शहादत दिवस पर सेंट्रल जेल में फांसी स्थल पर खुदीराम बोस को दी गई सलामी कमिश्नर डीएम, , एसएसपी सहित अन्य अधिकारियों ने दी श्रद्धांजलि
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मुजफ्फरपुर: मुजफ्फरपुर में सेंट्रल जेल में शहीद खुदीराम बोस के शहीद दिवस पर समारोह का आयोजन किया गया, जिसको लेकर सेंट्रल जेल को फूल और रंग-बिरंगे बल्बों से सजाया गया।अहले सुबह उनके फांसी स्थल पर सेंट्रल जेल में सलामी दी गई। जेल के अंदर उनके सेल और फांसी स्थल को सजाया गया। सेल के अंदर शहीद के चित्र को फूल अगरबत्ती धूप दिखा नमन करते हुए श्रद्धांजलि दी गई। सेंटर जेल के बाहर लगे प्रतिमा पर भी लोगों ने माल्यापर्ण किया। इस मौके पर एसपी, सिटी एसपी, जेल प्रशासन और अन्य अधिकारी मौजूद रहे। शहीद खुदी राम बोस के परिजन बंगाल से पहुंचे थे।

डीएम सुब्रत कुमार सेन ने उनके शहादत की कहानी को याद करते हुए कहा कि शहीद खुदीराम बोस का आज शहीद दिवस है। आज के दिन ही उन्हें इस जेल में फांसी दी गई थी। हम लोगों को उनके जीवन से बड़ी सीख लेनी चाहिए। 18 वर्ष की उम्र में जिस तरह की शहादत उनलोगों ने दी, जो भी स्वतंत्रता सेनानी हैं जिन्होंने बलिदान दिए। उनके वजह से आज यह माहौल हम लोग देख रहे हैं, तो उन्हें हम लोगों ने श्रद्धासुमन अर्पित किया है। हमलोगों को उनके जीवन से बहुत बड़ी सीख लेने की जरूरत है।

आपको बता दें कि खुदीराम बोस को आजादी की लड़ाई में फांसी पर चढ़ने वाला सबसे कम उम्र का क्रांतिकारी माना जाता है। उनका जन्म बंगाल के मिदनापुर के हबीबपुर गांव में 3 दिसंबर 1889 को हुआ था। महज 9वीं कक्षा की पढ़ाई के बाद उन्होंने स्कूल छोड़ दिया था। इसके बाद वो रिवॉल्यूशनरी पार्टी के सदस्य बने और वंदे मातरम् के पर्चे बांटने में बड़ी भूमिका निभाई। माता-पिता की मृत्यु के बाद बड़ी बहन ने ही खुदीराम का पालन-पोषण किया। बता दें कि 1905 में बंगाल का विभाजन होने के बाद खुदीराम बोस ने सत्येंद्रनाथ बोस के नेतृत्व में अपने क्रांतिकारी जीवन की शुरुआत की थी।

18 अप्रैल 1908 को खुदीराम और उनका एक साथी मुजफ्फरपुर के जज किंग्सफोर्ड को मारने के लिए मुजफ्फरपुर निकल पड़े। दोनों ने मिलकर तय किया कि किंग्सफोर्ड जब बग्घी से वापस आएगा, तभी बम फेंक देंगे। हुआ भी कुछ ऐसा ही, यानी जब बग्घी किंग्सफोर्ड के घर पहुंची तो दोनों ने बम फेंक दिया, लेकिन जज की जान बच गई। जिस बग्घी पर खुदीराम ने बम फेंका उसमें दो महिलाएं सवार थीं, जिनमें से एक की इस हमले में मौत हो गई। इसी घटना के चलते खुदीराम बोस को 1 मई 1908 को गिरफ्तार कर लिया गया था। बता दें, हत्या के इस मुकदमे के बाद अदालत ने खुदीराम को फांसी की सजा सुनाई।

जज कॉर्नडॉफ की अदालत ने सुनवाई के दौरान जब खुदीराम से सवाल किया कि क्या तुम फांसी की सजा का मतलब जानते हो? इस पर उन्होंने कहा कि इस सजा और मुझे बचाने के लिए मेरे वकील साहब की दलील दोनों का मतलब अच्छी तरह से जानता हूं। मेरे वकील साहब ने कहा है कि मैं अभी कम उम्र का हूं। इस उम्र में बम नहीं बना सकता। जज साहब मेरी आपसे गुजारिश है कि आप खुद मेरे साथ चलें। मैं आपको भी बम बनाना सिखा दूंगा। अदालत ने खुदीराम बोस को फांसी की सजा सुनाने के साथ ऊपर की अदालत में अपील का वक्त भी दिया। हालांकि, ऊपरी अदालतों ने मुजफ्फरपुर की अदालत के फैसले पर ही मुहर लगाई। ऐसे में, 11 अगस्त 1908 को उन्हें मुजफ्फरपुर जेल में फांसी दे दी गई।

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