शैलेश कुमार सिंह
बिहार विधानसभा चुनाव महज पांच से छह महीने दूर रह गये हैं। उसका असर प्रदेश की राजनीति में दिखने लगा है। पटना शहर में लगी लोजपा की एक होर्डिंग ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के पुराने घाव कुरेद दिए हैं। इस होर्डिंग पर लगे पोस्टर में चिराग पासवान को मुख्यमंत्री के रूप में देखा जा रहा है। हालांकि उसके अगले ही दिन उन्होंने नीतीश कुमार से मुलाकात की और बाहर आकर कहा कि नीतीश जी के नेतृत्व में ही अगली सरकार बनेगी।
याद रहे कि पिछले विधानसभा चुनाव में चिराग पासवान के उम्मीदवारों ने ही जदयू की लुटिया गोल की थी और उसे 43 सीटों के दुखदायी नम्बर पर समेट दिया था। चिराग ने 135 सीटों पर उम्मीदवार उतार दिए थे। कुछ भाजपा के बागी उम्मीदवार भी उनके टिकट पर लड़े थे। चिराग की वजह से खेल ऐसा बिगड़ा कि 115 सीटों पर उतरी जदयू 43 पर ही जीत हासिल कर पाई। दूसरी तरफ भाजपा 110 सीटों पर उतरी और 74 पर जीत गयी। चिराग पासवान खुद को मोदी जी का हनुमान बताते हैं और मोदी जी के राजनीतिक मित्र नीतीश कुमार को वो फूटी आंख नही सुहाते है। इस खेल को क्या कहें? भाजपा ने बिहार में नीतीश कुमार को गठबंधन का नेतृत्व थमा दिया है और उन्ही के एक सहयोगी ने उनकी पूंछ में आग लगा दिया है। ये सवाल उठने लगा है कि इस बार चिराग फ़ैक्टर के विरुद्ध नीतीश कुमार की क्या रणनीति होगी। खराब सेहत की खबरों के बीच ऐसी खबरें भी आ रही हैं कि नीतीश कुमार अब पहले से बेहतर महसूस कर रहे हैं और किसी भी हालत में मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ने को तैयार नही हैं।
अब थोड़ा विपक्ष की बात कर लें। तेजस्वी यादव बार बार कह रहे हैं कि बिहार बदलाव के लिए तैयार है। लेकिन उनकी दुविधा ये है कि विपक्षी गठबंधन ने उनको मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित नही किया है। उन्हें मुख्यमंत्री का उम्मीदवार घोषित करने से पहले कांग्रेस, लेफ्ट और वीआईपी मनचाही सीटे हथियाना चाहते हैं। कांग्रेस को 70 सीटे चाहिए। पिछले चुनाव में उसे इतनी ही मिली थी लेकिन वो 19 पर ही जीत हासिल कर पाई थी। लेफ्ट 40 से कम के मूड में नही है। पिछली बार उसे 29 मिली थी और 16 पर जीत हासिल की थी। पिछली बार 4 सीट जीतने वाली वीआईपी भी 20 सीटों पर दावा कर रही है। दबी जुबान में तो वीआईपी के नेता मुकेश सहनी के लिए उपमुख्यमंत्री का पद भी मांगा जा रहा है। भूतकाल में झारखंड का उदाहरण सभी को याद है जब चार निर्दलीय विधायको के स्वामी मधु कोड़ा मुख्यमंत्री बन गए थे।
राजद का मानना है कि पिछले विधानसभा में कांग्रेस को ज्यादा सीटें देने के कारण ही जीत का ‘स्ट्राइक रेट घट गया और उसकी हार हुई। राजद 144 सीटों पर लड़ी थी और 75 पर उसके उम्मीदवार विजयी हुए थे। कांग्रेस का कहना है कि उसे ज्यादातर वो सीटें दी गयी थी जहां भाजपा या जदयू के जीतने की संभावना ज्यादा थी। इस बार कांग्रेस पसंद की सीटों की सूची तैयार कर रही है। इस उद्देश्य से कांग्रेस ने अखिलेश प्रसाद सिंह को अध्यक्ष पद से हटा कर एक दलित नेता राजेश कुमार को कमान सौंपी है। अगले चुनाव में सबकी नजर निर्णायक मतों के लिए दलितों पर है। इससे साथ ही कांग्रेस ने ‘फायर ब्रांड’ नेता कन्हैया कुमार को बिहार की पिच पर बैटिंग के लिए उतार दिया गया है। कन्हैया राज्य भ्रमण कर रहे हैं।
बिहार की राजनीति अब सिर्फ भाजपा, जदयू बनाम राजद, कांग्रेस और लेफ्ट तक सीमित नही है। चुनावी रणनीतिकार से राजनेता बने प्रशांत किशोर की लगातार यात्रा से प्रदेश का पक्ष और विपक्ष दोनो त्रस्त है। तीन साल से बिहार के गांवों में घूम रहे प्रशांत किशोर की गांधी मैदान में आयोजित रैली अगर विराट नही थी तो एक नए दल के हिसाब से उत्साहवर्धक जरूर थी। उन्होंने पहले से ही ऐलान कर रखा है कि बिहार विधानसभा की सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ेंगे। वैसे तो प्रशांत किशोर की लोकप्रियता अभी कसौटी पर चढ़नी है लेकिन युवा निश्चित रूप से उनकी तरफ आकर्षित हो रहे हैं। जदयू के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री रह चुके आरसीपी सिंह की पार्टी का विलय जनसुराज में करवाते हुए प्रशांत किशोर ने ताल ठोक दिया है। आरसीपी सिंह नीतीश कुमार के सजातीय हैं और हवा का रुख बदले तो कुर्मी मतों में सेंध लगा सकते हैं।
बिहार में पक्ष और विपक्ष दोनो प्रशांत किशोर के जनसुराज से आपने वोटरों को बचाने की क़वायद में लगे हैं। ऐसी स्थिति में कम से कम आज के हालात में भाजपा ने नीतीश कुमार को भले ही नेता घोषित कर दिया है लेकिन वो चिराग पासवान के साथ अपनी ताकत आंकने में लगी हुई है। दो बार उपमुख्यमंत्री रह चुके तेजस्वी मुख्यमंत्री बनने को लालायित हैं। उनकी टीस है कि चाचा नीतीश अपना वादा भूल गए और कांग्रेस कन्हैया को बिहार में ला कर छाती पर मूंग दल रही है। पक्ष को पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी को भी साधना है, विपक्ष में वीआईपी के नेता मुकेश साहनी कभी भी किसी भी पक्ष में जा सकते हैं। ये भी देखना बाकी है कि नीतीश कुमार इस बार चिराग पासवान को कब तक बर्दास्त कर पाते हैं। बहरहाल जैसे जैसे वक़्त गुजरेगा बिहार में शतरंज की बिसात और कठिन होती जाएगी।