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priyaranjan bharti
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2025 में होने वाले विधानसभा चुनाव से पूर्व इसी महीने चार सीटों पर होने जा रहे उपचुनाव को बिहार चुनाव का सेमीफाइनल कहा जा रहा है। नाम वापस किए जाने के साथ ही अब मात्र 38 उम्मीदवार मैदान में डटे रहे गये हैं। इनमें सर्वाधिक 14 उम्मीदवार बेलागंज जबकि सबसे कम पांच उम्मीदवार रामगढ़ सीट पर रह गये हैं। मतदान 13 नवंबर को कराए जाएंगे।

मतदान के पहले त्योहारों में चुनाव प्रचार की गति थोड़ी ठहर ज़रूर गई मगर निशाने पर सभी भीतर ही वार करने में लगे हैं।इस उपचुनाव के नतीजों से बेशक कोई संदेश न निकले पर लक्ष्य क्लीयर है। इतना तो होगा ही यदि सत्तारूढ़ एनडीए बहुमत में जीता तो कहा जाने लगेगा कि नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए फिर सरकार बनाएगा।साथ साथ यह भी कहा जाने लगेगा कि एनडीए ने महागठबंधन की सीटें उसके हाथ से छीन ली। यानी 2025 के चुनाव में एनडीए हारेगा जैसा बयानों का दौर शुरु हो जाएगा। इंडिया फ्रंट के नेताओं के मनोबल में बेसाख्ता बढ़ोत्तरी हो जाएगी। लेकिन ऐसा नहीं होने से ये भी विशेष तौर विश्लेषण होगा कि किन कारणों से आरजेडी और उसके सहयोगी भाकपा माले की जीत में बाधा बन गई?

इस उपचुनाव से सिर्फ यही फाइनल नहीं होना है कि जनता इस पार जाएगी या उस पार बल्कि और भी अनेक बातें साथ साथ तय हो जाएंगी।यह भी तय हो जाएगा कि क्या राज्य की जनता फिर से नीतीश कुमार में विश्वास जताएगी। इतने वर्षों के शासन में नीतीश कुमार के प्रति लोगों में अविश्वास नहीं हो रहा तो क्या उसके पीछे कि वजह बीजेपी का साहचर्य है अथवा नीतीश के अपने किए हुओं का विश्वास और उससे बना वोट बैंक?यह भी स्पष्ट हो जाएगा कि बीजेपी का अपना नेतृत्व अपने बूते सत्ता में पहुंच पाने में सक्षम आखिर क्यों नहीं हो पा रहा है?

क्या बीजेपी का प्रदेश नेतृत्व वास्तव में प्रधानमंत्री मोदी के साए के वावजूद इतना सफल नहीं कि वह प्रदेश में जादू चला सके? क्योंकि बार बार बीजेपी अध्यक्ष बदलने का प्रयोग कर रही और सफल नहीं हो पा रही है। बीजेपी ने इस उपचुनाव में भी प्रयोग किए हैं।तरारी और रामगढ़ में उसने आयातित उम्मीदवार मैदान में खड़े करके प्रयोग ही तो किया है। नतीजों से यह भी सिद्ध हो जाएगा कि नीतीश कुमार की बैसाखी के बूते बिहार में सत्ता की सवारी आखिर कब तक की जाती रहेगी? क्या यह कभी खत्म भी होगा या अभी यह बरकरार रहने वाला है।

उपचुनाव के नतीजे यह भी बता जाएंगे कि तेजस्वी यादव का नेतृत्व और इंडिया फ्रंट के नये नोहर अवतार को जनता कितना दुलारती है। इसलिए कि तेजस्वी यादव ने लालू राबड़ी राज के भयावह दौर वाली छवि से निकलकर अपना नया स्वरूप धारण करने की चेष्टा की है‌।वह कितनी छाप छोड़ पाए हैं या उन पर लालू छाप की मुहर अब भी लगी हुई है,यह इस बार साफ हो जाएगा कि जनता किस तरह से इन्हें देख रही है। उपचुनावों में हालांकि स्थानीय और दबंग प्रभाव वाले नेताओं का असर भी नतीजों को प्रभावित करता है। लिहाज़ा चार सीटों पर इसकी पड़ताल भी पुरजोर तरीके से होगी कि क्षेत्र का छत्रप कौन होता है। तब तेजस्वी यादव के प्रति कम और स्थानीय छत्रपों के प्रति क्षेत्र के वोटरों का जुड़ाव अधिक माना जाएगा।

उपचुनाव के नतीजों से सूबे में पहली बार चुनावी रणनीतिकार से राजनीति में पदार्पण करने वाले प्रशांत किशोर की पार्टी का भी परीक्षण हो जाएगा।यह पता चल जाएगा कि पीके की उम्मीद के अनुरूप जनता उन्हें दुलारती है अथवा सिर्फ मुंगेरीलाल के हसीन सपनों सरीखा उन्हें बस निहारते रहना पसंद करती और वोट जात पात पर अपनी पसंद से देती है।ऐसी दशा में यह दिख जाएगा कि प्रशांत किशोर की पार्टी वोटों की जुगाड़ू में कहीं वोट कटवा भर तो बनकर नहीं रह जाती? उपचुनाव में असद्दुदीन ओवैसी की एमआइएम आइएम ने भी सभी चार सीटों पर उम्मीदवार खड़े किए हैं।ये आरजेडी के मुस्लिम वोट बैंक को कितना डैमेज कर पाएंगे यह भी दिख जाएगा।2020 के चुनाव में असद्दुदीन ओवैसी के पांच विधायक जीते मगर चार को राष्ट्रीय जनता दल ने अपनी पार्टी में शामिल करा दिया था। ओवैसी उसकी कसर किस हद तक निकाल पाते हैं देखना यह भी तो है।

उपचुनाव एक साथ कई रहस्यों से पर्दा हटा देगा। अनेक बातें तय कर देगा। लेकिन यह एकदम से अगले विधानसभा चुनावों का पूर्वानुमान नहीं कहा जा सकता। कहने को बेशक इसे सेमीफाइनल कहा दिया जाए पर वास्तव में यह उपचुनाव क्षत्रपों और प्रयोगों का परीक्षण भर है जिसमें एक साथ कई निष्कर्ष निकल आएंगे।

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