24 नवंबर को जब संभल के जामा मस्जिद परिसर में सर्वे के दौरान आसपास की गलियों में पत्थरबाज़ी हो रही थी तब मैं बगल के शहर मुरादाबाद में था। अगले दिन मुझे संभल जाना था। मित्र शरद सक्सेना ने कहा, माहौल तनावपूर्ण है। आप न जायें तो अच्छा है। लेकिन मैंने माहौल का जायजा लेने का फैसला किया। अगले दिन सोमवार 25 नवंबर को शरद ही मुझे ड्राइव कर संभल ले गए। शहर में प्रवेश करते हुए चारो तरफ पुलिस का पहरा नजर आया। हलाकि किसी ने मेरी गाड़ी को रोका नही। शहर में सड़कों पर शांति थी। छिटपुट दुकाने और पेट्रोल पंप खुले हुए थे। पम्प पर पेट्रोल लेते हुए सेल्स मैन ने आगाह किया कि भूगतान नगद करना पड़ेगा। शहर में इंटरनेट सस्पेंडेड है इसलिए कार्ड या यूपीआई से भुगतान संभव नही है। मैंने वहां एक स्थानीय मित्र अंशुल जी से बात की तो उन्होंने अपने घर खाने पर आमंत्रित कर लिया। सौभाग्य से अंशुल जी का घर उसी गली में कुछ 50 मीटर की दूरी पर है जहां जामा मस्जिद है, जिसके बारे में हिन्दुओं का एक पक्ष दावा कर रहा है कि ये प्राचीन हरिहर मंदिर है। उनके साथ जब मस्जिद की ओर बढ़ा तो एक पुलिस वाले ने रोका। जब मैंने कहा कि मैं एक पत्रकार हूं तो उसने मुझे अकेले जाने की इजाजत दी। जगह सँकरी है। वहां पतली सड़क पक्की बनी हुई है।
एक बात तो तय है कि 2000 की भीड़ के लिए वहां स्वतः स्फूर्त फेंकने के लिए पत्थर उपलब्ध नही है। जिसने भी पत्थर फेंके या फिंकवाये वो पहले से तैयारी कर के ही आये होंगे। वहां बैठे एक पुलिस वाले से बात की तो उसने बताया, ‘उस दिन सर्वे देखने के नाम पर लोग आते रहे और देखते देखते भीड़ बढ़ गयी। सर्वे टीम द्वारा अंदर से पानी निकलने की प्रक्रिया शुरू हुई तो बाहर अफवाह फैल गयी कि अंदर खुदाई हो रही है। भीड़ बेकाबू होने लगी तो हमारी तरफ से सभी लोगों को चेतावनी दी गयी कि लोग वापस लौट जाएं। लेकिन भीड़ ने पत्थरबाज़ी शुरू कर दी। लोहे के चाकू भी फेंके गए और गोली भी चली जिसमें पुलिसकर्मी घायल हो गए। भीड़ में जिन चार लोगों की मौत हुई उस पर उस पुलिसकर्मी ने कोई जवाब नही दिया।
मस्जिद का मुआयना कर मैं वापस लौट आया। मैंने मित्र अंशुल जी से इस संदर्भ में पूछा तो उन्होंने कहा, संभल में हर 10 लोगों में 8 मुसलमान हैं लेकिन ऐसी कोई आपसी लड़ाई नही है। लोग आराम से रहते हैं। फिलहाल ये मामला प्रशासन बनाम मुसलमान है। आम हिन्दू खुल कर इस झगड़े में शामिल नही है। इस मस्जिद के खिलाफ विष्णु शंकर जैन नामक एक व्यक्ति ने एक याचिका दायर की है कि ये हरिहर मन्दिर है। जिस पर संज्ञान लेते हुए कोर्ट ने आनन फानन में सर्वे का आदेश दिया है। पहले दिन मुस्लिम पक्ष ने सर्वे में सहयोग दिया लेकिन दूसरे दिन बात बिगड़ गयी। मैं इस बात का साक्षी तो नही है लेकिन कुछ लोगो को कहते सुना है कि शिवरात्रि की रात अगर मस्जिद के बंद दरवाजो के सामने जल ढाल दो तो दरवाजे अपने आप खुल जाते हैं।
उन्होंने आगे बताया कि इतिहास में संभल बहुत खास जगह रखता है। कभी 36 पूरे (कुएं), 52 सराय और 68 तीर्थ स्थानों का शहर था संभल। मस्जिद से थोड़ी दूर पर ही विष्णु भगवान का कल्कि मन्दिर है और वहां से थोड़ी दूर पर वो जगह है जहां से वासुदेव रुठ कर संभल से चले गए थे। ऐसी धारणा यहां के हिंदुओं में है कि विष्णु का अगला कल्कि अवतार संभल में ही होगा। जाने माने राजनेता और धार्मिक पुरुष आचार्य प्रमोद कृष्णन ने शहर के बाहरी आवरण में कई एकड़ जमीन में बसा एक कल्कि आश्रम भी बनाने का काम शुरू किया है, जिसका उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया था।
मेरी बात उसी मुहल्ले में रहने वाले एक अन्य व्यक्ति से हुई जो पत्थरबाज़ी के दौरान छत पर खड़े हो कर तमाशा देख रहे थे। उन्होंने कहा कि हजारो लोग जमा हो गए थे लेकिन भीड़ शांत थी। तभी बड़ी संख्या में बुर्कापोश भीड़ में आ गए। उन्होंने भीड़ से क्या कहा ये मालूम नहीं लेकिन उसके बाद अफरा तफरी मच गई और घण्टो पत्थरबाजी होती रही। मैंने जब मुआयना किया तो पता चला कि गिरफ्तारी के डर से उस गली में रहने वाले ज्यादातर मुसलमान अपने घरों में ताला लगा कर भाग गए हैं। बमुश्किल गली में टहलते एक हाजी साहब मिले। उनसे पूछा तो बोले कोर्ट ने जल्दबाजी में मस्जिद के सर्वे का आदेश दिया फिर भी कोर्ट के आदेश का पालन करते हुए मुस्लिम पक्ष सर्वे कराने पर राजी था। लेकिन मस्जिद की खुदाई के नाम पर भीड़ बेकाबू हो गयी। प्रशासन करीने से देख रेख करता तो शायद वारदात नही होती। मैंने हाजी साहेब से पूछा, ऐसी बात कही जा रही है कि हरिहर मन्दिर को तोड़ कर बाबर ने इसे मस्जिद बना दिया था। इसका निर्माण भी उसी समय हुआ था जब बाबर ने अयोध्या में बाबरी मस्जिद बनायी थी। मेरे सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि मुझे इतिहास का इतना ज्ञान नही है लेकिन हमारी मजलिस में बताया जाता है कि इस मस्जिद को मुहम्मद बिन तुगलक ने बनवाया था। बाबर ने इसका जीर्णोद्धार करवाया था।
जब यही बात मैंने वहां उपस्थित एक हिन्दू से पूछा तो उन्होंने कहा कि ‘ ऐसी मान्यता है कि इस स्थल पर पहले हरिहर मन्दिर था जिसे पृथ्वीराज चौहान ने बनाया था। बाद में बाबर ने तोड़ कर मस्जिद बना दिया। उस आदमी ने ये भी कहा कि काशी, मथुरा और अयोध्या पर हम दावा कर चुके हैं और अब तो संघ सरसंचालक मोहन भागवत ने भी कह दिया है कि हर मस्जिद में शिव लिंग ढूंढ कर झगड़ा खड़े करने की जरूरत नही है। बहरहाल संभल से मैं ये सोचते हुए लौट आया कि आम आदमी शांति चाहता है लेकिन क्या सियासतदान उसे चैन से रहने देंगे?