bangladesh violence on hindus
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Lalit garg
Lalit garg

बांग्लादेश में हिंदू मंदिरों एवं हिन्दुओं पर हो रहे हमले, मशहूर जेशोश्वरी मंदिर से मुकुट का चोरी होना, हिन्दू अल्पसंख्यकों पर जबरन इस्तीफे के लिये दबाव डालने की घटनाएं, दुर्गा पूजा के पंडाल पर हमले चिन्ता के बड़े कारण हैं। बीते अगस्त से शुरू हुई राजनीतिक उथल-पुथल के बीच शेख हसीना का प्रधानमंत्री पद से हटना और भारत आने के बाद बांग्लादेश में भारत विरोधी गतिविधियों को असामाजिक तत्वों व कट्टरपंथियों द्वारा हवा दिया जाना शर्मनाक एवं विडम्बनापूर्ण है। नई दिल्ली में बांग्लादेश के हिन्दू-अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के प्रश्न को लेकर बार-बार चिंता तो व्यक्त की जा रही है, लेकिन करारा एवं सख्त संदेश देने की कोई कोशिश होती हुई नहीं दिख रही है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एवं भाजपा सरकार के शासन में यदि ऐसी घटनाओं पर सख्ती नहीं बरती गयी तो फिर कब बरती जायेगी? यह विडंबना ही है कि नोबेल शांति पुरस्कार विजेता व कार्यवाहक सरकार के मुखिया का दायित्व निभा रहे मोहम्मद यूनुस के कार्यकाल में हिन्दुओं एवं उसके प्रतीकों को निशाना बनाया जाना किसी अन्तर्राष्ट्रीय साजिश का हिस्सा हो सकता है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने नागपुर में विजयदशमी पर्व पर आयोजित रैली को सम्बोधित करते हुए हिन्दुओं पर हो रहे इन हमलों को लेकर बड़ा संदेश दिया है।

बांग्लादेश की आबादी में 7.95 फीसदी-सवा करोड़ से ज्यादा हिंदू शामिल हैं। पाकिस्तान और अफगानिस्तान में हिंदुओं के खिलाफ जो कुचक्र रचे गये, उसी तरह की साजिश बांग्लादेश में सिर उठा रही है। एक रिपोर्ट के मुताबिक पिछले दो महीने में बांग्लादेश के 52 जिलों में हिंदू समुदाय पर हमले की 200 से ज्यादा घटनाएं हुई। आज बांग्लादेश सांप्रदायिकता एवं कट्टरता की आग में झुलस रहा है। सांप्रदायिकता और धार्मिक कट्टरता लोकतंत्र के लिए सबसे बड़ा खतरा है। खतरे की गंभीरता को देखते हुए वहां अंतरिम सरकार ने हिंदू मंदिरों, गिरजाघरों या अल्पसंख्यकों के किसी भी धार्मिक संस्थान पर हमलों की जानकारी देने के लिए हॉटलाइन शुरू की थी, लेकिन कितनी ही शिकायतें मिलने के बावजूद उन पर कार्रवाई का न होना, इनको लेकर मोहम्मद यूनुस सरकार का चुप्पी साधे रखना इस समस्या को गंभीर बना रहा है। बांग्लादेश के कट्टरपंथी वहां के हिंदुओं के लिए ही नहीं, भारत की सुरक्षा के लिए भी खतरा बन रहे हैं। इन हमलों एवं कट्टरतावादी शक्तियों का सक्रिय होना भारत एवं बांग्लादेश दोनों ही देशों के लिये खतरनाक है।

भारत ने उचित तरीकों से ही इन घटनाओं को बेहद गंभीर बताते हुए इन पर न केवल चिंता जताई बल्कि अपनी आपत्ति भी दर्ज कराई। दुर्गापूजा के पंडाल में बम फेंके जाने की खबर स्वाभाविक ही बांग्लादेशी हिंदू बिरादरी को सहमा एवं डरा देने वाली है। जेशोश्वरी मंदिर में मां काली के ताज की चोरी इस मायने में भी अहम है कि यह ताज 2021 में अपनी यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तोहफे के तौर पर दिया था। यही नहीं, गुरुवार को चटगांव में दुर्गापूजा के दौरान कुछ लोगों द्वारा जबरन इस्लामी क्रांति के गीत गाए जाने की भी खबर आई। ऐसे में भारत अगर इन घटनाओं के पीछे सुनियोजित साजिश की आशंका जता रहा है तो उसे निराधार नहीं कहा जा सकता। ऐसे में लगातार बिगड़ती स्थितियों में यूनुस और उनके सहयोगियों को शासन और कूटनीति से जुड़े गंभीर मसलों पर परिपक्वता दिखानी होगी। आंदोलन से जुड़े गैर जिम्मेदार तत्व अनाप-शनाप आरोप लगाएं तो कुछ हद तक समझा जा सकता है लेकिन अगर शासन में बैठे लोग भी इन तत्वों का समर्थन करते हुए दिखें तो उसे सही नहीं कहा जा सकता। यह एक अराजकता की स्थिति है।

वैसे भी बांग्लादेश का विकास भारत के सहयोग पर निर्भर है। जिस भू-भाग को रवींद्रनाथ टैगोर ‘आमार सोनार बांग्ला’ (मेरा स्वर्णिम बंगाल) कहते थे। जहां की अर्थ-व्यवस्था एवं अन्य विकास योजनाएं भारत के सहयोग से ही आगे बढ़ती रही है। कभी भारत की कोशिशों से ही बांग्लादेश अस्तित्व में आया था। बांग्लादेश को आधी से ज्यादा बिजली भारत से मिलती है। अनाज की बड़ी सप्लाई भी भारत से होती है। अगर भारत ने व्यापारिक संबंध तोड़ लिए तो बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था चौपट हो सकती है। बावजूद इन सब स्थितियों के वहां भारत-विरोधी घटनाओं का उग्र से उग्रतर होना खुद के पांव पर कुल्हाड़ी चलाने जैसा है।

हिन्दू धर्म भारत की संस्कृति एवं आत्मा है। हिन्दू धर्म संयम, त्याग और बलिदान का धर्म है। इसमें हमेशा दूसरे धर्मों को सम्मान देने का काम किया है। हिन्दू धर्म उदारता, प्रेम, आपसी सद्भाव और सहनशीलता पर आधारित धर्म है। हिन्दू धर्म की सहिष्णुता को कमजोर मानकर हिन्दू धर्म की भावनाओं को ठेस पहुंचाने का कार्य लगातार होता रहा है। पूर्व की सरकारों ने भी वोट की राजनीति के चलते हिन्दुओं को दोयम दर्जा पर रखा। फिर भी हिन्दू धर्म ने उदारता और सहनशीलता को नहीं छोड़ा।

अगर हिन्दू कट्टर होता तो अन्य धर्मों के लोग भारत में नहीं दिखते। देश बंटवारे के समय पाकिस्तान में 20 प्रतिशत से ज्यादा हिन्दू थे लेकिन आज उनकी आबादी 2 प्रतिशत भी नहीं रही और भारत में मुसलमानों की आबादी 2 प्रतिशत से 20 प्रतिशत नहीं होती। यह हिन्दू उदारता का ही परिणाम है। लेकिन प्रश्न है कि आखिर कब तक हिन्दू ऐसी अग्नि परीक्षा देता रहेगा? कब तक हिन्दू की सहिष्णुता को कमजोरी मानकर उन पर अत्याचार होते रहेंगे? कब तक हिन्दू शक्तिसम्पन्न होकर भी निर्बल बना रहेगा? इन सवालों के जबाव तलाशने होंगे वर्ना हिन्दुओं को अस्तित्वहीन करने की कोशिशें कामयाब होती रहेगी।

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