आलोक मेहता,
(पद्मश्री, वरिष्ठ पत्रकार, लेखक)
यह ‘सुल्तान ‘ है या पाकिस्तानी सेना और आईएस का कठपुतली आतंकी सरगना? जी हाँ , पाकिस्तान के कब्जे वाले गुलाम कश्मीर में लगभग तीस साल से सेना नियंत्रित कथित सरकार में कभी वजीर ए आज़म ( प्रधानमंत्री ) और अब प्रेसिडेंट कहलाने वाला सुल्तान महमूद चौधरी न केवल आतंकवादियों के प्रशिक्षण की देख रेख करता है बल्कि अमेरिका, ब्रिटैन सहित दुनिया के कई देशों में भारत के विरुद्ध सक्रिय आतंक समर्थक संगठनों को सहायता करते हुए जम्मू कश्मीर और भारत सरकार के विरोध में अभियान चलाता है।
सुल्तान ने पहलगाम में भारतीय पर्यटकों पर आतंकी हमले से एक दिन पहले भी इस्लामाबाद में भारत के विरुद्ध जहर उगलते हुए जम्मू कश्मीर पर अधिकार करने जैसी घातक चेतावनी दी थी। इससे एक महीने पहले उसने ब्रिटेन और अमेरिका की यात्रा के दौरान वहां के नेताओं के साथ पाकिस्तानी आईएसआई द्वारा फंडिंग वाले संगठनों और आतंकी षड्यंत्र, भारत विरोधी प्रदर्शन करने वाले लोगों से मुलाकातें की थी। उसकी यात्राओं के कुछ विवरण, प्रेस कॉन्फ्रेंस आज भी उपलब्ध हैं। यह इस बात का प्रमाण है कि पहलगाम का शर्मनाक भयानक आतंकी हमला और भारतीय उच्चायोगों दूतावासों के सामने हो रहे प्रदर्शनों की तैयारी सेना, आईएसआई और उसके भाड़े के नेता कई महीनों से कर रहे थे। इसलिए अब भारत सरकार और सेना को ऐसे आतंकी तत्वों और ठिकानों पर निर्णायक कार्रवाई करनी होगी।
सुल्तान महमूद चौधरी 1996 से पाकिस्तानी सेना और आईएसआई के एजेंट की तरह पाक कब्जाए कश्मीर की राजधानी मुजफ्फराबाद में सत्ता की राजनीती तथा आतंकी शिविरों का इंतजाम करता रहा है। पाकिस्तान ने राष्ट्रपति जनरल परवेज़ मुशर्रफ ने इसे कठपुतली के रूप में इस इलाके का प्रधानमंत्री बना रखा था। मुशर्रफ के बाद भी हर सेनाध्यक्ष इसका इस्तेमाल करता रहा है। दिलचस्प बात यह है कि 2021 से इसे इलाके का प्रेसिडेंट घोषित कर दिया है।
यह संयोग और एक हद तक अच्छा अवसर भी था जब जनरल मुशर्रफ के सत्ताकाल के दौरान जुलाई 2000 में भारत के शीर्ष सम्पादकों के साथ मुझे भी मुजफ्फराबाद में सुल्तान महमूद चौधरी से भी मुलाक़ात हुई। कुलदीप नायर और इन्दर मल्होत्रा, विनोद मेहता, सुमित चक्रवर्ती, तरुण बसु जैसे वरिष्ठ सम्पादकों के साथ हमने इस्लामाबाद से मुजफ्फराबाद तक की यात्रा की थी।
इस्लामाबाद में भारतीय और पाकिस्तानी सम्पादकों के सम्मलेन में जनरल मुशर्रफ भी आया था और उसी कारण हमें उस इलाके में जाने की अनुमति मिल सकी। सामान्यतः वर्षों से भारतीय पत्रकारों को पाकिस्तान और खासकर मुजफ्फराबाद के इलाके में जाने कि वीसा नहीं मिलता था। इस्लामाबाद से मुजफ्फराबाद जाने के लिए पर्यटन नगरी मरी होकर जाना होता है। ब्रिटिश राज में भी अंग्रेजों को यह इलाका पसंद था। इसलिए वहां की पुरानी इमारतें आज भी देखने को मिलती हैं लेकिन मरी के बाद मुजफ्फराबाद के रास्ते में पड़ने वाले गांव और कस्बों में बुरी हालत दिखाई दे रही थी जो आज उससे भी बदतर हो गयी है। सड़कों की हालत ख़राब रही है। मुजफ्फराबाद में फटेहाल लोग और मॅहगाई लगातार बढ़ती चली गयी है। हास्यास्पद बात यह है कि उस समय भी सुल्तान महमूद चौधरी चीन और अमेरिका से संबंधों के बात पर पुरे कश्मीर पर कब्जे की बातें कर रहा था।
अब पाकिस्तान के वर्तमान विदेश मंत्री ने सार्वजानिक रूप से यह भी स्वीकारा है कि अमेरिका से मदद लेकर हथियारबंद आतंकियों कि घुसपैठ भारतीय सीमाओं में कराई जाती रही है। लेकिन वह या उनकी सरकार यह भूल रही है कि अब अमेरिका, यूरोप और रूस ही नहीं चीन भी उसकी कोई मदद नहीं करने वाला है।
भारत की सुरक्षा एजेंसियां ही नहीं, अंतर्राष्ट्रीय गुप्तचर एजेंसियों के पास पाकिस्तान द्वारा आतंकियों को प्रशिक्षित करने तथा उनकी गतिविधियां चलाने के सैकड़ों प्रमाण उपलब्ध हो गए हैं।अमेरिका की एफबीआई ने 2000 में ही आतंकवाद से निपटने के लिए भारत के साथ सक्रिय सहयोग का आश्वासन दिया था। अप्रैल 2000 में एफबीआई के निदेशक लुइस जे फ़रीह ने तीन दिवसीय भारत की यात्रा की थी। हाल के वर्षों में अमेरिका, रूस, इस्र्राईल की गुप्तचर एजेंसियों के साथ भारतीय एजेंसियों को तालमेल बहुत बढ़ चुका है। आतंकवाद के मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जी 20 समूह के देशों के साथ आतंकवाद विरोधी अभियान में सम्पूर्ण विश्व समुदाय के समर्थन पर सर्वाधिक जोर दिया है।
इस मुद्दे पर चीन भी सहमत है। वही पाकिस्तान को समर्थन देने वाले खाड़ी के तेल उत्पादक इस्लामी देश सऊदी अरब और सयुंक्त अरब अमीरात भी भारत के साथ सामरिक और आर्थिक सम्बन्ध बढ़ाने के लिए आतंकवादी गतिविधियों के विरोध में दिखाई दे रहे हैं। पाकिस्तान के आतंकवादी संगठन लश्करे तैबा, जैश ए मुहम्मद, अल बदर, हिज्बुल मुजाहिदीन पिछले वर्षों के दौरान बड़े पैमाने पर प्रशिक्षण शिविर चलते रहे हैं।
पाकिस्तानी सेना ही इनके लिए धन और हथियारों का इंतजाम करती है। धर्म और रोज़गार के नाम पर 15 -20 वर्ष के युवकों को भर्ती कर उन्हें मुजाहिद नाम दिया जाता है। इन मुजाहिदों को थल सेना के जवानो की तरह ए. के. 47 , ए. के. 56 , असाल्ट राइफल, रॉकेट संचालित ग्रिनेड प्रक्षेपक (आरुईजीएल) और कंधे पर रख कर छोड़े जाने वाली स्ट्रिंगर मिसाइल चलाने की ट्रेनिंग भी दी जाती है। ऐसे ही प्रशिक्षित आतंकी भारतीय सीमा में घुसपैठ करते हैं। इसीलिए भारत लगातार यह कहता रहे है कि पाकिस्तान पिछले कई दशकों से छद्म युद्ध कर रहा है।
भारत द्वारा सिंधु जल समझौते के स्थगन के बाद पाकिस्तान ने शिमला समझौता रद्द करने की घोषणा की है। लेकिन भारत दुनिया को यह बता चुका है कि पाकिस्तान लगातार शिमला समझौते का उल्लंघन करता रहा है। कारगिल में हुई घुसपैठ से लेकर मुंबई में हुए बड़े आतंकी हमले और जम्मू कश्मीर में पहलगाम तक हुए आतंकी हमलों से इस बात की पुष्टि होती है कि पाकिस्तान ने समझौते को कभी निभाया ही नहीं। इसी तरह संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब और ईरान के नेताओं को भारत ने अनेक प्रमाण दे करके यह विश्वास दिलाया है कि इस्लाम धर्म के नाम पर युवकों को आतंकी बनाना और उन्हें ड्रग्स और हथियारों से मासूम लोगों की हत्या के लिए तैयार करना पूरी दुनिया के लिए विनाशकारी बनता जा रहा है।
पाकिस्तान धर्म की दुहाई देता है लेकिन उसने पहले भी पूर्वी पाकिस्तान में 20 लाख मुस्लिमों की हत्या करवाई जो अब बांग्लादेश है। बलूचिस्तान में पाकिस्तानी सेना दो लाख मुस्लिमों की हत्या करवा चुकी। बलूचिस्तान में पाकिस्तानी सेना और सरकार के खिलाफ विद्रोह ज्वालामुखी की तरह किसी समय फट सकता है। मुजफ्फराबाद में पिछले दो-तीन वर्षों में लगातार सरकार और सेना के खिलाफ प्रदर्शन हुए हैं और वे कश्मीरी भारत का हिस्सा बनने के लिए लगातार दुहाई दे रहे हैं। भुट्टो परिवार के प्रभाव वाले सिंध प्रान्त में भी बगावत की आग भड़कती जा रही है। ऐसी हालत में पाकिस्तान को भारत से युद्ध करने से पहले अपने ही प्रांतों के अलग होने की तैयारियों से निपटना होगा।
‘सुल्तान’ की सत्ता और आतंकी शिविरों का खात्मा जरुरी
