पुष्परंजन (वरिष्ठ पत्रकार )
तुर्किये के राष्ट्रपति रिसेप तैय्यिप एर्दोआन अपनी प्रशंसा से गद्गद हैं। पाकिस्तान में तुर्किये के राजदूत इरफान नेजीरोग्लू के साथ मुलाक़ात के दौरान शहबाज़ शरीफ ने कहा, ‘राष्ट्रपति एर्दोआन ने एक बार फिर पाकिस्तान के लोगों के प्रति अपने प्यार का प्रदर्शन किया है। उन्होंने पाकिस्तान-तुर्किये भाईचारे के इतिहास में एक नया और गौरवशाली अध्याय जोड़ा है।’ लेकिन, तुर्किये की इस करतूत के खिलाफ भारत में लगातार ग़ुस्से का इज़हार किया जा रहा है। यह विडम्बना ही है, भारत के खिलाफ युद्ध के लिए उकसाने वाला तुर्किये, इन दिनों रूस-यूक्रेन के बीच शांति वार्ता की मेज़बानी कर रहा है। लेकिन क्या तुर्किये का इलाज उसकी चंद कंपनियों को भारत में काम करने से रोकने, तुर्किये के विश्वविद्यालय इनोनु के साथ जेएनयू का शैक्षणिक एक्सचेंज समझौता रद्द कर देने भर से सम्भव है?
प्रश्न यह भी है, कि क्या जेएनयू को ऐसा कोई निर्देश मानव संसाधन मंत्रालय से गया था, कि इनोनु से 2028 तक हुआ ‘एमओयू’ तोड़ दो? जेएनयू का चीनी विश्वविद्यालयों के साथ विभिन्न शैक्षणिक आदान-प्रदान कार्यक्रमों के लिए एमओयू हो चुका है। इनमें संयुक्त शोध परियोजनाएं, शिक्षक-छात्र आदान-प्रदान कार्यक्रम, और पाठ्यक्रम विकास शामिल हैं। जेएनयू के ‘ग्लोबल इनिशिएटिव ऑफ़ एकेडमिक नेटवर्क’ ने दुनिया भर के विश्वविद्यालयों के साथ 35 से अधिक पाठ्यक्रम संचालित किए हैं। संयुक्त शोध परियोजनाओं पर पेइचिंग विश्वविद्यालय के साथ साझेदारी भी की है। तुर्किये समेत इन सभी देशों से भारत के कूटनीतिक सम्बन्ध सामान्य चल रहे हैं। फिर, तुर्किये के विश्वविद्यालय ‘इनोनु’ के साथ जेएनयू का शैक्षणिक एक्सचेंज समझौता स्वतःस्फूर्त तरीके से रद्द कर देना, कई सवाल खड़े कर देता है। तुर्किये के विश्वविद्यालय के साथ ऐसा कर सकते हैं, तो चीनी विश्वविद्यालयों के साथ क्यों बगलगीर हैं? भारत-पाक युद्ध में चीनी मिसाइलें छूट रही थीं। चीनी रक्षा प्रणाली नहीं होतीं, तो पाकिस्तान की मिट्टी-पलीद हो जाती। लेकिन चीन के विरुद्ध चूं नहीं बोला जा रहा है।
राष्ट्रपति रिसेप तैय्यिप एर्दोआन का दोहरा चरित्र किसी से छिपा नहीं है। छद्म राष्ट्रवाद के बहाने तुर्किये की जो दुर्दशा एर्दोआन कर रहे हैं, उसकी हालिया मिसाल एक रिपोर्ट है, जिसमें जानकारी दी गई, कि तुर्किये के दस में केवल चार युवाओं को ही रोज़गार मिल सका है। एर्दोआन, ट्रंप के गुडबुक में आने के वास्ते दिलोजान से लगे हुए हैं। अमेरिकी सांसदों के एक द्विदलीय समूह ने 7 मई, 2025 को राष्ट्रपति ट्रम्प को लिखे एक पत्र में तुर्किये को एफ-35 जेट की किसी बिक्री का विरोध किया है। पत्र में चेतावनी दी गई, कि तुर्किये द्वारा एस-400 सिस्टम को बनाए रखना, उसे नाटो और अमेरिकी तकनीक के साथ असंगत बनाता है। सांसदों ने उल्लेख किया, कि 2019 में ‘काउंटरिंग अमेरिकाज एडवर्सरीज थ्रू सैंक्शंस एक्ट’ के तहत तुर्किये को एफ-35 ज्वाइंट स्ट्राइक फाइटर प्रोग्राम से हटा दिया गया था। उन्होंने चेतावनी दी, कि तुर्किये को फिर से शामिल करना, उस कानून का उल्लंघन होगा, जो एस-400 के चालू रहने के दौरान एफ-35 के पुर्जों, या सहायता के हस्तांतरण पर रोक लगाता है।
ट्रंप-एर्दोआन दोस्ती से अलहदा, भारत-तुर्किये दोस्ती पर हम वापस लौटते हैं। इस समय सरकारी से अधिक प्राइवेट प्रतिबंधों का दौर शुरू है। ली ट्रैवेन्यूज टेक्नोलॉजी, ईजी ट्रिप प्लानर्स और कॉक्स एंड किंग्स सहित प्रमुख भारतीय ट्रैवल प्लेटफॉर्म ने तुर्किये और अजरबैजान के लिए प्रचार और सेवाएं भी स्थगित कर दी हैं। कॉक्स एंड किंग्स के एक कार्यकारी करण अग्रवाल ने कहा, कि कंपनी स्थिति पर बारीकी से नज़र रख रही है, और स्थिति में सुधार होने पर परिचालन फिर से शुरू करने पर विचार करेगी। भारत के नागरिक उड्डयन प्राधिकरण के अनुसार, 2024 में लगभग पांच लाख भारतीयों ने तुर्किये का दौरा किया था, जो 2019 के आंकड़ों से दोगुना है। पिछले साल भी अजरबैजान में 80,000 से ज़्यादा भारतीय पर्यटक आए थे। निश्चित रूप से इसका असर इन देशों के पर्यटन व्यवसाय पर पड़ेगा।
भारत ने वित्त वर्ष 2024 में तुर्किये को 3,885 वस्तुओं का निर्यात किया, जो कुल जमा 6.66 बिलियन अमेरिकी डॉलर का था। इसी अवधि में भारत ने तुर्किये से 2,482 वस्तुओं का आयात किया, जिसकी क़ीमत 3.78 बिलियन अमेरिकी डॉलर थी, यानी इस आयात-निर्यात में फायदा भारत को ही हो रहा था। डबल से थोड़ा कम। सेन्ट्रल बैंक ऑफ़ तुर्किये के अनुसार, ‘भारतीय कंपनियों ने तुर्किये में लगभग 126 मिलियन डॉलर का निवेश किया है। इधर भारत में तुर्किये का निवेश लगभग 210.47 मिलियन डॉलर है। अंकारा स्थित भारतीय दूतावास के अनुसार, ‘तुर्किये में पंजीकृत प्रमुख भारतीय कंपनियों में ट्रैक्टर्स एंड फार्म इक्विपमेंट लिमिटेड, महिंद्रा, सोनालीका, टाटा मोटर्स, जिंदल, इंडो-रामा, बिड़ला सेल्यूलोज, पॉलीप्लेक्स, जीएमआर इन्फ्रास्ट्रक्चर, मेरिल लिंच, पुंज लॉयड, रिलायंस इंडस्ट्रीज, थर्मैक्स, विप्रो, डाबर, जैन इरिगेशन जैसी 150 भारतीय कम्पनियां हैं।’ लाखों लोगों का रोज़गार इससे चल रहा है। तो क्या सारी कंपनियों पर ताला लगा देना चाहिए?
प्रधानमंत्री मोदी बार-बार यह वाक्य अपने भाषणों में इस्तेमाल कर रहे हैं, ‘ट्रेड और टेरर साथ-साथ नहीं चल सकता।’ मुझे लगता है, इसमें थोड़ा संशोधन की ज़रूरत है। अगर सचमुच इस थ्योरी पर पूरी दुनिया चलना शुरू करे, तो 193 में एक-चौथाई देश ही कारोबार के लिए रह जायेंगे। पूरी दुनिया में क्रॉस बॉर्डर टेररिज़म के साथ-साथ कारोबार भी चल रहा है। एर्दोआन जिस तरह पाकिस्तान के कंधे पर बंदूक रखकर भारत को साध रहे हैं, उनका इलाज, उन्हीं की भाषा में किया जाना चाहिए।
उदाहरण के लिए, तुर्किये और साइप्रस के बीच तनाव मुख्यतः साइप्रस द्वीप के विभाजन, समुद्री सीमा विवाद, ग्रीक साइप्रसियों और तुर्किये साइप्रसियों के बीच संबंधों को लेकर है। वर्ष 1974 में तुर्किये के साइप्रस पर आक्रमण के बाद, द्वीप दो हिस्सों में विभाजित हो गया। तुर्किये गणराज्य अंकारा द्वारा मान्यताप्राप्त उत्तरी साइप्रस (टीआरएनसी) का हिस्सा है, और उसके बरक्स एक वैसा साइप्रस गणराज्य खड़ा है, जिसे अंतर्राष्ट्रीय समुदाय द्वारा मान्यता प्राप्त है। एर्दोआन जिस तरह से कश्मीर में खेल रहे हैं, भारत भी ग्रीक साइप्रसियों के साथ खड़ा दिखे, तब इस ‘ग्रेट गेम’ का मज़ा है।
कज़ाकिस्तान, उज़बेकिस्तान, किर्गिस्तान और तुर्कमेनिस्तान ने हाल ही में दक्षिणी साइप्रस के ग्रीक साइप्रस प्रशासन (जीसीए) में राजनयिक मिशन खोलने का फ़ैसला किया है। इन उद्घाटनों के साथ-साथ, उन्होंने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों 541 और 550 का भी समर्थन किया, जो उत्तरी साइप्रस में तुर्किये की उपस्थिति को ‘कब्ज़े’ के रूप में परिभाषित करते हैं। एर्दोआन इस बात को लेकर इन सेंट्रल एशियाई देशों से तपे हुए हैं। भारत को चाहिए कि वह उत्तरी साइप्रस में तुर्किये के कब्ज़े के सवाल पर अपने इन चार सेंट्रल एशियाई मित्रों के साथ खड़ा दिखे। हिसाब हो जायेगा बराबर!