बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय बंगाली भाषा के प्रसिद्ध उपन्यासकार, कवि, लेखक और पत्रकार थे। उन्होंने भारत के राष्ट्रीय गीत ‘वन्दे मातरम्’ की रचना की। यह एक ऐसी रचना थी जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के काल में क्रान्तिकारियों का प्रेरणास्रोत बन गई। बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय को रवीन्द्रनाथ ठाकुर के पूर्ववर्ती बांग्ला साहित्यकारों में सबसे प्रमुख माना जाता है।
जीवन परिचय
बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय का जन्म बंगाल के उत्तरी चौबीस परगना के कंठालपाड़ा, नैहाटी में हुआ था। बंकिम चंद्र चटोपाध्याय का परिवार परंपरागत और समृद्ध बंगाली परिवार था। उनकी शिक्षा हुगली कॉलेज और प्रेसीडेंसी कॉलेज में हुई। 1857 में उन्होंने स्नातक की परीक्षा पास की। उस जमाने में प्रेसीडेंसी कालेज से बी. ए. की उपाधि लेनेवाले बंकिम चंद्र पहले भारतीय थे। उन्होंने और 1869 में क़ानून की डिग्री हासिल की। शिक्षा समाप्ति के तुरंत बाद उनकी नियुक्ति डिप्टी मजिस्ट्रेट पद पर हो गई थी। बंकिम चन्द्र चटोपाध्याय कुछ समय तक बंगाल सरकार के सचिव पद पर भी रहे। ब्रिटिश सरकार ने उन्हें रायबहादुर और सी. आई. ई. की उपाधियों से नवाजा था।
वंदे मातरम गीत की रचना से मिली ख्याति
भारत वर्ष के राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम की रचना बंकिमचंद्र चटोपाध्याय ने की थी। जब इसकी उन्होंने रचना की तब यह गीत उतना प्रसिद्ध नहीं हुआ जितना उनके जीवन काल के बाद हुआ। महान देश भक्त सरदार भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु, रामप्रसाद बिस्मिल और अशफाकुल्लाह खान जैसे प्रसिद्ध क्रांतिकारियों ने ‘वंदे मातरम’ गाते हुए ही फांसी का फंदा चूम लिया था। रबीन्द्रनाथ टैगोर ने इस गीत की खूबसूरत धुन बनाई । लाला लाजपत राय और बिपिन चंद्र पाल ने भी ‘वंदे मातरम’ नाम से राष्ट्रवादी पत्रिकाएं निकाली थीं। 24 जनवरी 1950 को संविधान सभा के अध्यक्ष और भारत के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने वंदे मातरम को राष्ट्रगीत का दर्जा देने का ऐलान किया था।
बंकिम चंद्र चटोपाध्याय की प्रमुख रचनाएँ
बंकिमचंद्र चटर्जी की पहचान बांग्ला कवि, उपन्यासकार, लेखक और पत्रकार के रूप में है। उनकी रचनाओं ने उस समय के समाज में नई उर्जा फूंकने का काम किया। उनकी प्रथम प्रकाशित रचना राजमोहन्स वाइफ थी। इसकी रचना अंग्रेजी में की गई थी। उनकी पहली प्रकाशित बांग्ला कृति ‘दुर्गेशनंदिनी’ मार्च 1865 में छपी थी। यह एक रूमानी रचना है। उनके दूसरे उपन्यास कपालकुंडला को उनकी सबसे अधिक रूमानी रचनाओं में से एक माना जाता है। उन्होंने 1872 में मासिक पत्रिका बंगदर्शन का भी प्रकाशन किया। अपनी इस पत्रिका में उन्होंने विषवृक्ष उपन्यास का क्रमिक रूप से प्रकाशन किया।
आनंदमठ ने लोगों में देशभक्ति का संचार किया
बंकिम चंद्र चटोपाध्याय की सभी रचनाओं ने समाज में कुछ-न कुछ बदलाव किया, लेकिन आनंदमठ उन सबमें बेहद खास साबित हुआ। आनंदमठ को राजनीतिक उपन्यास कहा गया। इस उपन्यास में उत्तर बंगाल में 1773 के संन्यासी विद्रोह का वर्णन किया गया है। इस पुस्तक में देशभक्ति की भावना है। चटर्जी का अंतिम उपन्यास सीताराम (1886) है। इसमें मुस्लिम सत्ता के प्रति एक हिंदू शासक का विरोध दर्शाया गया है।
उनकी अन्य प्रसिद्ध रचनाएं
बंकिम चंद्र चटोपाध्याय की अनेक रचनाओं ने देश औऱ समाज में नई उर्चा का संचार किया लेकिन दुर्गेशनंदिनी, मृणालिनी, इंदिरा, राधारानी, कृष्णकांतेर दफ्तर, देवी चौधरानी और मोचीराम जैसी रचनाओं ने तो मानो समाज का दिशा ही बदल कर रख दी। उनकी कविताएं ललिता ओ मानस नामक संग्रह में प्रकाशित हुई। उन्होंने धर्म, सामाजिक और समसामायिक मुद्दों पर आधारित कई निबंध भी लिखे।
अपने काल के सबसे चर्चित साहित्यकार
सबसे खास बात है कि बंकिमचंद्र के उपन्यासों का भारत की लगभग सभी भाषाओं में अनुवाद किया गया। वे अपने समय के एकमात्र साहित्यकार औऱ कवि थे जिनकी रचनाओं का अनुवाद सभी भाषाओं में हुआ। बांग्ला में सिर्फ बंकिम और शरतचन्द्र चट्टोपाध्याय को यह गौरव हासिल है कि उनकी रचनाएं हिन्दी सहित सभी भारतीय भाषाओं में आज भी चाव से पढ़ी जाती है। लोकप्रियता के मामले में बंकिम चंन्द्र चटोपाध्याय शरतचंद्र और रवीन्द्र नाथ ठाकुर से भी आगे माने जाते हैं। बंकिम बहुमुखी प्रतिभा वाले रचनाकार थे। उनके कथा साहित्य के अधिकतर पात्र शहरी मध्यम वर्ग के लोग हैं। इनके पात्र आधुनिक जीवन की त्रासदियों और प्राचीन काल की परंपराओं से जुड़ी दिक्कतों से साथ साथ जूझते हैं। लिहाजा मध्यम वर्ग का पाठक बंकिम चन्द्र चटोपाध्याय के उपन्यासों में अपनी छवि देखता है।