त्रेता से द्वापर युग की स्मृतियों को समेटे गांवों की जानकारी नहीं है प्रशासन को
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आरा: मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की भोजपुर जिले के संवाद सह समीक्षा यात्रा को लेकर पांच गावों के चयन के लिए जिला प्रशासन का उड़नदस्ता गांवों की पहचान में लगा है पर उसकी नजर उन गावों तक नहीं जा सकी है जिन गांवों का धार्मिक और सांस्कृतिक इतिहास त्रेता और द्वापर युग से जुड़ा है. त्रेता और द्वापर युग की स्मृतियों को अपने में समेटे जिले के इन गांवों को आज भी जिला प्रशासन के जरिए सरकार के आने का इंतजार है. इन गांवों में त्रेता और द्वापर युग के साक्ष्य आज भी देखने को मिलते हैं. हजारों साल पहले रचित धर्म ग्रंथों में इनकी चर्चा है.

उदवंतनगर प्रखंड के मसाढ़-नवादा बेन गांव का राक्षसाधिराज सहस्त्राबाहु बाणासुर का 52 बीघे का तालाब-द्वापर युग में बाणासुर की नगरी का प्रमाण है. शिव पुराण के अनुसार बाणासुर अत्यंत शक्तिशाली था और भगवान शिव का परम भक्त था. उसने शिव की तपस्या कर अजेय होने का वरदान प्राप्त कर लिया था.बाणासुर की नगरी को प्राचीन काल में शोणितपुर के नाम से जाना जाता था जिसे अब मसाढ़ गांव के नाम से जाना जाता है. उसके द्वारा बनाये गए 52 बीघे के विशाल तालाब को आज भी साक्ष्य के तौर पर देखा जा सकता है.

मसाढ़ और नवादा बेन गांव के बीच यह कारीसाथ रेलवे स्टेशन से सटा हुआ है. उसने अपनी बेटी उषा के लिए इस तालाब का निर्माण कराया था. यहीं पर द्वारकाधीश भगवान श्री कृष्ण और बाणासुर के बीच भीषण युद्ध हुआ था जिसमें भगवान शिव के आशीर्वाद से बाणासुर अमर हो गया था और अंततः द्वारकाधीश के पोते से बाणासुर की बेटी उषा का प्रेम विवाह सम्पन्न हुआ था. पुराने शोणितपुर और आज के मसाढ़ गांव के आसपास बाणासुर की नगरी के अवशेष और साक्ष्य पूरे इलाके में मौजूद है. नगरी के ईंट जमीन के नीचे दबे हुए हैं और खेतों में प्राचीन काल के ईंट के रोड़े बिखरे पड़े हैं. कहा जाता है कि बाणासुर लंकाधिपति रावण से भी अधिक ताकतवर था और उसने रावण को भी चेता रखा था कि शोणितपुर के इलाके से होकर वह कभी नहीं आए जाय.

बाणासुर की इस नगरी और उसके तालाब को अप्रमाणिक मानकर सरकार लापरवाह है. अगर संवाद यात्रा के दौरान सीएम नीतीश कुमार यहां भ्रमण करें तो द्वापर युग के इस महत्वपूर्ण स्थल के विकास को पंख लग सकता है और राष्ट्रीय स्तर पर इसकी पहचान का मार्ग प्रशस्त हो सकता है.

भोजपुर जिले के बिन्दगांवा गांव स्थित गंगा, सोन और सरयू नदी के त्रिवेणी संगम का धार्मिक और सांस्कृतिक इतिहास त्रेता युग से जुड़ा है और गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में इस स्थल का बखान किया है. महर्षि विश्वामित्र मुनि के साथ धनुर्विद्या का ज्ञान प्राप्त करने जब भगवान श्री राम-लक्ष्मण के साथ सरयू नदी के रास्ते बक्सर आ रहे थे तब छपरा जिले के चिरान गांव के सामने गंगा, सोन और सरयू नदियों के संगम स्थल पर पहुंच कर ही गंगा नदी को पार किया था. गंगा नदी पार करने के बाद श्री राम, लक्ष्मण जंगल के रास्ते आगे बढ़े तो जंगलों की देवी आरण्यदेवी मिली जहां उन्होंने माता आरण्यदेवी की पूजा अर्चना की और फिर बक्सर पहुंच कर ऋषि मुनियों के यज्ञ में बाधा पहुंचा रही राक्षसी ताड़का का वध किया.

सीएम की संवाद यात्रा कोइलवर प्रखंड के बिन्दगांवा स्थित त्रिवेणी संगम या संगमेश्वर धाम की पहचान को राष्ट्रीय स्तर पर पहुंचा सकती है. लेकिन भोजपुर के इन दो प्रमुख गांवों की तरफ जिला प्रशासन और राज्य सरकार का ध्यान नहीं है. लेकिन उम्मीद की जानी चाहिए कि जिला प्रशासन इन गांवों की सूची सीएम की संवाद सह समीक्षा यात्रा के लिए जोड़ने की पहल करेगा.

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