सर्वदलीय डेलिगेशन के नाम पर विवाद क्यों ?

8 Min Read

अशोक भाटिया (वरिष्ठ समीक्षक )
केंद्र सरकार ने ऑपरेशन सिंदूर और पाकिस्तान में आतंकवाद के खिलाफ भारत का रुख बताने के लिए 17 मई को डेलिगेशन बनाए। इसमें कई पार्टियों के नेताओं को शामिल किया गया है। ये डेलिगेशन दुनिया के बड़े देशों, खासकर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सदस्य देशों का दौरा करेगा। केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा, ‘सबसे बड़े मौके पर भारत एकजुट है। 7 सर्वदलीय डेलिगेट्स जल्द ही बड़े देशों का दौरा करेंगे, जो आतंकवाद के खिलाफ हमारी लड़ाई के बारे में बताएंगे। यह राजनीति और मतभेदों से परे हटकर देश की एकता को दिखाने का समय है।’ये सातों डेलिगेशन 23 या 24 मई को 10 दिनों के लिए भारत से रवाना होंगे। वहां बताएंगे कि आतंकवाद के खिलाफ भारत का दृष्टिकोण क्या है और ऑपरेशन सिंदूर के तहत पाकिस्तान के खिलाफ एक्शन क्यों और कैसे लिया गया।
संसदीय कार्य मंत्रालय ने शनिवार को डेलिगेशन को लीड करने वाले सांसदों के नाम जारी किए थे । इसमें कांग्रेस से सांसद शशि थरूर का नाम शामिल है। अब कांग्रेस ने कहा है कि उसने केंद्र को थरूर का नाम नहीं दिया था।कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने एक्स पर लिखा, ‘शुक्रवार (16 मई) सुबह संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और विपक्ष के नेता राहुल गांधी से बात की थी। उन्होंने विदेश भेजे जाने वाले डेलिगेशन के लिए 4 सांसदों का नाम मांगा था। कांग्रेस ने आनंद शर्मा, गौरव गोगोई, डॉ। सैयद नसीर हुसैन और राजा बरार के नाम दिए थे।’
कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने ऑपरेशन सिंदूर की जानकारी पूरी दुनिया को देने वाले प्रतिनिधिमंडल का मेंबर बनाए जाने पर केंद्र सरकार को शुक्रिया कहा है। शशि थरूर ने हाल ही में सरकार के सैन्य कदमों की तारीफ की थी। सरकार की तारीफ करने पर बीजेपी के नेताओं ने उनकी सराहना की। लेकिन, कांग्रेस पार्टी में ही कुछ लोग उनसे नाराज़ हैं। थरूर के विचार कांग्रेस पार्टी की सोच से अलग हैं। कांग्रेस पार्टी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार पर पारदर्शिता की कमी का आरोप लगा रही है। कांग्रेस पार्टी ने अमेरिका की भूमिका पर भी सवाल उठाए हैं। हाल ही में, कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने थरूर के बयानों से किनारा कर लिया। उन्होंने कहा, यह उनकी राय है। जब थरूर साहब बोलते हैं, तो यह पार्टी की राय नहीं होती।
पार्टी के कुछ बड़े नेताओं को लगता है कि थरूर ने लक्ष्मण रेखा पार कर दी है। वे लगातार पार्टी की बातों से अलग राय रख रहे हैं। कांग्रेस के बड़े नेताओं और थरूर के बीच रिश्ते हमेशा बदलते रहे हैं। 2014 में, उन्हें पार्टी के प्रवक्ता पद से हटा दिया गया था। उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी के बारे में अच्छी बातें लिखी थीं। 2022 में, थरूर ने कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए मल्लिकार्जुन खड़गे के खिलाफ चुनाव लड़ा था। खड़गे को गांधी परिवार का समर्थन था। फिर भी, थरूर को 1,000 से ज़्यादा वोट मिले थे। थरूर का कांग्रेस पार्टी के साथ रिश्ता उतार-चढ़ाव भरा रहा है।
यह पहली बार नहीं है, जब केंद्र सरकार किसी मुद्दे पर अपना पक्ष रखने के लिए विपक्षी नेताओं की मदद लेगी। इससे पहले भी ऐसा हो चुका है। 26 नवंबर 2008 को हुए मुंबई हमलों के बाद मनमोहन सरकार ने कई पार्टियों के नेताओं के डेलिगेशन विदेश भेजे थे। उन्होंने पाकिस्तानी आतंकवाद के बारे में पूरी दुनिया को बताया था। 1994 में तब के पीएम नरसिम्हा राव ने कश्मीर मुद्दे पर भारत का पक्ष रखने के लिए विपक्ष के नेता अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में डेलिगेशन को संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग भेजा था। इसमें फारूक अब्दुल्ला भी शामिल थे।
अब सवाल यह भी उठता है कि मोदी सरकार ने कांग्रेस के दिए नामों को दरकिनार कर शशि थरूर को ही क्यों चुना? उसका उत्तर स्पष्ट है । शशि थरूर ने 1978 से 2007 तक यूनाइटेड नेशन्स में विभिन्न पदों पर काम किया। उनकी वैश्विक मंचों पर बोलने की क्षमता और कूटनीतिक समझ बहुत बेहतर है। थरूर अच्छी अंग्रेजी बोल लेते हैं और अमेरिका-यूके में काफी वक्त गुजारा है। ऐसे में उन्हें भारत के डेलिगेट के तौर पर बेहतर नेता माना जा सकता है। हालांकि उन्हें चुने जाने की यही वजह नहीं है।बताया जाता है कि ‘शशि थरूर ने हाल ही में ऑपरेशन सिंदूर के लिए सरकार की प्रशंसा की थी, जो कांग्रेस के बिहेवियर से काफी अलग थी। वहीं, कांग्रेस ने जो 4 नाम दिए थे, वो सभी पाकिस्तान और तुर्किये के मुद्दों पर सरकार को घेरते आए हैं।
बताया जाता है कि केंद्र सरकार ने जो सात डेलिगेशन गठित किए हैं, जिनमें विभिन्न दलों के 51 सांसद और पूर्व मंत्री शामिल हैं। इसके अलावा भारतीय विदेश मंत्रालय के 8 अधिकारी भी इन प्रतिनिधिमंडलों का हिस्सा हैं। बैजयंत पांडा, रविशंकर प्रसाद (दोनों भाजपा), संजय कुमार झा (जदयू), श्रीकांत शिंदे (शिवसेना), शशि थरूर (कांग्रेस), कनिमोझी करुणानिधि (डीएमके) और सुप्रिया सुले (राकांपा-सपा) के नेतृत्व में ये सातों प्रतिनिधिमंडल कुल 32 देशों और आखिरी में सभी 59 सदस्य बेल्जियम के ब्रुसेल्स में यूरोपीय संघ मुख्यालय का दौरा करेंगे।
इन सातों डेलिगेशन में शामिल सदस्यों में सत्ताधारी गठबंधन एनडीए के 31 और विपक्षी दलों के 20 सांसद व पूर्व मंत्री हैं। प्रत्येक प्रतिनिधिमंडल में सात या आठ सदस्य शामिल हैं और उन्हें सहयोग देने के लिए हर प्रतिनिधिमंडल के साथ विदेश सेवा के कम से कम एक अधिकारी को अटैच किया गया है। सभी प्रतिनिधिमंडलों में कम से कम एक मुस्लिम प्रतिनिधि है, चाहे वह राजनेता हो या राजनयिक। कांग्रेस द्वारा सुझाए गए चार नामों में से सिर्फ आनंद शर्मा को प्रतिनिधियों की सूची में शामिल किया गया। शेष तीन नाम- गौरव गोगोई, सैयद नसीर हुसैन और अमरिंदर सिंह राजा वारिंग- को सूची में शामिल नहीं किया गया है।
शशि थरूर के अलावा कांग्रेस नेता मनीष तिवारी, अमर सिंह और सलमान खुर्शीद भी प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा हैं। चार नेताओं में से केवल एक को ही स्थान दिए जाने पर कांग्रेस महासचिव एवं संचार प्रभारी जयराम रमेश ने आपत्ति जताई है। उन्होंने एक बयान में कहा कि यह नरेंद्र मोदी सरकार की पूर्ण निष्ठाहीनता को साबित करता है तथा गंभीर राष्ट्रीय मुद्दों पर उसके द्वारा खेले जाने वाले सस्ते राजनीतिक खेल को दर्शाता है। प्रतिनिधिमंडल में पूर्व केंद्रीय मंत्री गुलाम नबी आजाद, एमजे अकबर, आनंद शर्मा, वी मुरलीधरन, सलमान खुर्शीद और एसएस अहलूवालिया शामिल हैं, जो वर्तमान में संसद सदस्य नहीं हैं। हालांकि, विपक्षी पार्टी ने कहा कि मोदी सरकार के आग्रह पर शामिल किए गए चार प्रतिष्ठित कांग्रेस सांसद/नेता निश्चित रूप से प्रतिनिधिमंडल के साथ जाएंगे।

Share This Article