RK Sinha, Founder SIS, Former member of Rajya Sabha, at his residence, for IT Hindi Shoot. Phorograph By - Hardik Chhabra.
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अरविंद केजरीवाल को प्रवर्तन निदेशालय ने दिल्ली की शराब नीति के जिन आरोपों के आधार पर पूछताछ के बाद गिरफ्तार कर लिया हैउन्हें साबित होना भर ही बाकी है। हांपर इतना तो कहना ही होगा कि दिल्ली के मुख्यमंत्री के रूप में अरविंद केजरीवाल अपने को बार-बार अराजक मुख्यमंत्री के रूप में साबित करने में सफल रहे । वे लगातार केन्द्र सरकार और सरकारी अफसरों से लड़ने-झगड़ने के मूड में ही रहे। उन्होंने एक तरह से मान लिया कि देश भर में वह ही अकेले ईमानदार है। बाकी दुनिया भ्रष्ट है। उनसे उम्मीद थी कि वह देश में साफ-सुथरी और वैकल्पिक राजनीति का रास्ता साफ करेंगे। पर उन्होंने अपने खोखले दावों-वादों और कारनामों से देश को निराश ही किया।

दिल्ली में अरविंद केजरीवाल से पहले भी सरकारें और मुख्यमंत्री रहे,पर कभी कोई ऐसा मसला नहीं आया। दिल्ली की चुनी हुई सरकारों और केन्द्र सरकारों के बीच मजे मजे में विकास के सब काम होते रहे। पर सन 2015 में दिल्ली में आम आदमी पार्टी (आप) की सरकार बनते ही हंगामा शुरू हो गय़ा और होने लगा रोज का क्लेशतकरार और आरोप – प्रत्यारोप का दौर । 

दिल्ली में 1951-52 में पहली बार विधानसभा के चुनाव हुए। दिल्ली के पहले मुख्यमंत्री कांग्रेस के चौधरी ब्रह्म प्रकाश बने। चौधरी साहब 1952 से 1955 तक मुख्यमंत्री रहे। उन्हें कांग्रेस ने हटाया और यहां का दूसरा मुख्यमंत्री बनाया सरदार गुरुमुख निहाल सिंह मुसाफिर को।

गुस्ताखी माफ,कम ही दिल्ली वालों को पता है कि दिल्ली के दूसरे मुख्यमनंत्री एक सिख सज्जन थे। वे पहली दिल्ली विधानसभा के स्पीकर थे। वे 13 फरवरी1955 से 31 अक्टूबर1956 तक दिल्ली के मुख्यमंत्री रहे। उसके बाद विधानसभा का अस्तित्व समाप्त कर दिया गया। मुसाफिर जी ने मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए दिल्ली में शराब की दुकानें खोलने नहीं दीं। अजीब इत्तेफाक है कि अरविंद केजरीवाल दिल्ली में शराब की दुकानें खोलने में सदैव अति उत्साह दिखाते रहे। उन्हें दिल्ली की शराब नीति में कथित घोटाले के कारण ही गिरफ्तार किया गया है। मुसाफिर जी के पुत्र एस. निहाल सिंह प्रख्यात पत्रकार थे। वे इंडियन एक्सप्रेस अखबार के संपादक भी रहे।

 बहरहाल1966 में दिल्ली को एक महानगर परिषद मिली। यह विधान सभा के समकक्ष थी। महानगर परिषद का मुखिया मुखिया कार्यकारी पार्षद होता था। इस पद पर विजय कुमार मल्होत्रा और जग प्रवेश चंद्र जैसे नेता भी रहे। दिल्ली को 1991 में फिर से संविधान में संशोधन करके राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र घोषित किया गया। नए परिसीमन के तहत विधानसभा का 1993  में चुनाव हुआ। उसके बाद मदनलाल खुरानासाहिब सिंह वर्मासुषमा स्वराज और शीला दीक्षित जैसे दिग्गज नेता दिल्ली के मुख्यमंत्री रहे। इस दौरान केन्द्र में कभी कांग्रेस के नेतृत्व वाली और कभी भाजपा के नेतृत्व वाली सरकारें काम करती रहीं। पर दिल्ली में विकास का पहिया कभी थमा नहीं। जब मदन लाल खुराना मंख्यमंत्री बने तब देश के प्रधानमंत्री पी.वी.नरसिंह राव थे।  कहीं कोई दिक्कत नहीं आई । जब शीला दीक्षित मुख्यमंत्री थींतब प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी थे। तब भी दिल्ली का भरपूर विकास हो रहा था। कहीं कोई विवाद ही नहीं था। सारे विवाद आपसी बातचीत से हल हो रहे थे। अटल जी और शीला दीक्षित ने दिल्ली में मेट्रो रेल का विस्तार और बिजली की समस्या का स्थायी समाधान किया। यह बात अलग है कि अरविंद केजरीवाल हमेशा कहते रहे कि दिल्ली में बिजली की 24 घंटे सप्लाई उनकी वजह से मुमकिन हुई। हालांकिउन्होंने कभी यह नहीं बताया कि दिल्ली में पेयजल संकट का वह हल क्यों नहीं कर सके। क्यों यमुना मैली ही होती रहीकैसे दिल्ली बन गई दुनिया की सबसे ज्यादा प्रदूषित राजधानीअरविंद केजरीवाल ने इन सवालों के जवाब देने की कभी जरूरत महसूस नहीं की। अरविंद केजरीवाल को यही लगता रहा कि अखबारों में बड़े-बड़े खर्चीले विज्ञापन देकर वे अपने को महान साबित करते रहेंगे।

 आप जब दिल्ली में जी.टी.रोड से आगे बढ़ते हैंतो आपको दूर से ही भलस्वा में काला पहाड़ नजर आने लगता है। वह दिन में भी डराता है। अगर उसे पहली बार देखेंगे तो लगेगा कि मानो कोई प्राचीन किला हो। पर यह कूड़े का ढेर है। इस तरह के कूड़े के पहाड़ राजधानी में गाजीपुर तथा ओखला में भी है। भलस्वाओखला और गाजीपुर के इन पहाड़ों में कुछ औरत-मर्द कुछ बीनते हुए नजर आ जाते हैं। जिस राजधानी दिल्ली में हरी-भरी लुटियंस दिल्लीनई दिल्लीदिल्ली छावनी और दर्जनों अन्य शानदार एरिया हैंवहां लगभग सौ एकड़ एरिया में फैले कूड़े के किले शर्मसार करते हैं। यह तीनों कूड़े के किले  अरविंद केजरीवाल के तमाम दावों की कलई खोल कर रख देते हैं। इनके आसपास बेबस लोग रहते हैं। क्या कभी अरविंद केजरीवाल ने सोचा कि किस तरह से इनके पास लोग नारकीय स्थिति में रहते होंगेइनसे हर वक्त भयंकर दुर्गध आती रहती है। अब तो दिल्ली विधानसभा और नगर निगम में आम आदमी पार्टी की सरकारें हैं। पर यह कूडे के किले पहले की तरह से खड़े हैं या यह कहिये कि प्रतिदिन बड़े होते जा रहे हैं। यह कहना होगा कि दिल्ली नगर निगम ने कूड़े के निस्तारण और इसकी री-साइक्लिंग पर कोई ठोस कदम नहीं उठाए। क्या इन काले पहाड़ों को हटाने से मोदी सरकार ने मना किया था?

 राजधानी के एक एक बड़े भाग में लुटियंस दिल्ली आती है। इसमें केन्द्रीय मंत्रीसांसदबड़े उद्योगपति वगैरह रहते हैं। इसके रख-रखाव पर मोटा बजट खर्च होता है। राजधानी के नई दिल्ली एरिया की देखभाल नई दिल्ली नगर परिषद (एनडीएमसी) करती है। यहां पर तो कमोबेश सब कुछ ठीक है। इसकी तुलना दुनिया के किसी भी शहर के हिस्से से की जा सकती है। इधर कोई कूड़े के पहाड़ भी नहीं हैं। मसला शेष दिल्ली का है। उसका हल भी मुमकिन है अगर कूड़े की-साइक्लिंग को लेकर रफ्तार से काम चले।

कौन नहीं जानता कि दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार के सत्ता पर आते ही अराजकता फैलने लगी। हद तो तब हो गई जब दिल्ली सरकार के मुख्य सचिव अंशु प्रकाश की मुख्यमंत्री ने अपने निजी सहायकों द्वारा सरकारी आवास पर मध्य रात्रि में बुलवाकर गुंडे किस्म के हिस्ट्रीशीटर विधायकों द्वारा लात- घूँसों से पिटाई करवा दी। ऐसा शर्मनाक वाकया पहले कभी नहीं सुना था कि मुख्यमंत्री के आवास पर किसी  आला आई.ए.एस अफसर को सत्तासीन दल के विधायकों द्वारा घूँसों और लातों से पीटा जाए। यदि कोई सरकार ही गुंडई पर उतारू हो जाये तो उससे भी तो फिर उसकी भाषा में ही तो निबटना होता है। फिलहाल तो अरविंद केजरीवाल को अपने को पाक साफ करना होगा।

(लेखक वरिष्ठ संपादकस्तंभकार और पूर्व सांसद हैं)

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