Hathras stampede
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रमेश चौहान की कलम से

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार वर्ष 2000 से 2013 तक देश में भगदड़ की घटनाओं में 2000 से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी। विगत् 11 साल में तो यह आंकड़ा कहीं ऊपर जा चुका है। वर्ष 2013 में आई इंटरनेशनल जर्नल ऑफ डिजास्टर रिस्क रिडक्शन की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में 79 प्रतिशत भगदड़ धार्मिक सभाओं और तीर्थ यात्राओं के कारण होती हैं।

किसी धार्मिक आयोजन में भगदड़ मची हो और 100 से अधिक लोगों की जान चली गई हो, ऐसा पहली बार नहीं हुआ है। ऐसी घटनाएं भविष्य में नहीं होंगी, इसकी भी कोई गारंटी नहीं है, क्योंकि जब भी कोई दुर्घटना होती है, उससे न तो शासन-प्रशासन-पुलिस कोई सबक लेती है और न ही आयोजक। यदि कोई सबक लेता तो हाथरस जैसा हादसा नहीं होता। हाथरस हादसे पर भी सरकार मुआवजा घोषित कर जांच बिठा देगी और अपने कर्तव्यों से इतिश्री कर लेगी। पूर्व की भांति जांच की एक और रिपोर्ट सरकारी फाइलों में रख दी जाएगी। प्रश्न यह नहीं है कि हाथरस में किसका सत्संग था? देशभर में समय-समय पर ऐसे बड़े धार्मिक आयोजन होते रहते हैं, जिनमें हजारों-लाखों की भीड़ जुटना आम बात है। ऐसा नहीं है कि किसी एक धर्म के अनुयायी ही ऐसे आयोजनों में पहुंचते हैं। सभी धर्मों में ऐसे आयोजन हो रहे हैं। दिन-प्रतिनिधि धार्मिक आयोजन और उनमें भीड़ भी बढ़ती जा रही है।

विडंबना यह है कि इतना बड़ा आयोजन होने के बावजूद वहां पर किसी तरह के राहत और बचाव के कोई पुख्ता इंतजाम नहीं थे। आमतौर पर प्रति वर्गमीटर में 5 से अधिक लोग नहीं होने चाहिए, लेकिन हमारे यहां धार्मिक आयोजनों में प्रति वर्गमीटर 10 से अधिक लोग जुट जाते हैं। हाथरस में भी ऐसा ही हुआ। इतनी अधिक भीड़ जुटने के बावजूद निकास द्वार केवल एक था और वो भी काफी छोटा था। हाथरस से लेकर लखनऊ तक पूरा सरकारी तंत्र राहत और बचाव कार्यों में जुट गया, लेकिन इतना भर करने से काम नहीं चलने वाला। हाथरस जैसे हादसों की पुनरावृत्ति रुकनी चाहिए। धार्मिक आयोजन करने से शासन-प्रशासन किसी को रोक नहीं सकता है, लेकिन नियम बनाकर उनका सख्ती से पालन कराना तो सरकार की जिम्मेदारी है, ताकि ऐसे हादसों से बचा जा सके।

आयोजकों को भी ऐसे हादसों को गंभीरता से लेना चाहिए। आने वाले भक्तों का ख्याल रखना उनकी पहली प्राथमिकता होनी चाहिए। यदि हमने पूर्व के ऐसे हादसों से सबक लिया होता तो ईश्वर का नाम लेने आए 100 से अधिक लोग अपनी जान न गंवाते। हमारे लिए हाथरस केवल एक घटना नहीं, एक सबक होना चाहिए।

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