कौसर जहां
(अध्यक्ष, दिल्ली स्टेट हज कमेटी)
वक्फ बोर्ड अधिनियम में संशोधन कानून समय के अनुरूप जरूरी लदान है। आम मुसलमानों को इस मुद्दे पर भड़काने का प्रयास कर रहे कट्टरपंथी तत्व अपनी कौम और देश का बड़ा नुकसान कर रहे हैं। वास्तव में अगर कोई भी समाज सही दिशा में हो रहे परिवर्तन को पूर्वाग्रह से ग्रस्त होकर स्वीकार नहीं करता तो वह जडता का शिकार हो जाता है। समय के अनुरूप सुधार के साथ परिवर्तन ही प्रगति का सही रास्ता है। यह मुस्लिम समुदाय में अधिकांश लोगों को समझ आ गया है लेकिन उनको भड़काने की एक सुनियोजित साजिश हो रही है। मैं तर्क सहित कई मुस्लिम विद्वानों से बात करके जानने की कोशिश कर चुकी हूं कि वक्फ सुधार से आखिर आम मुसलमान को फायदा है या नुकसान? कोई भी मुझे यह नहीं समझा सका कि देश के आम मुसलमान का एक भी नुकसान होगा। हां, आम मुसलमान के नाम पर ठेकेदारी करने वालों को इस बात का डर जरूर है कि कहीं उनकी दुकान न बंद हो जाये। उनके अवैध कब्जों की पोल ना खुल जाये। जिस संपत्ति का उपयोग आम मुसलमान की बेहतरी के लिए होना चाहिए था उसके दुरुपयोग का भांडा न फूट जाये। अपने इस डर के लिए कट्टरपंथी आम मुसलमान को ढाल बनाना चाहते हैं।
मेरा स्पष्ट मानना है कि आम मुसलमान को वक्फ सुधारों से फायदा है। यह चंद लोगों के एकाधिकार को खत्म करने का प्रयास है जिसका स्वागत होना चाहिए। संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) में इस पर व्यापक चर्चा हुई तो वहां भी विपक्ष और कौम का नुकसान करने का ठेका ले चुके नेताओं ने विध्वंसक एजेंडा अपनाया। उन्होंने सार्थक सुझाव के बजाय चर्चा को रोकने का प्रयास किया। फिर भी जेपीसी रिपोर्ट के बाद मेरा दृढ मत है कि जो लोग आज इसका विरोध कर रहे हैं , आज नहीं तो कल उन्हें भी यह समझ आएगा कि यह उनकी भूल थी। यह सुधार मुस्लिम समाज की बेहतरी के लिए है। यह पारदर्शिता के लिए सुधार हैं और भ्रष्टाचार के चंगुल से मुक्त होने का रास्ता इन सुधारों में है। आज मुस्लिम समाज के बीच इस बात की छटपटाहट है कि वे कैसे स्वयं को कट्टरपंथी ताकतों के दबाव से मुक्त करके सुधारों का हिस्सा बनें। मुस्लिम समाज जडता से निकल कर कौम की बेहतरी का रास्ता चाहता है । वह विकास की मुख्यधारा से जुडना चाहता है।
मुस्लिम महिलाएं भी चाहती हैं कि उनकी समान भागीदारी का रास्ता खुले। कोई भी समाज अपनी महिलाओं को पीछे रखकर आगे नहीं बढ़ सकता। लेकिन वे कट्टरपंथी भला इसका समर्थन कैसे करेंगे जो हमारी बहनों को तीन तलाक की बेडी से भी मुक्त नहीं होने देना चाहते थे। जब आदरणीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में तीन तलाक प्रथा खत्म करने का कानून बना तो सबसे ज्यादा खुश मुस्लिम महिलाएं ही थीं। वक्फ में महिलाओं को प्रतिनिधित्व देने के प्रस्ताव से भी वैसी ही स्वाभाविक खुशी है। महिलाएं संवेदनशील होती हैं। उनकी भागीदारी से भ्रष्टाचार पर अंकुश लगेगा। महिलाएं निर्णय लेने की प्रक्रिया से जुडेंगी तो इस संस्था में नये विचार भी आयेंगे।
वास्तव में वक्फ सुधार का कदम बहुत पहले उठाया जाना चाहिए था। लेकिन देर आयद दुरुस्त आये। अब मोदी सरकार ने पुरानी गलतियों को सुधार कर नई व्यवस्था के लिए जो संशोधन प्रस्तावित किए हैं उससे वक्फ बोर्ड ज्यादा प्रभावी रूप से काम कर पाएगा। यह सच्चर कमेटी की सिफारिशों के अनुरूप है। जिसकी वकालत कभी यूपीए के लोग करते थे। वोट की राजनीति ने विपक्ष की सोचने समझने की शक्ति खत्म कर दी है। लेकिन मोदी सरकार ने वोट के लिए नहीं, देश के लिए फैसले करने का साहस दिखाया है। वक्फ संशोधन वक्त की जरूरत है और संविधान की भावना के अनुरूप है। संविधान की बुनियाद ही बराबरी के सिद्धांत पर टिकी है। फिर महिलाओं से भेदभाव का अधिकार भला संविधान कैसे दे सकता है। जो लोग इसे धार्मिक मामलों में दखल बता रहे हैं उन्हें यह समझना चाहिए कि यह इबादत से जुड़ा हुआ मामला नहीं है बल्कि संपत्तियों के प्रबंधन का मामला है। संपत्तियों का बेहतर उपयोग सुनिश्चित करने के लिए आज वक्फ को चुनिंदा लोगों के चंगुल से मुक्त करना जरूरी है।
अधिनियम में संशोधन करके एक पारदर्शी, जवाबदेह और समान प्रतिनिधित्व की व्यवस्था लागू करने का प्रयास किया जा रहा है। मुस्लिम समुदाय के उपेक्षित तबकों की भागीदारी का इंतजाम संशोधन में किया गया है। वहीं महिलाओं को प्रतिनिधित्व देकर मोदी जी की सरकार ने अपनी इस सोच को पुख्ता रूप से सामने रखा है कि विकसित भारत का संकल्प पूरा करना है तो महिलाओं की अनदेखी नहीं की जा सकती। उन्हें हर स्तर पर प्रतिनिधित्व देना होगा।
वक्फ की संपत्तियों का दुरुपयोग नहीं हो, उनका सही मूल्यांकन किया जाये। भ्रष्टाचार की संभावना को खत्म करके संपत्ति के अनुपात में राजस्व की व्यवस्था हो , इसमें क्या बुराई है? कोई भी बोर्ड या निकाय तभी प्रभावी होता है जब उसके संचालन और प्रबंधन में पारदर्शिता हो और जवाबदेही सुनिश्चित की जाये। यही प्रयास नये संशोधनों के माध्यम से सरकार ने किया है। कोई भी व्यवस्था बिना जवाबदेही के निरंकुश हो जाती है। नये प्रावधानों में यह व्यवस्था है कि वक्फ संपत्ति को निष्पक्ष तरीके से चिह्नित किया जाये और अगर कोई विवाद है तो उसका समुचित कानूनी निस्तारण हो। कानून इस लोकतंत्र में सर्वोपरि है।
मेरा मानना है इन संशोधनों से वक्फ बोर्ड ज्यादा सक्षम होगा। ज्यादा पारदर्शिता से काम करेगा और ज्यादा जवाबदेह होगा। आखिर कौन से लोग हैं जो वक्फ संशोधन बिल से वक्फ संपत्तियों को रेगुलेट करने का विरोध करना चाहते हैं। नियमन से ऐसी संपत्तियों से संबंधित विवादों को निपटाने का अधिकार मिलेगा। साथ ही बिल के जरिए वक्फ की संपत्ति का बेहतर इस्तेमाल हो सकेगा और मुस्लिम महिलाओं को भी मदद मिल पाएगी।
कानून बदलकर वक्फ में महिलाओं की भागीदारी बढाई जायेगी। इसका विरोध क्या महिलाओं का विरोध नहीं है। सेक्शन-9 और 14 में बदलाव करके केन्द्रीय वक्फ परिषद में दो महिलाओं को शामिल करने का प्रस्ताव है। इसके अलावा नए बिल में बोहरा और आगाखानी मुस्लिमों के लिए अतिरिक्त प्रावधान होना क्यों गलत है। हम कैसे कह सकते हैं कि एक अमुक समूह का ही वक्फ पर कब्जा होगा। मेरा मानना है कि पुराना कानून मुसलमानों को बांटने वाला कानून था। हमें एलीट सोच पर आधारित पुराने कानून की जगह सर्वसमावेशी नए कानून का स्वागत करना होगा।
वक्फ बोर्ड के मैनेजमेंट में गैर-मुस्लिम एक्सपर्ट्स को शामिल करने और सरकारी अधिकारियों से वक्फ का ऑडिट कराने
नया वक्फ कानून: कौम के लिए बेहतरी का रास्ता
