kalibari temple
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किशनगंज:
बिहार के किशनगंज जिला स्थित ऐतिहासिक बूढ़ी काली मंदिर में भक्तों की गहरी आस्था है।यहां मां काली की प्रतिमा दान करने के लिए 24 वर्ष के बाद आएगा दानदाता का नंबर। बूढ़ी कालीबाड़ी मंदिर में अगर कोई भक्त मां काली की प्रतिमा दान में देना चाहे तो उसका नंबर इस वर्ष नहीं,प्रतिमा दान सन 2049 ई.के बाद ही कर सकेंगे। क्योंकि वर्तमान में मंदिर समिति के रिकॉर्ड में 2049 तक मां काली की प्रतिमा दान दी जा चुकी है।

जब यहां से भक्तों की मनोकामना पूर्ण हो जाती है तो भक्त संकल्प के अनुसार मां काली प्रतिमा की दान में देते हैं।उस साल मां काली की उसी प्रतिमा से विधिवत् पूजा होती है।अगर किसी भक्त की मनोकामना इस साल पूर्ण हुई है तो उन्हें प्रतिमा देने के लिए इंतजार करना पड़ेगा तब जाकर उनका नंबर 2049 के बाद आएगा और यदि आज ही प्रतिमा देने की इच्छा भक्त रखते हैं तो 2049 में प्रतिमा का जो लागत में अनुमानित राशि होगी, उसे मंदिर समिति के पास जमा करा देना होता है।यही वजह है कि अगले 24 वर्ष तक मंदिर में भक्तों द्वारा दी जाने वाली मां काली की प्रतिमा की लागत मूल्य की राशि जमा है।अब 2049 के लिए ही कोई भक्त मंदिर में मां काली की प्रतिमा दे सकेंगे।


बता दें कि जानकारी के अनुसार बूढ़ी कालीबाड़ी मंदिर को नवाब असद राजा द्वारा जमीन दान दी गई थी ।तब से यहां 1902 ई.से मां काली की विधिवत् पूजा होती आ रही है और 120 बीस साल के ऐतिहासिक बूढ़ी कालीबाड़ी के प्रति आस्था की ख्याति अब वैश्विक हो चुकी है। क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दूसरे काल में केन्द्रीय गृहमंत्री 23 सितम्बर सन‌ 2022 ई. में यहां के बूढ़ी कालीबाड़ी में हाजरी लगा चुके हैं। जो खबर भारत के सभी प्रमुख प्रिंट एवं इलेक्ट्रानिक मीडिया में प्रसारित हुई थी।उसी समय से यहां के बूढ़ी कालीबाड़ी मंदिर में आस्था की खबर देश -विदेश तक फ़ैल चुकी थी। उसके बाद यहां सुप्रीम कोर्ट, नई दिल्ली से मुख्य न्यायाधीश और पिछले सितम्बर महीने में बिहार के राज्यपाल राजेन्द्र आर्लेकर यहां आकर मां काली के दरबार में हाजरी लगा चुके हैं। पूर्व में भी देश के कितने ही नामचीन हस्तियों का यहा आना हुआ है।इसके अलावे इस सीमावर्ती जिला किशनगंज से सटे नेपाल एवं पश्चिम बंगाल के भी श्रद्धालुओं का आना लगा रहता है।हर साल की तरह इस बार भी इस ऐतिहासिक बूढ़ी काली मंदिर में मां काली की विधिवत् पूजा की तैयारी जोर -शोर से चल रही है। इस मां काली मंदिर में एक ही परिवार के पीढ़ी दर पीढ़ी पुरोहित पूजा करते आ रहें हैं वर्तमान में स्वर्गीय तुलसी मुखर्जी के पुत्र मलय मुखर्जी पुजारी हैं।यहां वर्ष 1902 से ही मां काली की पूजा की जाती है। शुरुआत में यहां बांस के टाट और टीन की छप्पर के मंदिर में मां काली की प्रतिमा स्थापित कर पूजा शुरू की गई थी। धीरे-धीरे समाजिक दानदाता के सहयोग से आज मंदिर भव्य बन चुका है और शहर में आने वालों के लिए प्रथम पूजनीय तथा दर्शनीय हैं ऐतिहासिक बूढ़ी काली मंदिर।

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