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लोकसभा चुनाव हैक करने में लगे थे कई देशों के मठाधीश: भारत में चाहते थे मन माफिक सरकार 1
Ganesh Jha

हाल ही में संपन्न हुए भारत के लोकसभा चुनाव को विदेशी ताकतों ने प्रभावित करने की हर संभव कोशिश की। दुनिया भर में इनफार्मेशन वारफेयर और साइकोलॉजिकल ऑपरेशन को ट्रैक करने वाली संस्था डिसइन्फो लैब ने यह सनसनीखेज दावा किया है। रिपोर्ट के मुताबिक जब भारत चुनाव की तैयारी कर रहा था और मतदाता नई सरकार चुनने का मन बना रहे थे, तब विदेशी ताकतें चुनाव को प्रभावित करने की प्लानिंग कर रही थीं।

रिपोर्ट का खुलासा

डिसइन्फो लैब ने ‘द इनविजिबल हैंड्स: फॉरेन इंटरफेरेंस इन इंडियन इलेक्शन 2024’ नाम से 85 पन्नों की एक रिपोर्ट जारी की है। उस रिपोर्ट में विस्तार से बताया गया है कि किस तरीके से अमेरिका और यूरोपियन यूनियन की कुछ संस्थाएं और ताकतवर लोगों ने भारत के लोकसभा चुनाव में अरबों रुपए फूंक डाले, ताकि चुनाव के नतीजे उनके मनमाफिक आएं।

आलोचना और नैरेटिव सेट करने की कोशिश

डिसइन्फो लैब की रिपोर्ट के मुताबिक लोकसभा चुनाव जैसे-जैसे करीब आया, भारतीय संस्थानों की आलोचना, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में मानवाधिकारों के हनन जैसे विषयों पर केंद्रित करके लिखे गए लेखों की संख्या बढ़ने लगी। आखिरी 6 महीनों में तो ऐसे लेखों की बाढ़ सी आ गई। रिपोर्ट में मुख्य तौर पर 3 बिंदुओं की चर्चा है, जिनके जरिये लोकसभा चुनाव के दौरान एक खास नैरेटिव तैयार करने की कोशिश की गई। इनको किस तरीके से भारी भरकम फंडिंग मिली। इनमें अमेरिका स्थित हेनरी लूस फाउंडेशन (एचएलएफ), अमेरिकी अरबपति जॉर्ज सोरोस की संस्था ‘ओपन सोसायटी फाउंडेशन’ (ओएसएफ) और फ्रेंच विचारक और पॉलीटिकल साइंटिस्ट क्रिस्टोफ जाफ्रेलॉट शामिल हैं।

फ्रेंच मीडिया की भूमिका

डिसइन्फो लैब की रिपोर्ट के मुताबिक फ्रेंच मीडिया ने भारत के लोकसभा चुनाव में खास दिलचस्पी दिखाई। फ्रांस के प्रमुख अखबारों में से एक ‘ली मोंडे’ ने लोकसभा चुनाव पर दर्जनों भारत विरोधी लेख प्रकाशित किए। ये लेख भारत में इस्लामोफोबिया, अलोकतांत्रिक रवैया, मानवाधिकारों के हनन और जातिगत भेदभाव के इर्द-गिर्द केंद्रित थे। एक तरीके से इन लेखों के जरिए भारत विरोधी नैरेटिव सेट करने का प्रयास किया जा रहा था और इसके जरिए मतदाताओं को प्रभावित करने की कोशिश की जा रही थी।

क्रिस्टोफ जाफ्रेलॉट की भूमिका

रिपोर्ट में चौंकाने वाली बात यह थी कि फ्रेंच मीडिया में प्रकाशित ज्यादातर रिपोर्ट्स और लेख या तो फ्रेंच पॉलिटिकल साइंटिस्ट क्रिस्टोफ जाफ्रेलॉट द्वारा लिखी गई थी या फिर वे उनके बयानों पर आधारित थीं। पश्चिमी मीडिया और भारतीय मीडिया के एक हिस्से ने भी बहुत बढ़ चढ़ कर क्रिस्टोफ जाफ्रेलॉट के लेख छापे और उनके बयानों को आधार बनाकर खबरें प्रकाशित कीं। फ्रेंच मीडिया में क्रिस्टोफ जाफ्रेलॉट द्वारा भारत में जाति जनगणना पर किए गए काम के इर्द-गिर्द कई खबरें छपीं। दिलचस्प बात यह है कि जाति जनगणना पर क्रिस्टोफ की जिस अध्ययन को लोकसभा चुनाव के बीच बार-बार कोट किया गया और भारत में जातिगत भेदभाव को बड़ी समस्या बताई गई, उसे अमेरिका के हेनरी लूस फाउंडेशन ने फंडिंग दी थी।

एचएलएफ और ओएसएफ की फंडिंग

लोकसभा चुनाव में एचएलएफ की फंडिंग की बात करें तो इस परियोजना की अगुआई क्रिस्टोफ जाफ्रेलॉट ही कर रहे थे। उन्हें साल 2021 से 2024 के बीच 38,500,0 डॉलर की फंडिंग मिली। एचएलएफ ने कई और प्रोजेक्ट की फंडिंग की। मसलन एक परियोजना थी ‘द हिंदू राइट एंड इंडियाज रिलीजियस डिप्लोमेसी’। इसके अलावा इस फाउंडेशन ने ह्यूमन राइट्स वॉच को एक खास परियोजना पर काम करने के लिए 3 लाख डॉलर की भारी-भरकम फंडिंग दी। यह परियोजना खासकर भारत में धार्मिक हिंसा पर केंद्रित थी।

रिपोर्ट में अमेरिकी अरबपति जॉर्ज सोरोस की संस्था ओपन सोसायटी फाउंडेशन की भूमिका पर भी विस्तार से चर्चा है। बताया गया है कि किस तरह से सोरोस की संस्था ओएसएफ ने एंटी इंडिया और एंटी मोदी नैरेटिव बनाने के लिए फंडिंग की। सोरोस की संस्था ने क्रिस्टोफ जाफ्रेलॉट और कनाडाई-इंडियन एक्टिविस्ट रिकेन पटेल को फंडिंग मुहैया की। साल 2016 से 2022 के बीच पटेल की संस्था नमाती फाउंडेशन को सोरोस की संस्था ओएसएफ ने भारी भरकम रकम दी। 2023 में पटेल ‘फ्रेंड्स ऑफ डेमोक्रेसी’ ग्रुप के को-चेयर बनाए गए।

चुनाव हैक करने की साजिश

रिपोर्ट के मुताबिक जॉर्ज सोरोस से चला पैसा पटेल के पास से होते हुए भारत तक पहुंचा और फिर भारतीय मीडिया को भी मोटी रकम उपलब्ध कराई गई। लोकसभा चुनाव को एक तरह से हैक करने की इस विदेशी साजिश में इंडियन एक्सप्रेस जैसे अंग्रेजी के कुछ बड़े अखबार सिंडिकेट के रूप में शामिल हुए और मोटा पैसा कमाया। इस साजिश में कुछ भारत विरोधी और मोदी विरोधी ऑनलाइन न्यूज़ पोर्टल / संस्थाएं भी बढ़-चढ़कर शरीक थीं। दिलचस्प बात यह है कि जॉर्ज सोरोस की संस्था से पहले पटेल की संस्था को फंडिंग मिली। फिर पटेल की संस्था से यह फंडिंग कई इंडियन थिंक टैंक्स तक पहुंची। जैसे नई दिल्ली बेस्ड सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च (सीपीआर)। मोदी सरकार, सीपीआर का फॉरेन फंडिंग का लाइसेंस रद्द कर चुकी है।

सोशल मीडिया और विदेशी संस्थाओं का दखल

चुनाव हैक करने की इस साजिश में ट्विटर और फेसबुक का भी जमकर इस्तेमाल किया गया। चुनाव से ठीक पहले फ्रेंड्स ऑफ डेमोक्रेसी ने ‘कन्वर्सेशन ऑन इंडियन डेमोक्रेसी’ जैसी टॉक सीरीज आयोजित की। ‘मोदी मिराज’ जैसी रिपोर्ट स्पॉन्सर की, जिसमें मुख्य तौर पर नरेंद्र मोदी की अगुआई वाली सरकार की खूब आलोचना की गई थी। रिपोर्ट के मुताबिक फ्रेंड्स ऑफ डेमोक्रेसी ने ‘हिंदू फॉर ह्यूमन राइट्स’ और ‘फाउंडेशन लंदन स्टोरी’ जैसे संस्थानों से कोलैबोरेशन भी किया और उनकी अगुवाई में सरकार के खिलाफ तमाम प्रोटेस्ट हुए और सोशल मीडिया ट्रेंड्स वगैरह भी चलाया गया।

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