राजनीतिक अवसान की ओर नीतीश! एनडीए गढ़ेगा नई रणनीति

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शोभित सुमन
(राजनीतिक टिप्पणीकार और मीडिया अध्येता)
बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार लंबे समय से ही केंद्र बिंदु रहे हैं। बिहार में व्यापक बदलाव के लिए नीतीश का नाम आज भी सबसे शीर्ष पर है। 2005 के अपने मुख्यमंत्रित्व काल में उन्होंने जो लकीर खींची थी बिहार में अब उसे पार पाना किसी अन्य मुख्यमंत्री के लिए मील का पत्थर साबित होगा। नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू में उनके बाद कोई अन्य नेता उस तरफ से नहीं उभर पाया जिसे नीतीश अपनी सत्ता सौंप सके और पूरी पार्टी को उसपर भरोसा हो। जेडीयू में शुरुआती समय से ही पार्टी कमान को लेकर कई बार दो फाड़ की स्थिति देखी जा चुकी है। नीतीश कुमार अब उम्र की उस दहलीज पर पहुंच गए हैं जहां से वे अब राजनीतिक अवसान की ओर बढ़ चले हैं। ऐसे में जेपी आंदोलन से निकले तमाम नेताओं का अब नेतृत्व समाप्त होता जा रहा है। नीतीश कुमार को लेकर भी हर दिन तमाम कयास गढ़े जा रहे हैं।

नीतीश का इक़बाल हुआ कम
लेकिन बीते कुछ दिनों से यह देखा जा रहा है कि नीतीश कुमार जिन बातों के जाने जाते थे, मसलन कि बिहार में लॉ एंड ऑर्डर की स्थिति और उनकी कार्यशैली। सबकी स्थिति काफी बिगड़ी है। अब वे सिर्फ सार्वजनिक मंचों से अपने मुख्यमंत्री के काल में किए गए कार्यों की सराहना स्वयं करते हैं और बिहार में जंगल राज की याद भी दिलाते हैं। वे बिहार बदलने के भविष्य के विजन को बिहार की जनता को नहीं बताते नजर आते हैं। वे आज भी 2005 से पहले के बिहार और अब के बिहार की बस तुलना करते हैं। उनका इकबाल भी कम हुआ है इसमें कहीं से भी दोराई नहीं है। विपक्ष तो यहां तक दावा कर रहा है कि नीतीश की सरकार उनके अधिकारी चला रहे हैं और यह सही भी प्रतीत हो रहा है। जिस तल्ख़ फ़ैसलों के लिए नीतीश जाने जाते थे उसमें भी काफी गिरावट आईं है।

राजनीतिक ढलान पर नीतीश कुमार
वर्तमान समय में नीतीश कुमार की राजनीति उनके अब अंतिम पायदान पर दिख रही है। वे उम्र के उस दहलीज पर पहुंच गए हैं जहां से उनकी राजनीति अब वापस करवट लेने वाली नहीं है। वे अब सत्ता की ढलान पर हैं। बीते कुछ दिनों से अगर उनके वायरल हुए वीडियो को देखें तो यह सहज है कि नीतीश का स्वास्थ्य पर अब सचमुच उनका साथ नहीं दे रहा है। वे कई सार्वजनिक कार्यक्रमों में अपने दिए गए बयानों, व्यवहारों के कारण पूरे देश में वायरल हो रहे हैं। नीतीश कुमार के चेहरे और उनके कार्यों को भलें ही एनडीए समाने रख कर चुनाव में आएंगी। लेकिन, उन्हें फिर से मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करे इस बार की उम्मीद बेहद कम है। इससे नुकसान एनडीए के सभी घटक दलों को ही होगा। बिहार में नीतीश के खिलाफ भी काफी एंटी इंबेंसी है। अब बिहार के आमजन भी उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे नहीं देखना चाहते हैं। बिहार में मुख्यमंत्री बदलाव की बयार बह रही है। हाल में ही वक्फ संशोधन बिल पर जेडीयू के समर्थन के बाद यह तो साफ है कि जेडीयू का मुस्लिम वोट बैंक भी थोड़ा खिसक सकता है। जिसका असर कुछ सीटों पर भी देखने को मिलेगा।

जेडीयू की बागडोर निशांत के हाथों में
हां अगर, नीतीश कुमार जेडीयू की बागडोर अपने बेटे निशांत के हाथों में देते हैं तो हो सकता है कि जदयू पार्टी एकजुट रहे और भाजपा भी इसे सहर्ष स्वीकार कर ले।लेकिन एक पक्ष यह भी है कि जिस परिवारवाद की राजनीति पर नीतीश शुरू से कटाक्ष करते आए हैं, उसपर प्रश्नचिन्ह लग जाएगा। नीतीश की छवि फिर से धूमिल हो जाएगी कि अब वे भी परिवारवाद के पोषक हैं। बिहार के राजनीतिक गलियारों में चर्चा तो यह भी है कि नीतीश इस बात के लिए तैयार हो गए हैं कि अब निशांत की पार्टी में एंट्री हो और वे भाजपा के साथ आगामी सरकार में शामिल हों। और यह संभव भी है कि अब बिहार में भाजपा का कोई मुख्यमंत्री चेहरा आए और नीतीश के बेटे निशांत उपमुख्यमंत्री के रूप में सत्ता के दूसरे नंबर पर काबिज़ होंगे। भाजपा भी अब उसी रणनीति पर काम कर रही है। बीते कई दिनों में सार्वजनिक मंचों पर भाजपा के शीर्ष नेतृत्व द्वारा जो बयान दिए गए हैं उससे भी यह सहज रूप से प्रतीत हो रहा है कि भाजपा भी अब नीतीश के नेतृत्व में बिहार में अपनी नैया तो भले ही पार लगा लेना चाह रही है। लेकिन, वह बिहार में मुख्यमंत्री के रूप अब अपना चेहरा देना चाहती है। कई राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में भाजपा के पक्ष में हवा दिखी है अब बिहार में भी इसकी तैयारी शुरू कर दी जा चुकी है।

आगामी चुनाव में भाजपा बड़े भाई की भूमिका में
बिहार में एनडीए का कोई बड़ा चेहरा नहीं है। ऐसे में एनडीए की यह मजबूरी है कि वह नीतीश के नाम पर ही चुनाव लड़े।आने वाले विधानसभा चुनाव में नीतीश के किए गए कार्यों का बखान करें। बिहार में लगभग 15- 16 प्रतिशत वोट बैंक नीतीश के साथ सीधा जुड़ा हुआ है। महिलाओं का एकमुश्त वोट भी जेडीयू को मिलता आया है। नीतीश जिधर जाएंगे यह वोट बैंक खिसक कर उधर शिफ्ट हो जाएगा। एनडीए नीतीश कुमार के नेतृत्व में चुनाव लड़ने का भी ऐलान कर चुकी है। ऐसे में यह तो सहज है कि नीतीश का नेतृत्व एनडीए ने स्वीकार कर लिया है। लेकिन उनके मुख्यमंत्री बनने को लेकर भाजपा के किसी बड़े नेता ने अपनी चुप्पी नहीं तोड़ी है। अब बिहार विधानसभा का चुनाव समय पर होने की उम्मीद है। पहले यह चर्चा थी कि बिहार में मध्यावधि चुनाव भी हो सकते हैं। ऐसे में अब बिहार में तमाम भाजपा के बड़े नेताओं का आना-जाना शुरू हो चुका है। कई बड़ी रैलियां हो रही है। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के चाणक्य कहे जाने वाले अमित शाह का भी बिहार में कई रैली और बैठक कर चुके हैं। भाजपा की यह चाह रही है कि नीतीश अभी चुनाव तक मुख्यमंत्री पद पर बने रहे। आगामी चुनाव में उनसे यह अपील की जाए कि आप बिहार में छोटे भाई के तौर पर आगे बढ़े और भाजपा को बड़े भाई के रूप में आगे बढ़ने दें।

जेडीयू के नए राष्ट्रीय अध्यक्ष की होगी ताजपोशी
जेडीयू के कार्यकारी अध्यक्ष संजय झा और ललन सहित उनके कई बड़े नेता भाजपा के पक्ष में भी दिख रहे हैं। जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद नीतीश कुमार जल्द ही छोड़ सकते हैं। नए राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद पर केंद्रीय मंत्री ललन सिंह की फिर से ताजपोशी हो सकती है। उन्हें पहले भी इस पद पर रहने का अनुभव प्राप्त है और उनका नेतृत्व पूरी पार्टी सहजता से स्वीकार भी कर लेगी। विधानसभा चुनाव में भी जेडीयू की सीटों और उसके उम्मीदवार को तय करने में भाजपा की बड़ी भूमिका रहने वाली है। कई ऐसी सीटें हैं जहां जेडीयू का जनाधार कम है और वहां उनके उम्मीदवार भी मज़बूत नहीं है। ऐसे में भाजपा अपने उम्मीदवार को जेडीयू ज्वाइन करवा कर उसे टिकट दिलवा सकती है। ऐसा पहले भी कुछ सीटों पर हो चुका है। आगामी विधानसभा चुनाव की पूरी कमान भाजपा के हाथों में दिख रही है। भाजपा ने बिहार विधानसभा चुनाव के लिए अपनी बिसात बिछा दी है और उसके लिए नरेंद्र मोदी के नाम पर चुनाव प्रचार भी शुरू कर दिया है।

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