कश्मीर: जनता ने हिम्मत दिखाई, अब सरकार की बारी

By Team Live Bihar 58 Views
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शैलेश कुमार सिंह (स्वतंत्र लेखक )
कहते हैं धर्म अफीम होता है, उसे चूसा दो तो इंसान की भूख मर जाती है। पहलगाम हमले से कुछ ही दिन पहले पाकिस्तानी सेना का आका जनरल मुनीर यही तो कर रहा था। पाकिस्तान की जनता भूख की बड़ी मार झेल रही है। आंतरिक अशांति है। बलूचिस्तान रोज आँखे दिखता है। पाक अधिकृत कश्मीर के लोग हिंदुस्तानी कश्मीर की प्रगति को देख कर लालायित हैं। ऐसा लगता है कि उनकी ख्वाहिश भी अब हिंदुस्तान के साथ होने की है। पाकिस्तानी हुक्मरान सब कुछ बर्दाश्त कर सकते हैं लेकिन कश्मीर को मुंह चिढ़ाते नही देख सकते।
इन्ही परिस्थितियों में पहलगाम ने जन्म लिया है। आतंकी इलाको में सेना चाक चौबंद हैं और पाकिस्तानी आतंकवादी एक ऐसी जगह तलाश रहे थे जहां वो आसानी से वारदात को अंजाम दे सकें। आतंकवाद के लंबे सफर में आमतौर पर सैलानियों को बख्श देने का रिवाज था। हमारा प्रशासन भी इस ओर ध्यान नही दे पाया। फिर सैलानियों की बढ़ती संख्या, होटल और हवाई जहाज की बढ़ती दरें और सबसे बढ़ कर कश्मीरियों की खुशहाली भला पाकिस्तान को कैसे बर्दाश्त हो।
जनरल मुनीर ने अपने भाषण में सर सैयद, मोहम्मद अली जिन्ना और इकबाल की खिचड़ी पकाई और पाकिस्तानी चरम पंथियों को परोस दिया। हम मज़हब, पहनावे, खानपान, सभ्यता, संस्कृति सभी मायने में हिंदुओं से अलग हैं। यही तो कहा था मरदूद ने। हमारी सुरक्षा एजेंसियों को तभी चौकन्ना हो जाना चाहिए था। इसे पुख्ता समझिए कि मुनीर को इस वारदात की पहले से जानकारी थी। धर्म क्यों पूछा गया? ताकि हिंदुस्तान में हिन्दू-मुस्लिम वैमनस्य बढे। महिलाओं को ये कह के छोड़ा गया कि वो जा कर पीएम मोदी से अपने पतियों की मौत का दास्तान बयान करें।
एक जगह वो चूक गए। उन्हें एहसास नही था कि कश्मीर की जनता ने तरक्की को चख लिया है। एक नई बेहतर जिंदगी देख ली है। वरना ऐसा कब हुआ यह जब हिंदुओ के मारे जाने पर श्रीनगर बंद हो गया हो। मस्जिदों से बंद का आह्वान किया गया हो। दुकानों, मोटरवोट पर आतंकवादी विरोध की तख्तियां लग गयी हों, मुसलमान ऑटो वाले वापस लौटने वाले सैलानियों को फ्री स्टेशन और एयरपोर्ट छोड़ रहे हों। हम हिंदुस्तानियों को कश्मीर में आये इस परिवर्तन को आगे बढ़ाने का मौका खोना नही चाहिए। भारत सरकार बार बार इस परिवर्तन का दावा कर रही थी। पहलगाम में वहां की जनता ने उस पर मुहर लगाया। एक बात समझ से बाहर रही। इस कठिन परिस्थिति में वापस लौटते सैलानियों से एयरलाइन्स कम्पनियों ने मोटा पैसा वसूला। सरकार को इस पर संज्ञान लेना चाहिए।
भारत सरकार की सर्वदलीय बैठक में स्वीकार किया गया कि सुरक्षा में चूक हुई। केंद्रीय जल संसाधन मंत्री सीआर पाटिल को गुजरात मे एक मृतक की पत्नी शीतल ने साफ शब्दों में कहा,’आपकी जिंदगी जिंदगी है और हम टैक्स देने वालो की जिंदगी कुछ नही। हमारे दिए टैक्स से आपके पीछे ये गाड़ियों का काफिल चल रहा है। सरकार के भरोसे हम पहलगाम गये थे। लेकिन आपने हमारी सुरक्षा नही की। हमे न्याय चाहिए। आपके साथ फोटो खिंचवाने में कोई दिलचस्पी नही।’ जाहिर सी बात है कि आतंकवाद से मरे व्यक्ति की पत्नी ने हमारी सुरक्षा व्यवस्था और वास्तविक स्थिति की पोल खोल दी। पिछले 25 साल में आतंकवाद की पड़ताल करें तो ये कभी खत्म नही हुआ। आज भी खत्म नही हुआ है। ये जरूर है कि लोगो के दिमाग से सरकार भय निकलने में सफल रही थी। इस साल पहले पहले चार महीनों में ही 2 करोड़ से ज्यादा पर्यटक कश्मीर आ चुके थे जो पिछले पूरे साल से ज्यादा थे। एयरलाइन्स, होटल सभी जगह हॉउस फुल का बोर्ड मिल रहा था। इस हालत में सरकार की जिम्मेदारी और बढ़ गयी थी।
पिछले 25 वर्षों में सबसे ज्यादा 4011 मौतें 2001 में हुई थी। उसके बाद सेना ने कड़ाई की और 2012 में ये घट कर 121 हो गयी। पाकिस्तान ने फिर जोर लगाया और 2018 में आतंकवादी घटनाओं में मौत बढ़ कर 452 हो गई। 2023 के बाद सरकार ने फिर से कश्मीर में चाकचौबन्दी बढ़ाई तो मरने वालों की संख्या 2024 में घट कर 127 रह गई। ये कहना ठीक नही होगा कि कश्मीर पूरी तरह सुरक्षित हो गया था। वास्तविकता ये थी कि सरकार के वादे और अपील पर देश की जनता ने बहुत हिम्मत दिखाई और कश्मीरियों ने अपनी जिंदगी में बड़ी उम्मीद के दर्शन किये। जाहिर सी बात है कि देश की जनता ने अपनी भूमिका अदा कर दी है। अब विश्वास जीतने की बारी सरकार की है।
बदले हालात में सिर्फ नदियों के जल रोकने या कुछ सर्जिकल स्ट्राइक से काम नही चलेगा। सीमा पार बने हजारो आतंकवादी बेस खत्म करने होंगे। हाफिज सईद जैसे देश के दुश्मनों को भी ओसामा बिन लादेन की तर्ज पर मौत् के घाट उतारने का इंतजाम करना होगा और हो सके तो कश्मीर के उस हिस्से को भी कमांड करना होगा जिस पर पाकिस्तान का अवैद्य कब्जा है। दुनियाभर में पाकिस्तान के विरुद्ध माहौल है, अफगानिस्तान तक उसके साथ नही है। अमेरिका खुल कर बोल रहा है, चीन चुप है। भारत को इससे बेहतर अवसर कब मिलेगा।

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