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Desk: युवा लेखिका भूमिका द्विवेदी जी का उपन्यास “माणिक कौल कहानी एक कश्मीरी की” हाल ही में किंडल पर भी आया। कश्मीर का ज़िक्र कहानी के शीर्षक में है जो पाठक का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित करता है। इस से पहले मैंने भूमिका जी का एक कहानी संग्रह भी पढ़ा हुआ है l अब बात करते हैं कथानक और पात्रों की। वास्तव में कश्मीर, भारत में स्थित जन्नत का वो हिस्सा है जिसे बरसों से चली आ रही सियासत ने दोजख बना कर रख दिया है। इसी क्रम में एक अध्याय कश्मीरी पंडितों के विस्थापन का भी है।

लाखों की संख्या में कश्मीरी पंडितों को कश्मीर में अपना घर बार, धंधा, नौकरी, ज़मीन जायदाद सब त्याग कर रातों रात भागना पड़ा था। पूरी घाटी में खूब रक्तपात, आगजनी, लूटपाट हुई और उस समय की सरकार तमाशा देखती रही। बाद में सरकार ने विस्थापित पंडितों के लिए नौकरी, ज़मीन आदि भारत के अन्य स्थानों पर उपलब्ध करायी पर उनके पुनर्स्थापन के लिए कोई भी ईमानदार कोशिश नहीं की। इसी कड़ी में विस्थापन का शिकार है हमारी कहानी का नायक या सच कहूँ तो खलनायक, माणिक कौल। माणिक का बचपन घोर कष्ट, अपमान, पीड़ा, दुःख, दर्द आदि के बीच बीता। कभी इंडियन आर्मी, कभी हिन्दुस्तानी सरकार तो कभी घाटी के मुसलमानों ने माणिक कौल और उसकी पूरी कौम को खूब जलील किया।

अपमान का यह विष पीकर माणिक अपने अंदर नफ़रत का एक बीज बो लेता है और बड़ा होकर उसी नफ़रत के बढ़ चुके पेड़ को अपने शरीर और आत्मा पर पसरने देता है। शिक्षाविद् के लिबास में माणिक एक बीचोलिया है जिसकी एक ही लालसा है स्त्री देह। शिक्षा के क्षेत्र में व्याप्त भ्रष्ट तंत्र के सहयोग से माणिक आजादपुर (काल्पनिक शहर) के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय में वीसी बनकर आसीन हो जाता है। वीसी बनकर माणिक को खुली छूट मिलती है और मनमाने तरीके से वो नियुक्तियां, प्रोमोशन, स्थानांतरण, पीएचडी आदि बांटता है। इसी क्रम में उसकी मुलाक़ात आजादपुर विश्वविद्यालय से ही पढ़ी हुई एक पूर्व छात्रा और इसी शहर की रहने वाली कंचन दीक्षित से होती है।

कंचन जवान है, खूबसूरत और दिल्ली के एक प्रतिष्ठित परिवार की विधवा कुलवधु भी l पेशे से कंचन चित्रकार है, बला की खूबसूरत है और अपनी जिंदगी के सूनेपन को भरने के लिए एक बच्चे की चाहत भी रखती है l माणिक उसकी तरफ़ बुरी तरह से आकर्षित होता है और उसको अपने जाल में फंसाने की योजना बनाता है। माणिक कंचन से मिलने दिल्ली आता है और उसको अपने रंग ढंग, शेर ओ शायरी, कविता, मीठी बातों के जाल में फाँस कर उस से संबंध स्थापित करने में कामयाब होता है।

कंचन को वो अपने साथ कश्मीर लेकर भी ले जाता है जहाँ धर्म परिवर्तन कराकर दोनों का निकाह मुकम्मल होता है। कंचन प्रेम के लिए लालायित थी और बिना किसी प्रतिकार के सब कुछ स्वीकार कर लेती है। पाठक के नाते मेरा अनुमान है कि इतनी जल्दी आत्मीय प्रेम तो मुमकिन नहीं, कदाचित शारारिक प्रेम ही कारण रहा होगा। ख़ैर, यहीं पर कंचन को माणिक की देशविरोधी गतिविधियों की भी हवा लगती है पर वो प्रेमांध हो जाती है और सबूत सिर्फ़ अपने पास रख लेती है। इसका भी कारण समझ नहीं आता लेकिन सच में नारी मन की गहराईयों को समझना इतना आसान भी तो नहीं। वापस अपने शहर दिल्ली जाकर कुछ समय पश्चात कंचन को पता चलता है कि वह गर्भवती है और यह सुनकर उसकी ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं होता है। माणिक को अपनी स्थिति के बारे में अवगत कराने की उसकी सारी कोशिशें नाकाम साबित होती हैं। माणिक से मिलने वो फ़िर से आजादपुर जाती है लेकिन कामयाब नहीं हो पाती। यहां से शुरु होता है सांप नेवले का एक अनोखा खेल।

माणिक के विश्वविद्यालय के कई छात्र कंचन को उसके खिलाफ़ बहुत से सबूत मुहैया कराते हैं लेकिन कंचन का अबोध मन ये सब मानने से इंकार कर देता है। उसे यही प्रतीत होता है कि शादीशुदा और दो बच्चों का बाप, माणिक उससे सच्ची मोहब्बत करता है। कहानी में भी माणिक खुद एक से ज्यादा बार कंचन को यह यकीन दिलाने में कामयाब होता है कि वह निर्दोष है और पूरी दुनिया उसके खिलाफ़ षडयंत्र रच रही है। माणिक और कंचन के बीच होने वाली चेट्स, कई सारी तस्वीरें और निजी बातें कंचन की छोटी सी भूल की वजह से सोशल मीडिया पर लीक हो जाती हैं, इससे माणिक के चरित्र पर हजारों सवाल और खड़े हो जाते हैं।

इसी दौरान कंचन अपनी पुरानी जान पहचान वाले बहुत से नजदीकियों को माणिक की करतूतों के बारे में बताने का पुरजोर पर असफल प्रयास भी करती है। अन्त में, सब से आजीज़ आकर कंचन क्या कदम उठायेगी?माणिक और कंचन के संबंध को क्या समाज की स्वीकृति प्राप्त होती है ? कंचन को न्याय मिलेगा या फ़िर उसके भाग्य में खुशियां हैं ही नहीं ? माणिक को अपनी करनी का क्या कोई दंड मिलेगा ? माणिक के देशविरोधी गतिविधियों की भनक क्या हमारी सरकार को होगी ? आजादपुर विश्वविद्यालय का भविष्य क्या होगा? कंचन के होने वाले बच्चे का भविष्य क्या होगा ? यह सब जानने के लिए आपको ये कहानी पढ़नी होगी।

उपन्यास का मुख्य पात्र माणिक मूल रूप से कश्मीर का है और उसकी हिन्दी इतनी दुरुस्त नहीं। उसके ज्यादातर संवाद कश्मीरी और अंग्रेज़ी भाषा में ही होते हैं। जहां पर भी कश्मीरी भाषा इस्तेमाल हुई है ,वहां हिन्दी में उनका अनुवाद भी दिया हुआ है। लेखिका स्वयं कई भाषाओं की जानकार हैं और इसलिए कहानी में उर्दू, अंग्रेज़ी और हिंदी के शब्दों का भरपूर प्रयोग है। किंडल संस्करण में मुझे मात्राओं की कई अशुद्धियां मिली, अंग्रेज़ी मूल के ढेर सारे शब्दों की स्पेलिंग ग़लत है, हिन्दी के शब्दों में भी कुछ एक गलतियां मिलीं।

अंग्रेज़ी के वाक्यों में कई बार व्याकरण संबंधी गलतियां हैं। संवाद में बहुत से बोल्ड शब्दों का भी इस्तेमाल है जो कई बार ग़ैर ज़रूरी भी लगा। कुछ घटनाएं ऐसी भी लगीं जो बार बार हो रहीं थीं, पाठक के तौर पर मैं आशा करता हूं कि प्रकाशक और लेखक इस और ध्यान देंगे और अगले संस्करण में यह सभी गलतियां सुधार देंगे। प्रूफरीडिंग और एडिटिंग को भी उतनी ही तवज्जो मिलनी चाहिए जितना लेखन को और तभी कोई भी कृति शानदार बनती है तथा लंबे समय तक किसी पाठक को याद रहती है। कहानी की भाषा प्रवाहमयी है और मैं उत्सुकतावश किताब के पन्ने पलटता चला गया।

कश्मीर की आबोहवा का बहुत सटीक चित्रण हुआ है, वहां के खानपान , लोक संस्कृति, घरों के डिजाइन आदि के बारे में लिखी हुई बातें रोचकता बढ़ाती हैं। कहानी में आज के समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार के ऊपर तीखे कटाक्ष हैं, दिखाया गया है कि कैसे नैतिकता, संयम, ईमानदारी, सच्चाई, देशप्रेम आदि अच्छे गुण अब धीरे धीरे विलुप्त होते जा रहे हैं और इनकी जगह बेईमानी, मक्कारी, फिरकापरस्ती, घूसखोरी, वासना आदि अवगुणों ने ले ली है।

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