RK Sinha, Founder SIS, Former member of Rajya Sabha, at his residence, for IT Hindi Shoot. Phorograph By - Hardik Chhabra.
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नरेन्द्र मोदी सरकार के केन्द्र में लगातार तीसरी बार सत्ता पर काबिज होने के बाद एक उम्मीद पैदा हुई है कि सरकार अब बैंकिंग सेक्टर को अधिक पारदर्शी और बेहतर बनाने की दिशा में ठोस कदम उठाती रहेगी। बीते कुछ सालों के दौरानभारतीय बैंकों ने जितने उतार-चढ़ाव झेले हैंशायद किसी अन्य देश ने नहीं झेला होगा। कई भारतीय बैंक अनेक घोटालों-घपलोंऋण अदायगी न होनेजालसाजियोंअनर्जक परिसम्पत्तियों (नॉन परफॉर्मिंग एसेट्स) के बढ़ते बोझकर्जमाफी की गलत नीतियों आदि के कारण कई बार तो पूरी तरह डूब गए या भारी घाटे में चले गए। इससे निपटने के लिए पूर्ववर्ती केंद्र सरकारों ने कुछ कदम भी उठाएलेकिन, इनके आधे-अधूरे कार्यान्वयन से आशातीत सफलता नहीं मिली।  

लेकिन, राहत की बात है कि मोदी सरकार ने पिछले दस वर्षों में बैकिंग क्षेत्र में फैली गड़बड़ियों को दूर करने के लिए अनेक फौरी कदम उठाएजिससे बैंकों की स्थिति में अब धीरे-धीरे सुधार आने लगा है। अनेक बैंक न सिर्फ घाटे से उबर कर लाभ की ओर अग्रसर हैंबल्कि अनेकों घोटालों पर लगाम भी लगी है। अनेक घोटालेबाज़ों की सम्पत्ति कुर्क कर ऋण वसूली भी की गई हैबैंकों का पुनर्पूंजीकरण किया गया और अनर्जक परिसम्पत्तियों का बोझ काफी कम हुआ है। क्या यह सुखद स्थिति नहीं है कि 2013 से 2017 के बीच बैंकों की अनर्जक परिसम्पत्तियां 12.47 प्रतिशत थीजो धीरे-धीरे लुढ़कते हुए सितंबर 2023 में 3.2 प्रतिशत हो गईभले ही इसमें सरकार द्वारा बैंकों के पुनर्पूंजीकरण का एक महत्वपूर्ण योगदान रहा। अब सवाल यह है कि क्या बैंकों में सुधार की वर्तमान स्थिति भविष्य में भी जारी रहेगी या “लौट के बुद्धु घर आए” की कहावत चरितार्थ होगी

भारतीय बैंक इस तथ्य के साक्षी हैं कि देश की आज़ादी से पहले और बाद में भी वे डूबते रहे या भारी घाटा सहते रहे हैं। यह उबड़-खाबड़ स्थिति सोचने को विवश करती है कि जब तक लंबे समय तक सुधार प्रक्रिया जारी नहीं रहेगीतब तक समस्या का स्थायी निराकरण संभव नहीं है। इस विषय पर वरिष्ठ लेखक श्रीपाल जैन की हालिया प्रकाशित पुस्तक –“भारतीय बैंकों का बदलता चेहरा”उपरोक्त विविध पहलुओं का बखूबी विश्लेषण करती है। आज़ादी से पहले और बाद में बैंकों में घोटालोंमहाघोटालेबाज़ोंजालसाजी के हथकंडोंबैंकिंग में साइबर अपराधोंयेस बैंक के उत्कर्ष एवं पतनअनर्जक परिसम्पत्तियों के मकड़जाल आदि का विस्तृत विवरण दिया गया है। साथ हीबैंकों के निजीकरण की गूंजकृषि ऋणमाफी के अर्थशास्त्रनोटबंदीजन-धन योजनारिजर्व बैंक की स्वायत्तताडिजिटल बैंकिंग की बढ़ती लोकप्रियता एवं जोखिम आदि की आलोचनात्मक चर्चा की गई है। 

देश में आज़ादी के बाद निजी और सरकारी बैंक दोनों थेलेकिन, उनमें अनेक घोटाले हुए और कई बैंक डूबे भी। फिर भीसरकारी बैंक अर्थव्यवस्था की प्रगति एवं व्यवसाय में वृद्धि में एक प्रमुख इंजन रहे। निजी बैंक आम लोगों के आसानी से खाते भी नहीं खोलते थे। जुलाई 1969 में बैंकों के राष्ट्रीयकरण से आम जनता की बैंकों तक पहुंच बढ़ने लगी। इस दौर में अनेक बैंकों का विलय हुआजिसके कतिपय सकारात्मक परिणाम भी सामने आने लगे। लेकिन धीरे-धीरे सरकारी बैंकों में भ्रष्टाचाररिश्वतखोरीराजनीतिक हस्तक्षेप आदि से असली और फर्जी कंपनियों को अनाप-शनाप मात्रा में ऋण दिए गएजिनमें से कइयों की वसूली नहीं हुई या आंशिक वसूली हो पाई। इससे सरकारी और निजी बैंकों दोनों को भारी घाटा हुआ। 

1990 के दशक के आरंभ में उदारीकरण की नीति अपनाई गई और कुछ समय के बाद आधुनिक प्रौद्योगिकी से लैंस (क्रेडिट कार्यडेबिट कार्यचेकों का शीघ्र समशोधनबीमा. म्यूचुअल फंड खोलना आदि) एच.डी.एफ.सी.आई.सी.आई.सी.आई. बैंकयेस बैंक जैसे निजी बैंक लोकप्रिय हुए। निजी बैंकों के नए उत्पादोंयोजनाओं और आधुनिक प्रौद्योगिकी ने सरकारी बैंकों के सामने तगड़ी प्रतिस्पर्धा पेश कर दी। इससे सरकारी एवं अन्य निजी बैंक भी नए उत्पादोंयोजनाओं और आधुनिक प्रौद्योगिकी का सहारा लेने को विवश हुए। नतीजतनसरकारी एवं निजी बैंकों की स्थिति में कुछ सुधार अवश्य दर्ज किया गयालेकिन उदारीकरण की लहर में घोटालों-घपलोंरिश्वतखोरीभ्रष्टाचारराजनीति हस्तक्षेप का सिलसिला भी आगे बढ़ता गया। हर्षद मेहताकेतन पारिख के घोटाले और ग्लोबल ट्रस्ट जैसे बैंक के डूबने जैसे घटनाक्रम इसी काल में हुए। 

मोदी सरकार के प्रथम कार्यकाल में पी.एन.बी. बैंकपी.एम.सी. बैंक एवं अन्य सहकारी बैंकोंयेस बैंक के घोटालोंमहाघोटालेबाज़ों के विदेश भागने से भारी संकट पैदा हो गया था। बैंकों की अनर्जक परिसम्पत्तियों को बोझ रिकॉर्ड स्तर को छू गया। ऐसे में छोटे बैंकों का बड़े सरकारी बैंकों में विलय कर उनकी संख्या सीमित रखने की सराहनीय पहल की गई। इस बीच भारत के व्यापार में बेतहाशा वृद्धि जारी रहीजिससे बैंकों में तरलता बरकरार रखी जा सकी। रिजर्व बैंक की निगरानी को अधिक चुस्त-दुरुस्त किया गया। नोटबंदीजन-धन योजनाआवास योजनाओं एवं आत्मनिर्भर भारतमैन्यूफैक्चरिंगऔर अन्य सेक्टरों को भारी बढ़ावा मिला। इस बीच कोविड-19 की महामारी ने दस्तक दीजिससे अर्थव्यवस्था को गहरा धक्का लगा। लेकिनमोदी सरकार ने कुछ माह में ही आर्थिक मोर्चे पर नियंत्रण पाने के ठोस प्रयास किए। कोरोना महामारी के दौरान डिजिटल बैंकिंग के जरिए लेन-देन भारी मात्रा में बढ़ाजिसने अब तक दुनिया में सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं। यू.पी.आई. का देश में ही नहींबल्कि विदेश में भी डंका बज रहा है। 

इसके बावजूद बैंकों के स्वास्थ्य को लेकर निश्चिंत नहीं हुआ जा सकता। छिटपुट बैंक घोटाले अभी भी हो रहे हैंडिजिटल बैंकिंग में फ्रॉड्स बढ़े हैंबैंकिंग में साइबर अपराधियों का जाल लगातार फैल रहा है। इससे न केवल बैंकोंबल्कि खाताधारकों को भारी चपत लग रही है। इस मामले में फुलप्रूफ नियंत्रण अभी तक कायम नहीं पाया है। श्रीपाल जैन ने अपनी पुस्तक के निष्कर्ष में सही कहा है –“वर्तमान में अधिकतर बैंक लाभ की ओर अग्रसर हैं। मोदी सरकार ने समस्याओं एवं चुनौतियों को अवसरों में तब्दील किया हैजिसमें रिजर्व बैंक की निगरानी का प्रमुख योगदान माना जा सकता है।”लेकिनजब तक बैंकों में भ्रष्टाचाररिश्वतखोरीफर्जी दस्तावेजों के आधार पर कंपनियों या व्यक्तियों को ऋण देने और बैंकिंग में साइबर अपराधियों की घुसपैठ नहीं रोकी जातीतब तक बैंकों की मजबूती और फुलप्रूफ सुरक्षा का सपना आधा-अधूरा ही रहेगा। 

 (लेखक   वरिष्ठ संपादकस्तंभकार और पूर्व सांसद हैं)

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