आर्सेनिक मुक्त पानी
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आरा: गोमुख गलेशियर से निकलकर ऋषिकेश हरिद्वार और बनारस होते हुए बक्सर और भोजपुर से होकर आगे राजधानी पटना और फिर बंगाल की खाड़ी के लिए निकल रही जीवनदायिनी गंगा के किनारे बसे गावों के लोगों को अब आर्सेनिक मुक्त पानी की सुविधा मिलेगी.

बक्सर और भोजपुर में गंगा किनारे बसे सैकड़ो गांवों में आर्सेनिक युक्त पानी का ही लोग सेवन करने को बाध्य हैं जिससे लोगों का स्वास्थ्य प्रभावित होता है. अब किलकारी बाल भवन के चार बच्चों ने ऐसा संयंत्र तैयार किया है जो आर्सेनिक युक्त पानी का शुद्धिकरण कर इसे आर्सेनिक मुक्त पानी में तब्दील कर देगा. किलकारी बाल भवन के इन चार बच्चों के पांच सालों के प्रयास को अब सफलता मिली है. इस सफलता की संभावना बड़ी है जिससे गंगा नदी के किनारे भूगर्भ में मौजूद आर्सेनिक को खत्म करने की दिशा में बड़ी पहल शुरू हो सकती है. इससे गंगा किनारे निवास करने वाले दो करोड़ की आबादी प्रत्यक्ष तौर पर लाभान्वित होगी.

गंगा किनारे बसे गावों में स्थित चापाकल और नल में किलकारी बाल भवन के बच्चों द्वारा पांच साल की कड़ी मेहनत से बनाये गए संयंत्र को फिलटर के रूप में लगाया जायेगा. यह फिल्टर पानी में मौजूद आर्सेनिक को अलग निकाल देगा. बक्सर और भोजपुर जिले के कई गावों में चापकलों और नलों में इस फिल्टर को लगाया जा चुका है और यहां के लोगों को आर्सेनिक मुक्त पानी की व्यवस्था करके उनकी जिंदगी में नए बदलाव की कहानी लिखी जाने लगी है. किलकारी बाल भवन के बाल वैज्ञानिक अभिजीत कुमार, अर्पित, अक्षत और शाम्भवी के बने फिल्टर बड़े पैमाने पर गंगा किनारे के उन जिलों और गावों में लगेंगे जहां आर्सेनिकयुक्त पानी है. अर्पित ने बताया कि फिल्टर बनाने में पांच साल की मेहनत लगी है. अब दो करोड़ की आबादी को आर्सेनिकमुक्त पानी उपलब्ध कराना लक्ष्य है. सबसे पहले स्कूलों के चापाकल और नल में इसे लगाया जाएगा. इसके बाद गांव और फिर हर घर तक यह फिल्टर पहुंचेगा. यह फिल्टर पांच हजार की आबादी के लिए 7.5 लाख रुपये के खर्च में तैयार होगा.

आबादी के हिसाब से यह फिल्टर तैयार होता है.जहां पर एक हजार से 15 सौ तक की आबादी है वहां के लिए एक फिल्टर बनाने में डेढ़ लाख रूपये तक का खर्च आता है.जहां पर पांच हजार की आबादी है वहां पर फिल्टर बनाने में साढ़े सात लाख रूपये तक का खर्च आता है. बाल भवन के बच्चों ने बताया कि आगे और तीन तरह के फिल्टर बनाये जाएंगे. इनमें घर में इस्तेमाल करने, समुदाय के लिए और वार्ड स्तर के लिए अलग अलग फिल्टर शामिल है. बाल वैज्ञानिक अभिजीत ने बताया कि फिल्टर बनाने में मॉड्यूलर मैग्नेटिज्म तकनीक प्रॉपर्टीज को हटा दिया जाता है. इसे हटाने से पानी आर्सेनिकमुक्त हो जाता है. बाल वैज्ञानिक शाम्भवी ने बताया कि पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर अक्टूबर 2021 में मनेर,भोजपुर के उदवंतनगर और बड़हरा के साथ ही बक्सर जिले के कई गावों से यह फिल्टर लगाने की शुरुआत हो चुकी है. भोजपुर के 15 से 20 और बक्सर के 15 गांवों में यह फिल्टर लगाया जा चूका है.अक्षत और अर्पित ने बताया कि फिल्टर का एक उत्पाद भारत सरकार के जेम पोर्टल पर भी उपलब्ध है. अब तक सैकड़ों फिल्टर बिक चुके हैं. फिलहाल 40 फिल्टर का ऑर्डर इन बाल वैज्ञानिकों को मिला है. अब तक फिल्टर को 5 पेंटेंट मिल चुके हैं. इनमें एक भारत सरकार से जुडा है तो दूसरा इंटरनेशनल पेटेंट शामिल है. तीन पेटेंट भारत सरकार से इसके डिजाइन को मिला हुआ है. अभी लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण विभाग के साथ इसपर शोध चल रहा है.

बताया जाता है कि एक पैसे की लागत में 10000 लीटर पानी में मौजूद आर्सेनिक फिल्टर होता है. 5000 ऐसे वार्ड हैं जहां पानी में आर्सेनिक 10 से 1000 गुना अधिक है. बाजार में आर्सेनिक फिल्टर करने वाली जो मशीनें हैं वह काफी महंगी हैं और आर्सेनिक को पानी से अलग करने की क्षमता काफी कम है. बाल वैज्ञानिकों द्वारा तैयार संयंत्र में एक घंटे में 1.5 लाख लीटर पानी साफ करने की क्षमता है. आर्सेनिक के क्षेत्र में काम कर रहे कई एक्सपर्ट का मानना है कि किलकारी बाल भवन के बच्चों ने काफी मेहनत की है. किलकारी बाल भवन की निदेशक ज्योति परिहार ने बताया कि फिल्टर तैयार करने में इन्हें कई शोध भी करने पड़े हैं.अब इस फिल्टर से गंगा किनारे बसे और आर्सेनिक की समस्या से जूझ रहे स्थानीय लोगों को बड़ी संख्या में फायदा मिल रहा है. काफी बड़ी आबादी को अब आर्सेनिक मुक्त पानी उपलब्ध हो रहा है.

बता दें कि बक्सर और भोजपुर जिले के गंगा किनारे रहने वाले लोगों को आर्सेनिक युक्त पानी से जूझना पड़ रहा है. यहां पीने के पानी में काफी बड़े लेवल तक आर्सेनिक मौजूद है. आर्सेनिक युक्त पानी से गंगा किनारे बसे लोगों को चर्म रोगों के साथ साथ कई बिमारियों से जूझना पड़ रहा है. कैंसर जैसी गंभीर बीमारी से भी लोगों को जूझना पड़ता है. एक रिसर्च के मुताबिक भोजपुर जिले के बड़हरा प्रखंड स्थित गंगा किनारे बसे मौजमपुर, सिन्हा, सोहरा, त्रिभुवानी, पीपरपांति जैसे गावों में बच्चों में जन्म के साथ ही जन्मान्धता जैसी बीमारी सामने आने का मुख्य कारण वहां के भुगर्भ में मौजूद आर्सेनिक को बताया गया जिसे हैण्डपम्प और नल के माध्यम से पीने के बाद ऐसी बीमारी से ग्रस्त बच्चों का जन्म होना बताया गया.
अब किलकारी बाल भवन के बाल वैज्ञानिको की पहल रंग लाई है और गंगा किनारे बसे गावों के लोगों में स्वास्थ्य के क्षेत्र में नई क्रांति की शुरुआत होने जा रही है.

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