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Desk: जीवन में कई उतार-चढ़ाव देखने वाले लालू प्रसाद यादव इन दिनों अस्वस्थ हैं। एक दौर था जब वे अपने चुटीले अंदाज और हास्य-विनोद से लोगों के चेहरे पर मुस्कान बिखेर देते थे। यहां तक कि उनके विरोधी भी उनके अंदाज-ए-बयां के कायल थे। अपनी राजनीतिक शैली से जहां उन्होंने देश के शीर्ष नेताओं से अपना लोहा मनवाया, वहीं वे आम लोगों से ठीक उन्हीं की बोली-बानी में जुड़े। वे अपना हुलिया इस तरह रखते कि लोगों को लगता कि वे उन्हीं के बीच के हैं, उन्हीं के जैसे हैं।

लालू प्रसाद अपनी ठेठ गवई शैली में जनता से सीधे जुड़ते रहे हैं। जयंत जिज्ञासु की हाल में ही प्रकाशित किताब द किंग मेकर- लालू प्रसाद यादव की अनकही दास्तान, में ऐसे कई प्रसंगों का जिक्र है। लालू प्रसाद यादव की हेयरस्टाइल को साधना कट कह कर उनका मजाक उड़ाने वालों को वे कहते हैं- हम लड़की तो नहीं हैं न। हम शुरू से छोटा बाल रखते हैं। हमारा बाल खड़ा रहता है। कहिएगा कि सूतो तो खड़ा, हम न कंघी रखते हैं, न अपना मुंह देखते हैं आईना में…।

बाल खड़ा रहने से माथा खुजलाता है और गर्दन में दर्द होता है। बाल छोटा होने से मैं अपने हाथ से ही कंघी का काम कर लेता हूं, थोड़ा इसको ठोक-ठाक के बच्चे की तरह सुला देता हूं कि सूते रहो। बड़ा बाल रखने से कोई भी उसको पकड़ के दुई मुक्का मार सकता है। छोटा बाल रखने से हाथ में बंधाएगा नहीं।

बाबा, प्रणाम!: लालू प्रसाद के करीबी सहयोगी रहे और कुछ समय के लिए उनके धुर विरोधी हो गए शिवानंद तिवारी बताते हैं कि चारा घोटाला का मामला हुआ था। उसमें आंदोलनकर्ताओं में हम भी थे। लड़ाई जम के हुई। लालू यादव को मुख्यमंत्री पद से हटना पड़ा। जेल जाना पड़ा। जेल से निकलने के दूसरे दिन, उस समय तक हम समता पार्टी से विधायक हो गए थे। हम चाय और अखबार लेकर बैठे थे, 6.30-7.00 बजे सुबह की बात होगी। मेरे पास फोन आया, आप फलाने नंबर से बोल रहे हैं? मैंने कहा, जी हां। तो लीजिए बात कीजिए। अब हम पूछे कि कौन बात करेगा।

तब तक लालू यादव की आवाज आई- बाबा प्रणाम। अब आप कल्पना कीजिए कि मेरी क्या हालत हुई होगी। जिसके खिलाफ हमने मुकदमा किया, जिसके खिलाफ हमने लड़ाई लड़ी। उसको जेल भुुगतना पड़ा, वो आदमी जेल से निकल कर हम को फोन कर रहा है… बाबा प्रणाम। ये अपवाद है। आपको मिलेगा कहीं।

पुलिस का नहीं, बिहार का दरोगा बनो: जयंत की पुस्तक में एक प्रसंग का जिक्र है जब उन्होंने दरोगा की नौकरी के लिए पैरवी कराने आए एक सज्जन को कह दिया कि तुम थाने का दरोगा बनाना चाहते हो, बिहार का दरोगा बनो। और उन्हें चुनाव लड़ने की सलाह दी। उन सज्जन के पास पैसे नहीं थे तो उन्हें सवा लाख रुपए चुनाव लड़ने के लिए भी दिए। संयोग से वे चुनाव जीत गए। ये थे सुरेश पासवान।

उस चुनाव में खर्च के बाद 25 हजार बच गए तो वे लौटाने पहुंच गए। कहा कि ये आपकी अमानत थी। इस पर लालू प्रसाद ने कहा, इसे अपने पास रखो। तुम्हारे काम आएंगे। पासवान कहते हैं 1997 में राबड़ी सरकार बनी तो उन्हें मंत्री बनाया गया। पत्थर तोड़ने वाली भगवती देवी को लालू प्रसाद ने ही चुनाव लड़ने के लिए टिकट दिया था। ऐसी कई अनकही दास्तान हैं जिन्हें कम लोग ही जानते हैं।

पुस्तक में एक और प्रसंग ध्यान खींचता है। लालू प्रसाद ने एक जमाने में अपने प्रतिद्वंद्वी रहे जगन्नाथ मिश्र की मौजूदगी में एक बार अपने हास्य बोध का मुजाहिरा करते हुए कहा कि उड़नखटोला मिश्रा जी ने बड़े अरमान से खरीदा था, मगर चढ़ के बिहार हम घूमे। यही तो डेमोक्रेसी है। जब विरोधी कहते थे कि लालू यादव को उखाड़ के फेंक देंगे तो अपनी सभाओं में लालू प्रसाद जनता से कहते थे- चक डोले चकडंबा डोले, ठूंठा पीपर कभी न डोले।

पटना हो कि दिल्ली…: लालू प्रसाद 2017 में यूपी विधानसभा चुनाव के प्रचार के लिए गए थे। बनारस की एक दुकान पर पान की गिलौरी मुंह में दबाए एक रिपोर्टर से कहते हैं- खाओगे तुम भी। पटना हो कि दिल्ली, बनारस के पान का कोई जोड़ ही नहीं है। मुनव्वर राणा ने इस पर एगो बनाया है शेर- मोहब्बत में तुम्हें आंसू बहाना नहीं आया, बनारस में रहे और पान खाना नहीं आया। यही शेर उन्होंने लोकसभा में भी पढ़ा था।

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