दो वर्षों में भारत ने विकसित किए चार स्वदेशी कोविड-19 टीके

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नई दिल्ली, 31 जनवरी (इंडिया साइंस वायर): भारत के वैज्ञानिकों को दो वर्षों के कालखंड में कोविड-19 के चार स्वदेशी टीके विकसित करने में सफलता मिली है। इनमें, विश्व का पहला व भारत का स्वदेशी रूप से विकसित डीएनए टीका – जायकोव-डी, भारत का पहला प्रोटीन सबयूनिट टीका- कॉर्बेवैक्स, विश्व का पहला एवं भारत का स्वदेशी रूप से विकसित एमआरएनए टीका – जेमकोवैक-19 और विश्व का पहला तथा भारत में स्वदेशी रूप से विकसित इंट्रानेजल (नाक के माध्यम से) कोविड-19 टीका – इन्कोवैक शामिल है।

यह जानकारी प्रदान करते हुए केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) डॉ जितेंद्र सिंह ने कहा है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सक्षम मार्गदर्शन और नेतृत्व में जैव प्रौद्योगिकी विभाग (डीबीटी) ने ‘मिशन कोविड सुरक्षा’ के माध्यम से चार टीके वितरित किए हैं, और कोवैक्सिन के निर्माण को बढ़ाने की पहल की है। इन टीकों को विभिन्न पक्षों के सहयोग से विकसित किया गया है। केंद्रीय मंत्री ने कहा कि भविष्य में टीकों के सुचारू विकास के लिए डीबीटी ने जरूरी बुनियादी ढाँचे का निर्माण किया है, जिससे महामारी की स्थिति का सामना करने में मदद मिलेगी।

भारत बायोटेक द्वारा निर्मित इंट्रानेजल कोविड-19 टीका – इन्कोवैक को हाल में लॉन्च किया गया है। इस इंट्रानेजल टीके की खुराक बूँदों के रूप में नाक के माध्यम से दी जाती है। यह ऊतकों में प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को उत्तेजित करता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि यह टीका श्वसानली के ऊपरी हिस्से में अतिरिक्त प्रतिरक्षा प्रदान कर सकते हैं, जहाँ से होकर कोविड वायरस आमतौर पर शरीर में प्रवेश करता है।

इंट्रानेजल कोविड टीके को औपचारिक रूप से जारी किए जाने के बाद मंत्री ने जैव प्रौद्योगिकी विभाग (डीबीटी) के सचिव श्री राजेश गोखले और विभाग के अन्य वरिष्ठ अधिकारियों के साथ एक उच्च स्तरीय बैठक की। इस बैठक के बाद उन्होंने कहा कि इस मिशन के तहत टीके के विकास के साथ-साथ विभिन्न कोविड-19 टीका विकास गतिविधियों के लिए विशेषज्ञ वैज्ञानिक और तकनीकी निरीक्षण व निगरानी के लिए वित्तीय सहायता प्रदान की गई थी।

डॉ जितेंद्र सिंह ने रेखांकित किया है कि महामारी संकट को देखते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार ने कोविड-19 टीके के विकास को सर्वोच्च प्राथमिकता दी और इसके इसके अनुरूप भारत सरकार ने आत्मनिर्भर भारत 3.0 पैकेज के तहत कुल 900 रुपये की लागत से “मिशन कोविड सुरक्षा” की घोषणा की थी। मंत्री ने कहा कि इसका उद्देश्य त्वरित तरीके से सुरक्षित, प्रभावी, सस्ते और स्वदेशी कोविड-19 टीकों के विकास को सक्षम बनाना है।

डॉ जितेंद्र सिंह ने जोर दिया कि “मिशन कोविड सुरक्षा” ने भारत बायोटेक के मालूर केंद्र और हैदराबाद स्थित इंडियन इम्यूनोलॉजिकल्स लिमिटेड में कोवैक्सिन के उत्पादन को बढ़ाने के लिए विनिर्माण सुविधाओं के विस्तार को लेकर भी सहायता की। विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के वक्तव्य में यह जानकारी प्रदान की गई है।

डॉ सिंह ने बताया कि बिना देरी किए टीका वितरण के लिए “मिशन कोविड सुरक्षा” को एक मजबूत सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) मॉडल की जरूरत है। उन्होंने कहा कि इस तरह के मॉडल को विकसित करने और वैज्ञानिक समुदाय के साथ काम करने सहित टीका निर्माताओं को कम समय में टीके के निर्माण, जिसकी हमारे देश और वैश्विक समुदाय को भी जरूरत थी, के लिए डीबीटी के पास आवश्यक क्षमता और बुनियादी ढाँचा उपलब्ध है।

केंद्रीय मंत्री ने कहा कि टीका अनुसंधान और विकास में तीन दशक से अधिक के अनुभव के साथ डीबीटी के पास पहले से ही अपने स्वायत्त संस्थानों और एक उद्योग-अकादमिक इंटरफेस एजेंसी – जैव प्रौद्योगिकी उद्योग अनुसंधान सहायता परिषद (बाइरैक) के माध्यम से त्वरित टीका विकास के लिए बुनियादी वैज्ञानिक क्षमता है। इसे देखते हुए ही बाइरैक के माध्यम से इस मिशन के कार्यान्वयन का नेतृत्व डीबीटी को सौंपा गया।

डॉ जितेंद्र सिंह ने कहा कि कोविड-19 महामारी ने संक्रमण के प्रबंधन और इसे रोकने के मामले में वैश्विक वैज्ञानिक समुदाय के सामने गंभीर चुनौतियां उत्पन्न की हैं। वहीं, अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने वैश्विक स्तर पर बेहतर नेतृत्व करने और महामारी के प्रबंधन की सोच के लिए भारत सरकार की प्रशंसा की है।

डीबीटी के सचिव डॉ राजेश गोखले ने कहा है कि ‘मिशन कोविड सुरक्षा’ के तहत समर्थित चिकित्सीय परीक्षण स्थलों ने जायकोव-डी, कोवोवैक्स, जेमकोवैक-19, कॉर्बेवैक्स, कोवैक्सिन बूस्टर, आरबीसीजी (सीरम इंस्टीट्यूट) और जेएंडजे के कोविड टीकों के चिकित्सीय परीक्षणों की सुविधा प्रदान की है। लगभग 1.5 लाख लोगों के एक इलेक्ट्रॉनिक स्वयंसेवी डेटाबेस को भी तैयार किया गया है।

डीबीटी के अधीन स्वायत्त संस्थानों जैसे कि एनिमल चैलेंज केंद्र और प्रतिरक्षा प्रयोगशालाओं ने टीका निर्माताओं को महत्वपूर्ण सेवाएं प्रदान की हैं। नई दिल्ली स्थित डीबीटी से सम्बद्ध एक अन्य संस्थान – राष्ट्रीय प्रतिरक्षा विज्ञान संस्थान (एनआईआई) ने इन्कोवैक चरण- III के चिकित्सीय नैदानिक परीक्षणों के लिए इम्यूनोजेनेसिटी (प्रतिरक्षाजनकता) परीक्षण सेवाएं प्रदान की हैं।

हरियाणा के फरीदाबाद में स्थित डीबीटी से सम्बद्ध संस्थान ट्रांसलेशनल स्वास्थ्य विज्ञान और प्रौद्योगिकी संस्थान (टीएचएसटीआई) ने जायकोव-डी और कॉर्बोवैक्स के लिए हैम्स्टर मॉडल और न्यूट्रलाइजेशन परीक्षण की पेशकश की है। उल्लेखनीय है कि टीएचएसटीआई जैव परीक्षण प्रयोगशाला को महामारी संबंधी तैयारियों से जुड़े नवाचारों के लिए वैश्विक गठबंधन (सीईपीआई) नेटवर्क की सात प्रयोगशालाओं में से एक के रूप में मान्यता दी गई है। (इंडिया साइंस व

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