेश्वर प्रसाद सिंह, रामजतन साह, कमल देव नारायण सिन्हा, गणेश चंद्र दास और उनके साथी पहुंचे। सबने मिलकर रेडियो चालू कराया। रेडियो खुलते ही माउंटबेटन की आवाज सुनाई दी, जिसमें उन्होंने घोषणा की कि देश आजाद हो गया है। यह सुनते ही वहां मौजूद लोग खुशी से झूम उठे और एक-दूसरे को बधाई देने लगे।
इसी तरह के घोषणा के अनुसार लोगों ने तय किया कि पूर्णिया के उस चौक पर तिरंगा फहराया जाएगा। तुरंत बांस, रस्सी और झंडा मंगवाया गया। 14 अगस्त 1947 की रात 12:01 बजे, स्वतंत्रता सेनानी रामेश्वर प्रसाद सिंह ने वहां तिरंगा फहराया। उसी समय इस चौक का नाम “झंडा चौक” रखा गया। खास बात यह है कि देश में बाघा बॉर्डर पर भी रात में ही झंडा फहराने की परंपरा है।
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