hindi diwas
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साल 1975 में फिल्म आई थी ‘चुपके-चुपके’। ऋषिकेश मुखर्जी निर्देशित इस फिल्म में मुख्य किरदार के रूप में अभिनेता धर्मेंद्र थे, जो वनस्पति शास्त्र के प्रोफेसर बने थे, लेकिन अपनी पत्नी अभिनेत्री शर्मिला टैगोर के जीजा अभिनेता ओमप्रकाश को परेशान करने के लिए वो शुद्ध हिंदी का सहारा लेते हैं। धर्मेंद्र ऐसी शुद्ध हिंदी बोलते हैं, जो जीजा जी को समझ नहीं आती और वो परेशान हो जाते हैं। यह सत्य है कि यदि हम शुद्ध हिंदी का प्रयोग आम बोलचाल में करने लगेंगे तो शायद हिंदी बोलने वाले अधिकांश लोगों को भी यह ठीक से समझ नहीं आएगी। आज 14 सितंबर है। इस तिथि को हम हिंदी दिवस के रूप में मनाते हैं। आप स्वयं से सवाल कीजिए, जिस वर्तनी का आप प्रयोग करते हैं, क्या वो शुद्ध हिंदी की है? जवाब न में होगा।

भारत लंबे समय तक विदेशी आक्रांताओं से जूझता रहा। अरब आए, तुर्क आए, मुगल आए, पुर्तगाली आए, स्पिनिश आए, फ्रांसीसी आए, अंग्रेज आए और सभी अपनी-अपनी भाषा साथ लाए। हमने सभी भाषाओं के शब्दों को हिंदी के साथ आत्मसात कर लिया। हिंदी के साथ 3500 फारसी, ढाई हजार अरबी, 50 पोश्तों, 125 तुर्की के शब्द समाहित हो गए। हमने पुर्तगाली, अंग्रेजी, स्पेनिश, फ्रांसिसी आदि के शब्दों का समावेश भी हिंदी के साथ कर लिया। जैसे, हम किसी से समय नहीं टाइम पूछते हैं। कुल मिलाकर आज हम शुद्ध नहीं, मिश्रित हिंदी का उपयोग कर रहे हैं। आज जिस हिंदी की खड़ी बोली का हम प्रयोग करते हैं, उसकी नींव भारतेंदु हरिश्चंद्र ने डाली थी। भारतेंदु हरिश्चंद्र ने नाटकों, कविता, किस्सागोई और कहावतों के माध्यम से हिंदी के उत्थान के भगीरथ प्रयास शुरू किए। फिर समय के साथ हिंदी आगे बढ़ती चली गई। 19वीं सदी के प्रारंभ में स्वतंत्रता आंदोलन को आगे बढ़ाने में हिंदी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

एक तरह से हिंदी पूरे भारत की सर्वमान्य भाषा बनकर उभरी। शायद यही कारण था कि हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने की पहल न केवल महात्मा गांधी, बल्कि उस दौर के देश के कई बड़े नेता कर रहे थे। साल 1918 में हिंदी साहित्य सम्मेलन की महात्मा गांधी ने अध्यक्षता की थी। उस सम्मेलन में उन्होंने कहा था कि हिंदी ही देश की राष्ट्रभाषा होनी चाहिए। संविधान के अनुच्छेद 351 में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि संघ का यह कर्तव्य होगा कि वह हिंदी का प्रसार बढ़ाए, उसका विकास करे, जिससे वह भारत की सामासिक संस्कृति के सभी तत्वों की अभिव्यक्ति का माध्यम बन सके। हालांकि, साल 1965 में जब हिंदी को राष्ट्रभाषा बनने के प्रयास चल रहे थे, तब दक्षिण भारत के राज्यों में विरोध के कारण हिंदी राजभाषा तक सीमित होकर रह गई। सरकारी कामकाज मुख्य रूप से अंग्रेजी में होता रहा, लेकिन नब्बे के दशक में हिंदी को एक बार फिर नए पंख मिले।

मीडिया, बाजार, इंटरनेट, शिक्षा समेत करीब-करीब सभी जगह हिंदी दिखने लगी। आज हिंदी का दबदबा न केवल भारत, बल्कि दुनिया भर में बढ़ा है। दुनिया में बोली जाने वाली सर्वाधिक भाषाओं में हिंदी तीसरे स्थान पर आती है। आज हिंदी 60 करोड़ से अधिक लोगों की भाषा है। देसी नहीं, मल्टीनेशनल कंपनियां भी हिंदी को लेकर सहज हुई हैं। पिछले 10 वर्षों से देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दुनिया के हर मंच पर हिंदी में बात करते हैं। आज केंद्र सरकार का अधिकतर काम हिंदी में होना प्रारंभ हो गया है, जो हिंदी के लिए एक सुखद बात है। फिर भी हिंदी को लेकर बहुत काम करने की आवश्यकता है।

खासकर हिंदी व्याकरण और वर्तनी को मजबूत करने की जरूरत है। आज बाजारों में हिंदी के बिल बोर्ड लगे मिलते हैं, लेकिन सबसे ज्यादा अशुद्ध हिंदी इन्हीं बिल बोर्ड्स पर लिखी होती है। सरकारी बिल बोर्ड्स भी इससे अछूते नहीं हैं। एक विडंबना यह भी कि देश के सुप्रीम कोर्ट में आज भी हिंदी स्वीकार्य नहीं है। केवल एक दिन हिंदी दिवस मनाने के बजाय हमारे 365 दिन हिंदी को समर्पित होने चाहिए।

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