ऐसे थे भारत रत्न कर्पूरी ठाकुर: कर्पूरी ठाकुर की पुण्य तिथि पर विशेष

By Team Live Bihar 39 Views
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सुरेंद्र किशोर

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पद्मश्री सम्मान से सम्मानित सुप्रसिद्ध पत्रकार सुरेंद्र किशोर जी भारत रत्न से सम्मानित प्रख्यात समाजवादी नेता और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर के साथ बहुत गहरे जुड़े रहे हैं । वे स्व. ठाकुर के निजी सचिव भी रहे। इस दौरान उन्हें कर्पूरी जी और उनके परिवार को बहुत नजदीक से देखने का अवसर प्राप्त हुआ। 17 फ़रवरी को कर्पूरी जी की पुण्यतिथि है। इस अवसर पर उन्होंने उनके जीवन से संबंधित कुछ प्रेरक और अछूते प्रसंग सोशल मीडिया पर शेयर किया है। हम उसे यहाँ प्रस्तुत कर रहे हैं –

प्रसंग -1

सन 1972-73 की बात है। समाजवादी कार्यकर्ता की हैसियत से मैं कर्पूरी ठाकुर का निजी सचिव था। कर्पूरी जी बिहार विधान सभा में प्रतिपक्ष के नेता थे। बिहार विधान मंडल भवन में आफिस के लिए उन्हें एक बड़ा कमरा मिला हुआ था। कर्पूरी जी ने एक दिन मुझे एक बिल देकर कहा कि लेखा शाखा (विधान सभा सचिवालय ) में जाकर दे दीजिए। मैं वहां गया।

वहां के प्रशाखा पदाधिकारी साहब को मैंने बिल थमाते हुए कहा कि यह कर्पूरी जी का है। वह बिल करीब छह सौ रुपए का था। प्रशाखा पदाधिकारी ने पहले बिल की राशि देखी। उसके बाद मुझे ऊपर से नीचे तक तीखी नजरों से निहारा । फिर असामान्य स्वर में कहा, ‘कैसे -कैसे लोग कुर्ता-पायजामा पहन कर बड़े- बड़े नेताओं के करीबी हो जाते हैं। नेता की जरूरतों का उन्हें पता ही नहीं होता है। आप 6 सौ रुपए का बिल दे रहे हैं। कर्पूरी जी इतने बड़े नेता हैं। उनका इतने कम पैसे में काम चलेगा ? जाइए,इसे 13 सौ का बना कर ले आइए।’

मुझे तो बिल वगैरह का कोई ज्ञान था नहीं। मैंने लौटकर उस बाबू की उक्ति कर्पूरी जी के सामने दोहरा दी। कर्पूरी जी ने गुस्से में दांत पीसते हुए कहा–‘ये बेईमान लोग हैं। लुटेरे हैं। राज्य को लूट लेंगे। दीजिए मुझे बिल नहीं पास करवाना।’ यह कह कर उस बिल को उन्होंने अपने टेबल की दराज में रख लिया।

प्रसंग -2

यह कर्पूरी जी की व्यक्तिगत आर्थिक परेशानी से संबंधित एक संस्मरण है। उन दिनों नेता, प्रतिपक्ष को कोई खास सुविधा हासिल नहीं थी। सिर्फ एक स्टेनो टाइपिस्ट मिलता था। (वह सब सुविधाएं 1977 में शुरू हुई –यानी, कैबिनेट मंत्री के बराबर सुविधाएं) एक दिन कर्पूरी जी की धर्म पत्नी ने मुझसे कहा कि ठाकुर जी महीने में 15-20 दिन पटना से बाहर ही रहते हैं। यहां चौके में राशन है या नहीं, इसका ध्यान नहीं रखते। उनसे कहिए कि पूरे महीने का राशन एक बार खरीद कर रखवा दें। मैंने उनसे यह बात कही। कर्पूरी जी ने कहा कि उन लोगों से (उनके परिवार के सदस्यों से) कहिए कि वे पितौंजिया (यानी पुश्तैनी गांव) जाकर रहें। दरअसल कर्पूरी जी को विधायक के रूप में तब मात्र 300 रुपए वेतन मिलता था। कमेटी की बैठक होने पर 15 रुपए दैनिक भत्ता। यानी कुल 60 रुपए।

अब आप बताइए कि कोई भी ईमानदार व्यक्ति 360 रुपए में पटना में परिवार का खर्च कैसे उठा सकता था ! यानी, इतने अभाव के बावजूद कर्पूरी जी ने जाली बिल बनवाना मंजूर नहीं किया था। यह तो छोटा सा नमूना मैंने यहां पेश किया। करीब डेढ़ साल मैं रात-दिन उनके साथ रहा।

ऐसे अवसर कई बार आए जब घर आई ‘लक्ष्मी’ को उन्होंने ठुकरा दिया। बाद में एक बार तो कर्पूरी जी के दल के ही एक विधायक ने एक घंटे के लिए भी अपनी जीप उन्हें देने से इनकार कर दिया था। कहा था–दो बार मुख्य मंत्री रहे ।अपने लिए कार क्यों नहीं खरीद लेते ?

आज जो लोग भारत रत्न कर्पूरी ठाकुर की जयंती और पुण्य तिथि मनाते हैं,क्या उन्हें ऐसा करने का कोई नैतिक अधिकार है ? उनकी जयंती-पुण्य तिथि मनाने का नैतिक अधिकार तब जरूर होगा जब आज के नेतागण , सांसद-विधायक फंड में भ्रष्टाचार की कमीशनखोरी का विरोध करेंगे। वह कमीशनखोरी भ्रष्ट सरकारी कर्मियों के लिए प्रेरणा-प्रोत्साहन स्त्रोत बनी हुई है।

क्या कर्पूरी जी को सभाएं करके याद करने वाले लोग लगभग सर्वव्यापी सरकारी भ्रष्टाचार के खिलाफ जन आन्दोलन करेंगे ? खुद सादगी का कर्पूरीनुमा जीवन बिताएंगे ? यानी, जायज आय पर ही गुजर करेंगे ? पर,क्या आज यह संभव भी है ? ऐसी उम्मीद करना ही अपना भोलापन प्रकट करना नहीं है ? क्योंकि राजनीति करने वाले अधिकतर लोग आज उस दुनिया में हैं जो कर्पूरी ठाकुर की दुनिया नहीं थी। जब तक राजनीति बेहतर नहीं होगी, तब तक सरकारी अफसर-कर्मचारी से भी बेहतरी की उम्मीद मत कीजिए। जब तक यह चलता रहेगा,तब तक आम जनता को सरकारी दफ्तरों से ‘मुफ्त में’ सेवा नहीं मिलेगी।

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