लाइव बिहार: एमडीएच मसाला कंपनी के संस्थापक और मसाला किंग के नाम से चर्चित धर्मपाल गुलाटी का निधन हो गया है। उन्होंने माता चन्नन देवी हॉस्पिटल में अंतिम सांस ली. 98 वर्षीय महाशय धर्मपाल बीमारी के चलते पिछले कई दिनों से माता चन्नन हॉस्पिटल में एडमिट थे. महाशय धर्मपाल के निधन पर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने दुख जाहिर किया.
धर्मपाल गुलाटी के निधन की कई बार झूठी खबरें सोशल मीडिया में पहले भी आती रही हैं लेकिन इस बार उनके निधन की आधिकारिक पुष्टि हुई है.
एमडीएच मसाला के संस्थापक और इसे घर-घर तक पहुंचाने वाले धर्मपाल गुलाटी का आज सुबह निधन हो गया। गुलाटी आईआईएफएल हुरुन इंडिया रिच 2020 की सूची में शामिल भारत के सबसे बुजुर्ग अमीर शख्स थे। कभी उनके पास कुल जमा पूंजी 1500 रुपये ही थी, लेकिन आज उनकी अपनी दौलत 5400 करोड़ रुपये तक पहुंच गई है। खुद उन्हें सालाना 25 करोड़ रुपये का वेतन मिलता था। 98 वर्षीय गुलाटी का वेतन किसी अन्य एफएमसीजी कंपनी के सीईओ के मुकाबले सबसे अधिक थी।
महाशय धर्मपाल के निधन पर रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने कहा, ‘भारत के प्रतिष्ठित कारोबारियों में से एक महाशय धर्मपालजी के निधन से मुझे दुःख की अनुभूति हुई है. छोटे व्यवसाय से शुरू करने बावजूद उन्होंने अपनी एक पहचान बनाई. वे सामाजिक कार्यों में काफी सक्रिय थे और अंतिम समय तक सक्रिय रहे. मैं उनके परिवार के प्रति अपनी संवेदना व्यक्त करता हूं.’
वहीं, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा, ‘सौम्य व्यक्तित्व के धनी महाशय धर्मपाल जी संघर्ष और परिश्रम के एक अद्भुत प्रतीक थे, अपनी मेहनत से सफलता के शिखर को प्राप्त करने वाले धर्मपाल जी का जीवन हर व्यक्ति को प्रेरित करता है, प्रभु उनकी दिवंगत आत्मा को सद्गति प्रदान करें व उनके परिजनों को यह दुःख सहने की शक्ति दें, ॐ शान्ति.’
महाशय धर्मपाल का जन्म 27 मार्च, 1923 को सियालकोट ( जो अब पाकिस्तान में है) में हुआ था. साल 1933 में, उन्होंने 5वीं कक्षा की पढ़ाई पूरी करने से पहले ही स्कूल छोड़ दी थी. साल 1937 में, उन्होंने अपने पिता की मदद से व्यापार शुरू किया और उसके बाद साबुन, बढ़ई, कपड़ा, हार्डवेयर, चावल का व्यापार किया.
हालांकि महाशय धर्मपाल गुलाटी लंबे वक्त ये काम नहीं कर सके और उन्होंने अपने पिता के साथ व्यापार शुरू कर दिया. उन्होंने अपने पिता की ‘महेशियां दी हट्टी’ के नाम की दुकान में काम करना शुरू कर दिया. इसे देगी मिर्थ वाले के नाम से जाना जाता था. भारत-पाकिस्तान विभाजन के बाद वे दिल्ली आ गए और 27 सितंबर 1947 को उनके पास केवल 1500 रुपये थे.