हाल ही में राजधानी दिल्ली में मेडिकल की पढ़ाई कर रहे एक छात्र ने आत्महत्या कर ली। 30 साल के अमित कुमार मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज से डॉक्टरी की पढ़ाई कर रहे थे। अमित कुमार ने हॉस्टल के कमरे में फांसी का फंदा लगाकर खुदकुशी कर ली । एक रपट में कहा गया है कि हमारी शिक्षा प्रणाली में अंकों पर जोर दिया जाता है। इसमें माता-पिता का दबाव, स्वयं तथा शैक्षणिक संस्थाओं से की जाने वाली अपेक्षाएं अंतत: आत्महत्या का कारण बनती हैं। भारत के उन्नीस राज्यों में विश्लेषण से पता चला कि करीब बीस फीसद कालेज छात्र इंटरनेट के आदी हैं, जिनमें से एक तिहाई युवा साइबर ठगी का शिकार होते हैं और उसमें से एक तिहाई आत्महत्या कर लेते हैं। राजस्थान के कोटा शहर में तो छात्रों की आत्महत्या की लगातार बढ़ती घटनाओं से हर कोई आहत है, जहां नीट, जेईई तथा अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने के लिए आने वाले छात्र निरंतर जान देते रहे हैं। ऐसी घटनाओं को रोकना सरकार और प्रशासन दोनों के लिए बहुत बड़ी चुनौती है।
हाल ही में एनसीआरबी के आंकड़ों के आधार पर ‘छात्र आत्महत्याएं: भारत में फैली महामारी’ नामक रपट में चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए। इस रपट के अनुसार किशोरों में आत्महत्या का कारण मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं (54 फीसद), नकारात्मक पारिवारिक मुद्दे (36 फीसद), शैक्षणिक तनाव (23 फीसद), सामाजिक और जीवनशैली कारक (20 फीसद), हिंसा (22 फीसद), आर्थिक संकट (9.1 फीसद) और भावनात्मक संबंध (9 फीसद) हैं। शारीरिक और यौन शोषण, कम उम्र में विवाह, कम उम्र में मां बनना, घरेलू हिंसा, लैंगिक भेदभाव आदि कई ऐसे कारण हैं, जिनके चलते युवा लड़कियां आत्महत्या कर लेती हैं।
इंटरनेट पर जब ढूंढेंगे तो छात्रों की आत्महत्या के ढेरों मामले मिल जाएंगे. लेकिन छात्रों की आत्महत्या को लेकर अब जो नया खुलासा हुआ है, वो वाकई चौंकाने वाला है.एक नई रिपोर्ट में दावा किया गया है कि भारत में आबादी इतनी तेजी से नहीं बढ़ रही, जितनी तेजी से छात्रों की आत्महत्या के मामले बढ़ रहे हैं। इससे पता चलता है कि भारत में छात्रों में सुसाइडल टेंडेंसी तेजी से बढ़ रही है ।पिछले साल दुनियाभर में आठ लाख लोगों ने आत्महत्या की और हमारे देश में 1,64,033 ने आत्महत्या करके अपनी जान गंवाई।
समाज विज्ञान के जानकारों के अनुसार बढ़ती महंगाई तथा आम आदमी की लगातार घटती कमाई आत्महत्या के मामले बढ़ने का प्रमुख कारण है।कमाई कम होने या रोजगार नहीं होने के कारण लोगों में तनाव बहुत बढ़ गया है, जिससे बहुत से मामलों में पारिवारिक क्लेश पैदा होता है और परिणामस्वरूप आत्महत्या के मामले बढ़ रहे हैं। वर्ष 2016 में जहां आत्महत्या के कुल 1064033 मामले दर्ज हुए थे और 2017 में 1.29 लाख लोगों ने आत्महत्या की थी, वहीं 2017 से 2021 तक ये मामले 26 फीसदी से ज्यादा बढ़कर 1.64 लाख से भी ज्यादा हो गए।
गैर-लाभकारी संस्था आई सी 3 की एक रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि महाराष्ट्र ऐसी घटनाओं की सबसे अधिक संख्या वाला राज्य बनकर उभरा है। 2021 और 2022 के आंकड़ों के विश्लेषण में पाया गया कि इस अवधि के दौरान छात्र आत्महत्याओं की कुल संख्या में थोड़ी कमी आई थी , लेकिन पिछले दो वर्षों में इन घटनाओं की दर में वृद्धि हुई है। तमिलनाडु और मध्य प्रदेश आत्महत्या के मामलों में दूसरे और तीसरे स्थान पर रहे। पूरे भारत में ऐसे 1,64,033 मामले दर्ज किए गए।आत्महत्या करने वालों में करीब 64 फीसदी यानी 1.05 लाख लोग ऐसे हैं, जिनकी वार्षिक आय एक लाख रुपये से कम थी।
एनसीआरबी की रिपोर्ट के मुताबिक बीते वर्ष देश में कुल 164033 लोगों ने आत्महत्या की, जिनमें से 118979 पुरुष, 45026 महिलाएं और 28 ट्रांसजेंडर थे। आत्महत्या करने वाली आधी से भी ज्यादा 23178 गृहिणियां थी जबकि 5693 छात्राओं और 4246 दैनिक वेतनभोगी महिलाओं ने आत्महत्या की। गृहिणियों द्वारा आत्महत्या के सर्वाधिक मामले तमिलनाडु, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में क्रमशः 3221, 3055, 2861 दर्ज किए गए, जो गृहिणियों द्वारा की गई आत्महत्या के मामलों का क्रमशः 13.9, 13.2 और 12.3 फीसदी है। आत्महत्या के मामलों में महिला पीड़ितों का अनुपात दहेज जैसे विवाह संबंधी मुद्दों, नपुंसकता और बांझपन में अधिक देखा गया। पेशेवर समूहों में स्वरोजगार करने वालों में भी आत्महत्या के मामले करीब 16.73 फीसदी बढ़े हैं। देश में 2020 में आत्महत्या के कुल 153052 मामले दर्ज हुए थे और 2021 में आत्महत्या की दर में 7.2 फीसदी की वृद्धि दर्ज हुई।
एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक 33.2 फीसदी लोगों ने पारिवारिक समस्याओं के कारण जबकि 18.6 फीसदी ने बीमारी के कारण मौत को गले लगाया। आत्महत्या के अन्य मुख्य कारणों में 6.4 फीसदी मादक पदार्थों का सेवन और शराब की लत, 4.8 फीसदी विवाह संबंधी मुद्दे, 4.6 फीसदी प्रेम प्रसंग, 3.9 फीसदी दिवालियापन या कर्ज, 2.2 फीसदी बेरोजगारी, 1.6 फीसदी पेशेवर कैरियर की समस्या, 1.1 फीसदी गरीबी और 1 फीसदी परीक्षा में असफलता शामिल रहे।
आत्महत्या करने वालों में 18-30 वर्ष से कम आयु वर्ग के 34.5 फीसदी और 30-45 वर्ष से कम आयु के 31.7 फीसदी लोग शामिल हैं जबकि 18 वर्ष से कम आयु वर्ग के बच्चों में 3233 आत्महत्याएं पारिवारिक समस्याओं के कारण, 1495 प्रेम संबंध और 1408 बीमारी के कारण हुई। एनसीआरबी के मुताबिक महाराष्ट्र, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल और कर्नाटक में देशभर में आत्महत्या के कुल मामलों में से 50.4 फीसदी मामले दर्ज हुए। पिछले एक साल में उपरोक्त पांच राज्यों में क्रमशः 22207, 18925, 14965, 13500, 13056 लोगों ने आत्महत्या की। प्रति एक लाख की आबादी पर आत्महत्या के मामलों की राष्ट्रीय दर 12 रही। अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में यह दर 39.7, सिक्किम में 39.2, पुडुचेरी में 31.8, तेलंगाना 26.9 और केरल में 26.9 दर्ज की गई।
एनसीआरबी की रिपोर्ट के मुताबिक देशभर में आत्महत्या करने वालों में सबसे ज्यादा 25 फीसदी लोग दिहाड़ी मजदूर थे। 2020 में जहां कुल 33164 दिहाड़ी मजदूरों ने जीवन की परेशानियों से निजात पाने के लिए आत्महत्या का रास्ता चुना, वहीं 2021 में कुल 42004 दिहाड़ी मजदूरों ने खुदकुशी की। कृषि क्षेत्र से संबद्ध कुल 10881 लोगों ने आत्महत्या की, जो कुल मामलों का 6.6 फीसदी है। इनमें 2019 में 5957 और 2020 में 5579 किसानों की आत्महत्या के मुकाबले यह आंकड़ा 2021 में कम होकर 5318 दर्ज हुआ लेकिन कृषि श्रमिकों में आत्महत्या की दर लगातार बढ़ रही है। 2021 में कुल 5563 कृषि श्रमिकों ने आत्महत्या की और उनकी आत्महत्या की दर 2020 के मुकाबले 9 फीसदी और 2019 के मुकाबले 29 प्रतिशत अधिक रही। बीते वर्ष के दौरान हर दो घंटे में कम से कम एक कृषि श्रमिक ने मौत को गले लगाया।
माना जाता रहा है कि आत्महत्या रोकना सरकार का काम नहीं है। लेकिन आत्महत्या के बीते वर्ष के आंकड़े समाज के साथ-साथ सरकार के समक्ष भी गंभीर सवाल खड़े कर रहे हैं। देशभर में लोग यदि इतनी बड़ी संख्या में मौत को गले लगाने को विवश हो रहे हैं तो यह मानने में कोई गुरेज नहीं होना चाहिए कि इसके लिए कहीं न कहीं हमारा समाज और सरकारों की नीतियां भी जिम्मेदार हैं। केवल सरकारों को नहीं बल्कि समाज को भी गंभीरता से इस पर विचार करना होगा और इसके कारणों के निदान के प्रयास भी करने होंगे।