मुजफ्फरपुर: कर्ज के दुष्चक्र में फंसा लखींद्र पासवान उर्फ सीताराम (35) का परिवार इस तरह बिखरा कि उसकी पत्नी अपने बच्चों के साथ किसी दूसरे पुरुष के साथ घर बसा ली। एक घर में नौकर के रूप में रह रहे लखींद्र को 12 वर्षों तक संघर्ष के बाद उसकी बहन मंजू (38) ने ढूंढ निकाला और अपने घर ले आई। 12 साल के बाद भाई-दूज के दिन बहन ने उसे बजरी खिलाया।
ये वाक्या है बोचहां प्रखंड के एतवारपुर ताज गांव का। 5 वर्ष की उम्र में लखींद्र से पिता का साया उठ गया तो बहन मंजू की शादी करने के बाद मां भी चल बसी। इसके बाद लखींद्र पासवान रिश्तेदारों के सहयोग से घर के ही पास एक प्लाई मिल में काम करने लगा। कुछ दिनों के बाद रिश्तेदारों ने उसकी शादी करा दी। सीताराम की पत्नी ने जुड़वा बच्चे को जन्म दिया, लेकिन सीताराम की इतनी कमाई नहीं थी कि वह अपनी पत्नी के सारे अरमान पूरा कर सके।
इधर, बहन मंजू देवी वर्ष 2012 से ही घर छोड़ कर लापता अपने भाई की तलाश में जुटी रही। अपने संगे-संबंधियों यहां तक कि अपने जिले समेत अगल-बगल के जिले में उसे खोजती रही, लेकिन भाई का पता नहीं लगा। इस तरह से कई वर्ष गुजर गए। फरवरी 2024 में एक दूर के रिश्तेदार ने उसके भाई को सीतामढ़ी में देखे जाने की बात कही।
मंजू अपने रिश्तेदार सहित अन्य लोगों को लेकर सीतामढ़ी पहुंची और दूर के बताए रिश्तेदार के बताए जगह पर खोजबीन की तो पता चला कि वह एक घर में नौकर है। उस घर में गई तो बहन को देख भाई दौड़ कर आया और गले लगा कर रोने लगा। मंजू ने बताया कि जिसके यहां काम कर रहा था, वह आने नहीं दे रहा था। बाद में अपने गांव से भाई का मतदाता पहचान पत्र व अन्य को लेकर गई, तब उसे आने दिया।
पत्नी संगीता देवी का शौक पूरा करने के लिए सीताराम ने समूह से कर्ज लेना शुरू किया। उन पैसों से संगीता कभी मोबाइल खरीदती तो कभी पायल खरीदती थी। रंग-बिरंगे कपड़े खरीद कर शौक पूरा करने में लग गई। जिससे कर्ज बढ़ता चला गया। कर्ज नहीं दे पाने की स्थिति में रिश्तेदारों से बिना बताए वर्ष 2012 में परिवार लेकर अपना घर छोड़ कर जाना पड़ा। दर-दर की ठोकर खाने के बाद सीतामढ़ी में किराए पर मकान मिला।
किराया भरने व परिवार का खर्च चलाने के लिए खुद नेपाल में प्लाई मशीन में काम करने चला गया। महीने-दो महीने पर सीतामढ़ी आता था। इसी बीच उसकी पत्नी दोनों बच्चों को साथ लेकर किसी दूसरे पुरुष के साथ शादी कर ली। एक बार जब वह घर लौटा तो देखा कि न उसकी पत्नी थी और न ही उसके दोनों बच्चे। यह देख सीताराम के पैर के नीचे से जमीन खिसक गई। फिर सीतामढ़ी के एक व्यक्ति ने उसे सहारा दिया और अपने घर पर नौकर के रूप में रख लिया था।