Hathras stampede
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आरके सिन्हा
(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं)

उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले के सिकंदरा राव क्षेत्र में आयोजित एक ‘सत्संग’ के दौरान भगदड़ में मरने वालों की संख्या सवा सौ से ऊपर पहुंच गई है। जाहिर है, इस दिल दहलाने वाले हादसे से सारा देश ही हतप्रभ और शोकाकुल है। हाथरस में भी मौत का तांडव भगदड़ के कारण ही हुआ। बहुत साफ है कि प्रशासन ने भगदड़ की पुरानी घटनाओं से सबक नहीं लिया और इस कारणवश फिर से मासूमों की जानें चली गईं। दो साल पहले 2022 में माता वैष्णो देवी मंदिर में नए साल की रात को हुए हुई भगदड़ की घटना ने भी साबित कर दिया था कि हमें भीड़ नियंत्रण करना नहीं आता। माता के दरबार में पहुंचे श्रद्धालुओं के बीच रात करीब 12 बजे अचानक से जोर-जोर से जयकारे लगने लगे। उसके बाद धक्का-मुक्की शुरू हुई और भगदड़ मच गई। भगदड़ ने भयानक रूप ले लिया। रात करीब दो बजे के आसपास हुए हादसे में 12 तीर्थयात्रियों की मौत हो गई। वहीं एक दर्जन से अधिक लोग घायल हो गए।

क्या हाथरस के स्थानीय प्रशासन को पता नहीं था कि सत्संग में भक्तों की भारी भीड़ आएगी और इस कारण से वहां भगदड़ की स्थिति बन सकती है। पर हमारे यहां सरकारी प्रशासन की काहिली के कारण हादसे होना मामूली बात हो गई है। पहले हुए हादसों के बाद हाथरस के हादसे को भी भुला दिया जाएगा। इस बारे में किसी को कोई शक नहीं होना चाहिए।
एक बात समझ लें कि बड़े आयोजनों में भीड़ की निकासी की हमेशा बेहतर और वैकल्पिक व्यवस्था होनी चाहिए। इसके साथ ही नागरिकों और भक्तों को भी भीड़भाड़ वाले इलाकों से बचना चाहिए। वे अपनी लापरवाहियों की सारी जिम्मेदारी प्रशासन पर ही तो नहीं डाल सकते। उन्हें सोच-समझकर ही उन आयोजनों में शिरकत करनी चाहिए जहां पर बड़ी तादाद में जनता की उपस्थिति रहने वाली है।

हाथरस में हुई दुखद घटना कोई अकेली घटना नहीं है, क्योंकि पिछले कई वर्षों में भारत में धार्मिक सभाओं में भगदड़ के कारण कई मौतें हो चुकी हैं। वैष्णो देवी के अलावा, महाराष्ट्र में 2005 में मंदारदेवी मंदिर में हुई भगदड़ शामिल है, जिसमें 340 से ज़्यादा लोगों की जान गई थी, और 2008 में राजस्थान के चामुंडा देवी मंदिर में हुई भगदड़, जिसमें कम से कम 250 लोगों की मौत हुई थी। 31 मार्च, 2023 को, इंदौर शहर के एक मंदिर में एक प्राचीन ‘बावड़ी’ या कुएँ के ऊपर बनाई गई स्लैब ‘हवन’ कार्यक्रम के दौरान ढहने से कम से कम 36 लोगों की मौत हो गई थी। 14 जुलाई, 2015 को, आंध्र प्रदेश के राजमुंदरी में ‘पुष्करम’ त्योहार के पहले दिन गोदावरी नदी के किनारे एक बड़े स्नान स्थल पर भारी भीड़ जमा होने के कारण भगदड़ मच गई थी, जिसमें सत्ताइस तीर्थयात्री मारे गए थे और 20 अन्य घायल हो गए थे।

मुझे लगता है कि आजाद भारत की सबसे भयानक भगदड़ की घटना 1954 में प्रयागराज में चल रहे कुंभ मेले में हुई थी। उसमें सैकड़ों लोगों की जानें गईं थीं। प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के स्नान के लिए रोकी गयी भीड़ में मची भगदड़ के कारण यह दुर्घटना हुई थी। जांच की रिपोर्ट में आया था कि नेहरु ने अखाड़ों के स्नान से पहले स्नान करने का फैसला किया। इससे साधु खफा हो गए थे। इसी से वहां हंगामा हो गया। वहां मौजूद हाथी भी भड़क गए। उन्होंने भी दर्जनों लोगों को कुचल डाला। लेकिन इस बात को दबा दिया गया थाI ऐसा ही हादसा हरिद्वार के कुम्भ में नब्बे के दशक में भी हुआ जब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और वीर बहादुर सिंह के स्नान के लिये भीड़ को रोका गया था।

यह भी सच है कि भगदड़ कभी-कभी कुछ शातिर किस्म के तत्वों की घटिया हरकतों के कारण भी हो जाती हैं। धार्मिक स्थलों की मर्यादा की अनदेखी करते हुए वहां कुछ टुच्चे लोग घटिया हरकतें करने लगते हैं। दरअसल, मेलों और मंदिरों जैसे स्थानों पर मानवता के दुश्मनों की गिद्ध दृष्टि रहती है। इनके इरादों को निरस्त करना ही होता है। पिछले प्रयाग कुंभ के समय उत्तर प्रदेश सरकार ने मेले में तैनात होने वाले पुलिसकर्मियों को नेशनल सिक्योरिटी गार्ड्स यानी एनएसजी और सेना से ट्रेनिंग दिलवाई थी। ये भीड़ में ही घुसे रहे थे और पलक झपकते ही शरारती लोगों का काम तमाम करने में सक्षम थे। उसी तरफ की व्यवस्था धार्मिक आयोजनों में स्थायी रूप से रहनी चाहिए। याद रखें कि भीड़ वाली जगहों में किसी नेता, अभिनेता या लोकप्रिय शख्सियत के आने से भगदड़ के हालात पैदा हो जाते हैं। भीड़ उग्र और बेकाबू हो जाती हैI इसलिए प्रशासन को बहुत चौकस रहना चाहिए।

हाथरस हादसे की बात करते हुए मुझे यह भी कहने दें कि इस तरह के हादसे तब ही रूकेंगे जब हमारे प्रशासन की तैयारियां ठोस होंगी। वर्ना तो कुछ दिनों के शोर तथा मृतकों/घायलों के परिजनों को मुआवजा देने के बाद फिर से पहले की तरह से सब कुछ चलने लगेगा। हाथऱस में हुए आयोजन का प्रबंधन देखने वाले अफसरों से पूछा जाना चाहिए कि उन्होंने किस तरह की तैयारियां की थीं। उन अफसरों पर चाबुक भी चले जो अपने दायित्वों का निर्वाह करने से चूक गए।

हालांकि यह कहना सही नहीं होगा कि भीड़ के काबू से बाहर होने के कारण हादसे भारत में ही होते हैं। मक्का में 2015 में भगदड़ में 850 से ज्यादा हाजी अपनी जान गंवा बैठे थे। ये पूरी दुनिया के विभिन्न देशों से वहां पर हज के लिए पहुंचे थे।सऊदी अरब की मक्का मस्जिद के पास मीना में शैतान को पत्थर मारने की रस्म अदाएगी के बीच भगगड़ मची। इसी तरह से 2004 और फिर 2006 में शैतान को मारने की होड़ में सैकड़ों लोग रौंदे गए थे। अगर बात दुनियाभर की हो तो म्युजिक कंसर्ट से लेकर फुटबॉल के मैदान में भी भीड़ के बेकाबू होने के कारण बड़े हादसे होते रहे हैं। चीन के शंघाई शहर के एक बड़े डिस्को में अचानक आग लगने से सैकड़ों लोग मारे गये थे।

एक बार जान लें कि अगर प्रशासन की तैयारियां सही हों तो भीड़ के बेकाबू होने की घटनाएं रोकी जा सकती हैं। देखिए हम सत्संग या धार्मिक आयोजनों पर रोक तो नहीं लगा सकते। यह तो होते रहेंगे। हां, यह जरूरी सुनिश्चित किया जा सकता है कि भीड़ को नियंत्रण करने के बेहतर उपाय हो जाएं। तब हम मासूम लोगों की जान बचा पाने में सफल हो जाएंगे। आपदा प्रबंधन संस्थानों को चाहिये कि वे पूरे देश मेमन पंचायत स्टार तक भीड़ नियंत्रण की तकनीक का प्रशिक्षण दें।

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