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Ashok Bhatia

इस वर्ष 2024 में हुए केंद्र व राज्यों के चुनावों में मतदाताओं ने क्षेत्रीय दलों की अपेक्षा राष्ट्रीय पार्टियों को वोट देना उचित समझा । हालिया रिजल्ट से क्षेत्रीय दलों में घबराहट है। खास कर उन दलों में जो जाति विशेष या समुदाय के भरोसे राजनीति करते है। महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों के नतीजों में महायुति की प्रचंड जीत इसी ओर इशारा करती है। बीजेपी लगातार तीसरी बार राज्य में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। उसने 132 सीटें जीती हैं।मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की अगुवाई वाली शिवसेना को 57 सीटें मिली है।महायुति के तीसरे सबसे बड़े घटक अजित पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी को कुल 41 सीटें मिली हैं। कुछ अन्य छोटे सहयोगियों को मिलाकर महायुति ने राज्य की 288 सीटों में 234 पर जीत हासिल की है।

विपक्षी गठबंधन महाविकास आघाड़ी (एमवीए) को सिर्फ 48 सीटें मिली हैं। इनमें उद्धव ठाकरे की अगुवाई वाली शिवसेना को सर्वाधिक 20, कांग्रेस पार्टी को 16 और शरद पवार की अगुवाई वाली एनसीपी ने 10 सीटों पर जीत हासिल की है। समाजवादी पार्टी को दो सीटों पर जीत मिली है। छोटे दलों और निर्दलीयों को केवल 10 सीटें मिली है। एआईएमआईएम को सिर्फ एक सीट मिली। पार्टी के उम्मीदवार ने 162 वोट से जीतकर मालेगांव सेंट्रल सीट पर अपना कब्जा बरकरार रखा। महाराष्ट्र की 230 से अधिक सीटों पर लड़ी बहुजन समाज पार्टी को सिर्फ 0.48 फीसदी वोट मिले। इससे पूर्व हरियाणा व जम्मू-कश्मीर के चुनाव में वोट प्रतिशत के मामले में भाजपा आगे रही। उसे 25.64% वोट मिले जो नेशनल कॉन्फ्रेंस से अधिक था।

केंद्र और राज्यों में जिस हिसाब से भाजपा और कांग्रेस का दबदबा बढ़ता जा रहा है। इसे छोटी पार्टियों के लिए खतरे की घंटी के तौर पर देखा जा रहा है। 2024 का लोकसभा चुनाव छोटी पार्टियों के लिए अस्तित्व को बचाने की लड़ाई रही । कभी यही छोटे दल केंद्र और राज्य में किंगमेकर की भूमिका निभाते थे, लेकिन आज इनका दबदबा अपने ही क्षेत्र में कम होता जा रहा है।

2014 के लोकसभा चुनाव के बाद से ही छोटी पार्टियां का दखल केंद्र और राज्यों से धीरे-धीरे खत्म होता जा रहा है। जिन राज्यों में भाजपा और कांग्रेस का स्ट्राइक रेट हाई है, वहां पर तो छोटी पार्टियों का वजूद खतरे में है। कर्नाटक और तेलंगाना में क्षेत्रीय दल का सफाया कांग्रेस ने कर दिया। मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ चुनाव में भी क्षेत्रीय दलों को मतदाताओं ने इग्नोर कर दिया है।छत्तीसगढ़ में अजीत जोगी की पार्टी का खाता नहीं खुला तो मध्य प्रदेश में सपा, आम आदमी पार्टी सहित बसपा खाता नहीं खोल सकी। इसी तरह राजस्थान में भी क्षेत्रीय पार्टियों का सियासी हश्र रहा।

मध्यप्रदेश में आप को 0 .54 फीसदी ,बीएसपी को 3.40 ,जेडीयू को 0.02 और समाजवादी पार्टी को 0.46 फीसदी वोट मिले । छत्तीसगढ़ में आप को 0.93 फीसदी , बीएसपी को 2 .05 फीसदी वोट मिले ।राजस्थान में हालाँकि इंडियन नेशनल लोकदल ने 1 और भारत आदिवासी पार्टी ने 3 सीटें जीती । बीएसपी को 2 सीटें मिली ।लेकिन यहाँ भी मुख्य मुकाबला 2 राष्ट्रीय दलों के बीच रहा ।

ध्यान देने योग्य यह बात है कि मध्यप्रदेश में आप पार्टी ने 70 से ज्यादा उम्मीदवार खड़े किये थे और समाजवादी पार्टी वहां 46 सीटों पर लड़ीं थी बीएसपी, समाजवादी और आप पार्टी के चुनाव मैदान में उतरने से जिस जाति के मतदाताओं के दम पर ये चुनाव लड़ रहे थे उनके वोट बिखर गए और उसका सीधा फायदा भाजपा को मिला । तेलंगाना में कांग्रेस 119 सीटें में से 64 सीटें जीकर दक्षिण भारत के एक और राज्य में पूर्ण बहुमत की सरकार बना ली है। तेलंगाना में मिली कांग्रेस की जीत और बीआरएस की हार का सियासी प्रभाव सिर्फ दक्षिण की सियासत तक ही सीमित नहीं बल्कि क्षेत्रीय की राजनीति पर भी पड़ेगा। तेलंगाना में बीआरएस को असदुद्दीन ओवैसी का साथ भी नहीं बचा सका।कर्नाटक के बाद अब तेलंगाना के नतीजे बताते हैं कि मुसलमानों का भरोसा क्षेत्रीय दलों से उठ रहा है और कांग्रेस की तरफ उनका झुकाव तेजी से बढ़ रहा है।

देखा जाय तो मुस्लिमों का वोटिंग पैटर्न तेजी से बदल रहा है। पहले दिल्ली के एमसीडी चुनाव में मुसमलानों ने आम आदमी पार्टी से मुंह मोड़ा कांग्रेस के पक्ष में वोट किया। मुसलमान यह बात अच्छे से जानते हुए कि मुकाबला भाजपा और आम आदमी पार्टी के बीच है, कांग्रेस चुनावी लड़ाई में नहीं है। फिर भी मुस्लिमों ने कांग्रेस को वोट किया।दिल्ली के बाद कर्नाटक के चुनाव में मुसलमानों ने एकमुश्त वोट कांग्रेस के पक्ष में किया और जेडीएस को पूरी तरह से दरकिनार कर दिया था। जेडीएस ने 23 मुस्लिम कैंडिडेट उतारे थे, लेकिन मुस्लिमों ने कांग्रेस के हिंदू कैंडिडेट के पक्ष में वोटिंग किया था। एचडी देवगौड़ा के मजबूत गढ़ पुराने मैसूर क्षेत्र में मुस्लिम मतदाताओं को जेडीएस का कोर वोट बैंक माना जाता था, जहां पर 14 फीसदी मुस्लिम हैं। इस बार के चुनाव में मुस्लिम मतदाता जेडीएस को दरकिनार कर कांग्रेस पार्टी के पक्ष में एकजुट हो गए थे। तेलंगाना मुसलामानों ने ओवैसी की पार्टी को पुराने हैदराबाद की सीटों पर वोट किया, शेष जगह कांग्रेस के साथ रहे।

तेलंगाना में मुस्लिमों ने राष्ट्रीय राजनीति में कांग्रेस को मजबूत करने के लिए केसीआर को उसी तरह से किनारे कर दिया, जिस तरह से कर्नाटक में जेडीएस को किया था। मुसलमानों का वोट एकतरफा कांग्रेस को मिला, क्योंकि उन्हें लग रहा है कि राष्ट्रीय राजनीति में भाजपा से मुकाबला करने में क्षेत्रीय दल से ज्यादा कांग्रेस सक्षम होगी। इसलिए कांग्रेस को मजबूत करने की मंशा से वोट कर रहा है।

राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा’ के बाद कांग्रेस मुस्लिम समुदाय का भरोसा जीतने में लगातार कामयाब होती दिख रही है। 2022 के विधानसभा चुनावों को देखें तो उत्तरप्रदेश में मुसलमानों का एकमुश्त वोट सपा को मिला था। इसी तरह से बिहार में आरजेडी और पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी पर भरोसा जताया था। मुस्लिम मतों की बदौलत ही सपा से लेकर आरजेडी और ममता तक सत्तासुख भोग रहे हैं। अब अगर मुसलमानों ने कांग्रेस में वापसी कर ली तो इन क्षेत्रीय दलों की हालत पतली हो जाएगी।

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