भागलपुर में गंगा में विलीन 70 मकान, तबाह हुआ गांव

By Team Live Bihar 24 Views
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भागलपुर: भागलपुर जिले में बाढ़ की वजह से उजड़ा पूरा गांव। गंगा में समा गए कई मकान, सरकार से मुआवजे की आस पर टिकी निगाहें। ऐसा ही हाल जिले के सबौर प्रखंड के मसाढू गांव का है। जो अब गंगा नदी की गोद में ही समा गई है। इस गांव में लाखों की लागत से बनी सड़क, पानी टंकी, सामुदायिक चौपाल, किसान भवन, मन्दिर सभी कटाव की जद में आ गए। 2 सितम्बर को शुरू हुए कटाव में सबसे पहले गांव में बने 14 लाख के जल मीनार ने जल समाधि ली थी।

उसके बाद एक एक कर तीन दर्जन से अधिक मकान गंगा में समा गए। यहां के लोगों को रहने के कोई ठिकाना नहीं है। वो तत्काल ऊंचे स्थानों पर रह रहे हैं। सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि इतनी परेशानियों के में भी कोई इनकी सुध नहीं ले रहा है। पीड़ितों की सहायता के लिए की गई व्यवस्था के नाम पर कम्युनिटी किचन जरूर मिला लेकिन अब तक मुआवजा को लेकर किसी भी तरह की सुगबुगाहट नहीं दिख रही है।

स्थानीय आर्यन ने बताया कि गंगा के रौद्र रूप ने अपनों से अलग कर दिया। गांव के 70 घर गंगा में विलीन हो गए। कई परिवार गांव छोड़कर ऊंचे स्थान पर पलायन कर रहा है। गांव में जो पहले माहौल था। वह अभी सुनसान पड़ गया। एनएच 80 से जोड़ने वाली ग्रामीण सड़क भी गंगा में विलीन हो गई। अभी भी कटाव हो रहा है। जिसके कारण स्थिति बेहद ही खराब है। इलाके में पानी का भी व्यवस्था नहीं है, जो लोगों के लिए पीने लायक हो। एक घर में पांच पुत्र है। सब अलग-अलग घर बनाया था। जो गंगा ने विलीन हो गया। लेकिन मुआवजा के नाम में परिवार के एक सदस्य को दिया जा रहा है। उसमें क्या होगा। हमलोगों की मांग है कि जिसका घर गंगा में विलीन हो गया है उनको जमीन घर तो मिलना ही चाहिए। इसके साथ उनका आर्थिक मदद भी किया जाना चाहिए। गांव के दो मंजिला मकान, जल मीनार ग्रामीण सड़क, मंदिर सब गंगा में विलीन हो गया। इलाके में किसी की सरकारी नौकरी नहीं है। सभी ने मजदूरी कर घर बनाया था। कमाता है तब घर में चूल्हा जलता है। नहीं कमाएगा तो घर में चूल्हा भी नहीं जलेगा यहां की स्थिति यह है।

बता दें कि मसाढू गांव के अधिकांश लोग दिहाड़ी मजदूरी करते हैं। खून पसीने की कमाई से अपने सपनों का आशियाना को तैयार किया था। भागलपुर में यह गांव अच्छे गांवों की गिनती में आता था। जहां लोग खुशहाल रहते थे। घर घर में बच्चों की किलकारी गूंजती थी लेकिन वही किलकारी अब खुले आसमान के नीचे या टूटे घरों में सिसक के रूप में सुनाई देती है। लोगों की आंखों के सामने उनके सपनों का आशियाना आहिस्ता-आहिस्ता गंगा में समाधि ले लिया। कटाव रोधी कार्य के नाम पर जल संसाधन विभाग ने लाखों खर्च किये लेकिन एक इंच भी जमीन नहीं बचा सके। इसके साथ पीड़ित महिलाएं घंटों गंगा किनारे टकटकी लगाए मां गंगा को निहारते रहती है। लोग प्राकृतिक आपदा से हुई क्षति के मुआवजा को लेकर सरकार से आस लगाए बैठे हैं।

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