ममता सिंह की कलम से
आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू और तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी ने मौजूदा तनाव भरे राजनीतिक माहौल में एक नई राह दिखाई है। दोनों राज्यों के बीच लंबित मुद्दों को हल करने के लिए उन्होंने एक बैठक की। बैठक के बहुत सार्थक होने की खबर है। इसे बहुत साहसिक और सराहनीय पहल माना जा रहा है। इसके पीछे छिपा राजनीतिक साहस इस तथ्य से रेखांकित होता है कि अलग तेलंगाना राज्य गठित हुए दस साल हो चुके हैं लेकिन अब तक इस संबंध में कोई भी ठोस, सार्थक पहल नहीं हुई थी।
तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस ) की अगुआई में चले लंबे आंदोलन के बाद जून 2014 में अलग तेलंगाना राज्य गठित हुआ। उस दौरान तेलुगू देशम के एन चंद्रबाबू नायडू जैसे नेता इस मांग के खिलाफ थे। स्वाभाविक रूप से इस वजह से दोनों पार्टियों और नेताओं के रिश्तों में दूरी आ गई थी। दोनों राज्यों में जैसा राजनीतिक माहौल बना हुआ था, उसमें विवाद निपटाने के क्रम में अगर थोड़ा-बहुत भी झुकना पड़ता तो संबंधित दल और नेता पर राज्य के हितों से समझौता करने का आरोप लग जाता।
2019 तक नायडू के आंध्र प्रदेश का मुख्यमंत्री बने रहते दोनों पक्षों से इस दिशा में कोई पहल नहीं हुई। 2019 में जब जगन मोहन रेड्डी आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री बने तो तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने उनका स्वागत किया। तब दोनों राज्यों के अफसरों के बीच कुछ बैठकें हुईं, लेकिन कोई सहमति नहीं बन सकी। सहमति बनाने की कोशिश मुख्यमंत्रियों की बैठक में हो सकती थी, जो नहीं हुई।
ऐसे में दोनों राज्यों में नई सरकारों के मुखिया जिस तत्परता से मिले हैं, उसके पीछे एक बड़ा फैक्टर है- इन दोनों के बीच की बेहतरीन पर्सनल केमिस्ट्री। तेलंगाना के मौजूदा मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी संयुक्त आंध्र प्रदेश में दो बार टीडीपी के टिकट पर विधायक रह चुके हैं। उन्हें एन चंद्रबाबू नायडू का करीबी माना जाता था। दूसरी बात यह भी है कि विवादित मुद्दों पर सहमति बनना दोनों राज्यों के हक में है। लंबित मुद्दों में कैश बैलेंस और बैंक डिपॉजिट के बंटवारे का सवाल भी है, जिसके हल होने पर उन फंड्स के इस्तेमाल की राह खुलेगी जिनकी जरूरत कल्याणकारी योजनाएं आगे बढ़ाने के लिए दोनों राज्य सरकारों को है।
कम से कम 14 मसले दोनों राज्यों के बीच लंबित हैं जिनमें दोनों राज्यों के एक-दूसरे पर बिजली बकाये का निपटारा करने से लेकर 91 संस्थानों को बांटने तक कई जटिल मुद्दे शामिल हैं। कृष्णा और गोदावरी के पानी बंटवारे जैसे कुछ मुद्दे तो केंद्र के दखल की मांग करते हैं। बहरहाल, दोनों राज्यों के नेतृत्व ने इस पहल के जरिए अपने स्तर पर अधिकतम संभव सहमति बनाने की कोशिश शुरू की है जो सकारात्मक राजनीति का एक बढ़िया उदाहरण है।