बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर अत्याचार कोई नई बात नहीं है। लेकिन इस बार जिस तरीके से उन पर जुल्म ढाए जा रहे हैं, उन्हें देखते हुए वहां की अस्थायी सरकार की नीयत पर सवाल उठ रहे हैं। दरअसल, बांग्लादेश की हिंदू कम्युनिटी हमेशा से लोकतंत्र और बंगाली अस्मिता के लिए आवाज उठाती रही है। 1952 में वह मॉडरेट सेकुलर बंगाली मुस्लिम के साथ बंगाली भाषा के संरक्षण के लिए उतरी। 1971 में बांग्लादेश को स्वतंत्र देश बनाने में उसका योगदान रहा और 2006 में जब जमात के साथ बीएनपी की दमनकारी सरकार आई, तो वह उसके खिलाफ ताकतवर आवाज बनी।
आज बांग्लादेश में जो गैर-लोकतांत्रिक और गैर-संवैधानिक सरकार काबिज है, उसके खिलाफ भी वहां के मॉडरेट सेकुलर लोग प्रतिरोध कर रहे हैं। इसमें भी वहां की हिंदू कम्युनिटी का योगदान है। जब बांग्लादेश की संस्कृति, संविधान और उसके लोकतंत्र को बचाने के लिए हिंदू कम्युनिटी सड़कों पर आ गई, तो उनके लीडर्स खासकर पुंडरीक धाम के चिन्मय कृष्णदास दास को राष्ट्रद्रोह के केस में बंदी बना लिया गया और उन्हें जमानत भी नहीं दी जा रही है।
बांग्लादेश की मोहम्मद यूनुस सरकार पर चुनाव कराने के लिए दबाव बन रहा है। सरकार उसे आगे खिसकाने का प्रयास कर रही है। इसी सिलसिले में वह चाहती है कि वहां पर जो सेकुलर डेमोक्रेटिक फोर्सेज हैं, उनका सरकारी तंत्र के जरिए दमन किया जाए। साथ ही, बहाना यह भी बनाया जा रहा है कि अभी बांग्लादेश में लॉ एंड ऑर्डर की सिचुएशन खराब है। जब तक कानून-व्यवस्था सही नहीं होगी और जब तक राजनीतिक सुधार नहीं होंगे, तब तक हम चुनाव नहीं कराएंगे। दूसरी ओर, राजनीतिक सुधार के नाम पर संविधान को बदलने का प्रयास किया जा रहा है।
बांग्लादेश में संविधान को बदलने का प्रयास कई बार किया गया। 1971 में वहां चले बंगाली राष्ट्रवाद आंदोलन में भारत का बहुत बड़ा योगदान रहा। तब लगभग 10 से 15 हजार भारतीय सैनिकों ने भी अपनी जान दी। उसके बाद लोकतांत्रिक, सेकुलर और समाजवादी संविधान बना। लेकिन जब 1977 में जिया-उर-रहमान सत्ता में आए, तो उसे बदल दिया गया। सेकुलरिज्म को हटाकर तब धार्मिक शब्द लगा दिया। साथ ही, बंगाली राष्ट्रवाद की जगह बांग्लादेशी राष्ट्रवाद लेकर आए और उसका केंद्र इस्लाम को बनाया। कहा गया कि बंगाली मुस्लिम ही बांग्लादेश के नागरिक हैं। तभी से वहां अल्पसंख्यकों को मजबूर किया जाने लगा।
बांग्लादेश में हिंदुओं के साथ हमेशा से राजनीतिक रूप से भेदभाव होता रहा है। बांग्लादेश में जो संसदीय चुनाव होते हैं, उसमें माइनॉरिटी कम्युनिटी के 10 से 12 मेंबर चुने जाते हैं। उनको अच्छा पोर्टफोलियो नहीं दिया जाता या किसी महत्वपूर्ण पद पर भी नहीं बैठाया जाता। नौकरियों में भी यही हाल है। हालांकि बांग्लादेश में बड़ी संख्या में हिंदू समाज कारोबार से जुड़ा है। वह परफॉर्मेंस और मेरिट के आधार पर तरक्की कर रहा है।
वहां अल्पसंख्यकों के पूजा स्थलों पर हमले होते रहे हैं। पिछले साल ही दुर्गा पूजा में लगभग 35 अटैक हुए। एक दुर्गा पूजा पंडाल में बम से हमला हुआ। इस तरीके की हरकतें बहुसंख्यक क्षेत्रों में हो रही हैं। खासकर- चटगांव, कोमिला और रंगपुर जैसी तीन-चार डिविजन में। चटगांव और रंगपुर में जमात-ए-इस्लामी का काफी प्रभाव है। इन क्षेत्रों से हिंदू और बौद्ध समुदाय को शिफ्ट किया जा रहा है। चटगांव में मुस्लिमों को बसाकर बाकियों को वहां से माइग्रेट करने पर मजबूर किया जा रहा है।
यह न केवल भारत के लिए, बल्कि पूरे दक्षिण एशिया और विश्व के लिए भी चिंता का विषय बना हुआ है। भारत सरकार ने कहा है कि मोहम्मद यूनुस सरकार को माइनॉरिटी कम्युनिटी पर किसी भी तरीके का प्रॉसिक्यूशन बंद करना चाहिए और उन्हें प्रोटेक्शन दिया जाना चाहिए। अमेरिका के निर्वाचित राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने भी बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर अत्याचार की बात उठाई है। अब भारत और अमेरिका की सरकार को ह्यूमन राइट्स और अल्पसंख्यकों की रक्षा के लिए एक मजबूत रुख दिखाना चाहिए, ताकि पूरे दक्षिणी एशिया में शांति कायम हो। नहीं तो बांग्लादेश एक गृहयुद्ध की तरफ बढ़ता चला जाएगा और उसे पाकिस्तान बनने में देर नहीं लगेगी।