होलिका दहन आज है और उत्तर भारत में इसको लेकर काफी उत्साह देखा जा रहा है। बता दें कि हर साल फाल्गुन पूर्णिमा को मनाया जाता है। यह पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है। इस दिन भक्त प्रह्लाद की कथा को याद करते हैं, जिसमें प्रह्लाद के पिता हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका से कहा कि वह प्रह्लाद को अग्नि में लेकर बैठे। हालांकि, भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद सुरक्षित रहे और होलिका जल गई। इस घटना की याद में होलिका दहन किया जाता है।
इस वर्ष होलिका दहन 13 मार्च 2025 को मनाया जाएगा। इस दिन भद्रा का साया रहेगा, जिसके कारण होलिका दहन के लिए शुभ मुहूर्त देर रात तक मिलेगा। ज्योतिषाचार्य डॉ रामानंद पाण्डेय के अनुसार, भद्रा दिन में 10:02 बजे आरंभ होगी और रात 10:37 बजे तक रहेगी। इसलिए, होलिका दहन का समय भद्रा समाप्त होने के बाद निर्धारित किया गया है।
अनुसार भद्रा काल में किसी भी शुभ कार्य को करना वर्जित माना जाता है। इस बार भद्रा की समाप्ति रात 10:40 बजे होगी, जिसके बाद ही होलिका दहन किया जा सकेगा। शास्त्रों के अनुसार, यदि भद्रा निशीथ समय अर्थात अर्धरात्रि से पहले समाप्त होती है, तो उसी समय पर होलिका दहन करना चाहिए।13 मार्च को भद्रा समाप्त होने के बाद, होलिका दहन करने का उचित समय रात 12:36 बजे तक रहेगा। इसके बाद, अगले दिन यानी 14 मार्च को काशी में रंगोत्सव (होली) मनाया जाएगा।
होलिका दहन हिंदू परंपरा में एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान है, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। यह प्रह्लाद और हिरण्यकश्यप की पौराणिक कहानी के अनुसार, होली की पूर्व संध्या पर होलिका दहन के प्रतीक के रूप में अलाव जलाकर किया जाता है। हालाँकि, इस अनुष्ठान का समय महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसकी पवित्रता और प्रभावशीलता सुनिश्चित करने के लिए इसे शुभ अवधि के दौरान आयोजित किया जाना चाहिए।
ज्योतिषाचार्य के अनुसार भद्रा काल कुछ ज्योतिषीय स्थितियों द्वारा शासित एक विशिष्ट समय अवधि को संदर्भित करता है। हिंदू ज्योतिष के अनुसार, भद्रा को किसी भी महत्वपूर्ण अनुष्ठान या समारोह को करने के लिए अशुभ माना जाता है। यह अवधि तब होती है जब चंद्रमा कुछ नक्षत्रों (चंद्र हवेली) और राशियों से होकर गुजरता है। ऐसा माना जाता है कि भद्रा काल के दौरान होलिका दहन जैसे अनुष्ठान करने से सकारात्मक के बजाय नकारात्मक परिणाम हो सकते हैं।
ज्योतिषाचार्य डॉ रामानंद पाण्डेय के अनुसार होलिका दहन के लिए पूजा का समय निर्धारित करते समय भद्रा काल से बचना आवश्यक है। अगर इस अशुभ समय में होलिका दहन किया जाए तो ऐसा माना जाता है कि इससे आशीर्वाद की जगह दुर्भाग्य मिल सकता है। इसलिए, ज्योतिषी होलिका दहन के दिन भद्रा काल की सटीक अवधि की सावधानीपूर्वक गणना करते हैं और इस समय सीमा से बचने की सलाह देते हैं।
पूजा के लिए आवश्यक सामग्री जैसे सूखी लकड़ियां, गोबर के उपले, गुलाल, रंग, फूल, माला, हल्दी, अक्षत (चावल), रोली, धूप, कपूर और मिठाइयाँ इकट्ठा करें। जिस स्थान पर होलिका दहन करना है उसे साफ करें और वहां पूजा सामग्री रखें। पूजा करते समय व्यक्ति का मुख पूर्व या उत्तर दिशा की ओर होना चाहिए। सबसे पहले भगवान गणेश का स्मरण करें और उनकी पूजा करें। ओम होलिकायै नमः मंत्र का जाप करते हुए होलिका की पूजा करें। ओम प्रह्लादाय नमः और ओम नृसिंहाय नमः मंत्रों का उच्चारण करते हुए प्रहलाद और भगवान नरसिंह की पूजा करें होलिका की सात बार परिक्रमा करें और उसमें कच्चा सूत लपेटें। कपूर या उप्पलों से आग जलाएं और सभी अनाज अग्नि में डाल दें।
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