prime-minister-of-india-planting-sapling
The Prime Minister, Shri Narendra Modi planting a sapling during his visit to the Mahabodhi Society in Colombo, Sri Lanka on March 13, 2015.
- Advertisement -

पर्यावरण को लेकर संयुक्त राष्ट्र ने हाल ही में जिस विषय पर चर्चा का आह्वान किया है, वह बंजर पड़ती जमीन और बढ़ता मरुस्थल है। पर्यावरण के मौजूदा हालात से कम से कम यह तो समझा ही जा सकता है कि अब सब कुछ हमारे नियंत्रण से बाहर जा रहा है। इस बार के ग्रीष्म काल को ही देख लीजिए, जिसने फरवरी से ही गर्मी का एहसास दिला दिया था और जून पहुंचते-पहुंचते अपना प्रचंड रूप दिखा दिया। पूरी दुनिया में औसतन तापक्रम बढ़ा है और अब प्रचंड गर्मी के दिन धीरे-धीरे बढ़ते जा रहे हैं। इस बात को राहत न मानें कि आने वाले समय में ये स्थिर हो जाएंगे। आज दुनिया में 80 प्रतिशत लोग इस गर्मी को झेल रहे हैं और ऐसे गर्म दिनों की संख्या पहले प्रतिवर्ष 27 के आसपास होती थी, लेकिन अब वर्ष में 32 दिन ऐसे होते हैं, जब गर्मी खतरे की सीमा तक पहुंच जाती है। अभी बिहार, जैसलमेर, दिल्ली में भयंकर हीटवेव की खबर आई थी, लेकिन देश के अन्य हिस्सों में भी हीटवेव ने लोगों की हालत बदतर कर दी है।

इस बढ़ती गर्मी का सबसे महत्वपूर्ण कारण तो यही है कि हमने पृथ्वी और प्रकृति के बढ़ते असंतुलन की तरफ कभी ध्यान ही नहीं दिया। हमने अपनी जीवन-शैली को कुछ इस तरह बना लिया है कि अब हम उन आवश्यकताओं से बहुत ऊपर उठ गए हैं, जो जीवन का आधार थीं। अब हमने विलासिताओं को भी आवश्यकताओं में बदल दिया है, जिनके कारण पृथ्वी के हालात गंभीर होते चले गए।

अपने देश में माना जाता है कि 35 फीसदी भूमि पहले ही डिग्रेड हो चुकी है और इसमें से भी 25 फीसदी बंजर बनने वाली है। ज्यादातर ऐसी भूमि उन राज्यों में है, जो संसाधनों की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। उदाहरण के लिए, झारखंड, गुजरात, गोवा, दिल्ली और राजस्थान भी इनमें शामिल हैं। इन क्षेत्रों में 50 फीसदी से ज्यादा भूमि बंजर होने वाली है। थोड़ी राहत की बात है कि उत्तर प्रदेश, राजस्थान, केरल, मिजोरम जैसे राज्यों में अभी मात्र 10 प्रतिशत भूमि में ही बंजरपन दिखाई दे रहा है।

जहां पहले वन होते थे, तालाब थे, या जहां प्रकृति के अन्य संसाधनों के भंडार होते थे, उन सबको अन्य उपयोगों में ले लिया गया है। एक अनुमान के मुताबिक, दुनिया भर की 50 प्रतिशत भूमि को अन्य उपयोगों में लगा दिया गया है। चिंताजनक बात यह है कि अब हमारे पास भी ऐसा विकल्प नहीं बचा है, जो बंजर पड़ती भूमि को फिर से हरा-भरा कर सके। एक ही रास्ता है कि अगर हम देश में वन लगाने को जन आंदोलन का रूप दे दें, तो शायद कुछ नियंत्रण हो पाए।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘एक पेड़ मां के नाम’ अभियान इसी जरुरत को देखते हुए शुरू किया है।

- Advertisement -

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here