घोषित इमरजेंसी बनाम ‘अघोषित इमरजेंसी’ !

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सुरेंद्र किशोर (पद्मश्री प्राप्त वरिष्ठ पत्रकार )
प्रमुख कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने हाल ही में कहा है कि नरेंद्र मोदी सरकार ने पिछले 11 साल से देश में ‘अघोषित इमरजेंसी’ लगा रखी है।
इसके बाद आप ही फैसला कर लीजिए कि सन 2025 और सन 1975 में कितना फर्क रहा।
आज विभिन्न क्षेत्रों के अनेक राजनीतिक रूप से बेईमान या बौद्धिक रूप से अनजान लोग आए दिन यह कहते रहते हैं कि आपातकाल में जो कुछ हुआ था ,वही सब या उससे से भी बुरा आज देश में हो रहा है। क्या यह बात सही है ? इस संबंध में, मैं पक्की जानकारियों के आधार पर इमरजेंसी (1975-77) की कुछ अनर्थकारी बातें व घटनाएं बताता हूं। इसके आधार पर आप खुद फैसला करें कि कौन सच बोल रहा है और कौन झूठ कह रहा है।

पहला उदहारण
इमरजेंसी में (भारत सरकार के वकील) एटार्नी जनरल नीरेन डे ने सुप्रीम कोर्ट को साफ-साफ यह कह दिया था कि देश में लोगों के मौलिक अधिकारों को, जिनमें जीने का अधिकार भी शामिल है,स्थगित कर दिया गया है। श्री डे ने कोर्ट से यह भी कहा कि यदि हमारी पुलिस किसी की जान भी ले ले तो भी उस हत्या के खिलाफ आज अदालत की शरण नहीं ली जा सकती। नीरेड डे की बात को उचित मानकर ‘ केंद्र सरकार से आतंकित’ तब के सुप्रीम कोर्ट ने उस पर अपनी मुहर लगा दी थी ।
क्या कोई बता सकते हैं कि देश में इमरजेंसी से पहले या बाद में ऐसा कभी कुछ हुआ था या अभी हो रहा है ? क्या अंग्रेजों के राज में भी ऐसा हुआ था कि लोगों के जीने का अधिकार तक छीन लिया गया हो ?

दूसरा उदहारण
इमरजेंसी (1975-77) में मीडिया पर पूर्ण सेंसरशिप लागू कर दिया गया था। उस समय अखबारों के संपादकीय विभागों में जो खबर,लेख, रिपोर्ट आदि छपने के लिए तैयार होते थे, उन्हें लेकर कोई महत्वपूर्ण व्यक्ति पहले प्रेस इंफोरमेशन ब्यूरो (भारत सरकार) के स्थानीय आफिस में जाते थे। पी.आई.बी.के अफसर को उसे दिखाकर प्रकाशनार्थ सामग्री की काॅपी पर उससे मुहर लगवाते थे, उसके बाद ही अखबारों में वह सामग्री छप पाती थीं।
कई सामग्री पी.आई.बी.छपने लायक नहीं समझता था तो उस पर मुहर नहीं लगाता था। उसे अखबार नहीं छापते थे।
क्या कोई सज्जन यह बताएंगे कि इमरजेंसी से पहले या बाद में ऐसा कुछ हुआ या अभी ऐसा कुछ हो रहा हो रहा है ? प्रतिपक्षी नेताओं के बयान की कौन कहे, 1975-77 की उस ‘काल’ अवधि में उनके नाम तक अखबारों में नहीं छपते थे। बीमारी के कारण इमरजेंसी में ही जयप्रकाश नारायण जब जेेल से छूट कर आए तो केंद्र सरकार ने मीडिया को निदेश दिया कि उनकी किसी गतिविधि की खबर न छपे। यानी, उनके कहीं आने-जाने की खबर भी न छपे। वैसा हुआ भी। कहीं कुछ नहीं छपा।

तीसरा उदहारण
आपातकाल में जयप्रकाश नारायण सहित एक लाख से अधिक प्रतिपक्षी राजनीतिक नेताओं और कार्यकर्ताओं को अनिश्चित काल तक के लिए जेलों में ठूंस दिया गया था। देश के 250 पत्रकारों को भी जेलोें में बंद कर दिया गया। खुद इन पंक्तियों का लेखक मेघालय में जाकर भूमिगत हो गया था। मेघालय में उन दिनों कांग्रेस की सरकार नहीं थी । इसलिए वहां ‘इमरजेंसी के अत्याचार’ नहीं थे।
असली इमरजेंसी में जिन्हें गिरफ्तार किया गया था,उन्हें अपनी गिरफ्तारी के खिलाफ अदालत में अपील करने से भी रोक दिया गया था। जब उन गिरफ्तारियों के खिलाफ देश भर में दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण के कई मामले हाईकोर्ट होते हुए सुप्रीम कोर्ट गये तो सुप्रीम कोर्ट ने कह दिया था कि इन गिरफ्तारियों के खिलाफ अदालतें सुनवाई नहीं कर सकतीं।
क्या कोई दूसरा ऐसा उदहारण है ? क्या इमरजेंसी से पहले या बाद में ऐसा कोई आदेश सुप्रीम कोर्ट की तरफ से कभी आया ? अभी तो जेहादी आतंकी के लिए भी सुप्रीम कोर्ट आधी रात में भी खोल दी गयी थी।

चौथा उदहारण
1971 में रायबरेली लोक सभा क्षेत्र में प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी ने संसोपा के राजनारायण को हराया। राजनारायण ने इंदिरा गांधी पर चुनाव में भ्रष्ट आचरण का आरोप लगाते हुए हाई कोर्ट में याचिका दायर की। 12 जून, 1975 को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने आरोप सही पाते हुए प्रधान मंत्री की लोस की सदस्यता रद्द कर दी। इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी में चुनाव कानून की उन खास धाराओं को संसद से बदलवा दिया, जिन धाराओं के तहत उन्हें अयोग्य करार दिया गया था।
इतना ही नहीं, उस संशोधन को पिछली तारीख से लागू करा दिया गया ताकि उसका लाभ इंदिरा गांधी को तुरंत मिल सके।
किसी कानून को पिछली तारीख से लागू करने की बात अजूबी थी। आम तौर पर सुप्रीम कोर्ट पिछली तारीख वाली बात को स्वीकार नहीं करता। पर,चूंकि मामला इंदिरा गांधी से संबंधित था, इसलिए डरे हुए सुप्रीम कोर्ट ने इस पर कोई एतराज नहीं किया था।
क्या इमरजेंसी से पहले या बाद में ऐसा कोई उदहारण है जब किसी प्रधानमंत्री को लाभ पहुंचाने के लिए संसद ने पिछली तिथि से कोई संविधान संशोधन लागू किया हो ? ऐसा कोई उदहारण नहीं मिलेगा।
इसके बावजूद जो लोग अब भी कहना चाहते हैं कि जो कुछ 1975-77 की इमरजेंसी में हुआ था, वह सब आज भी हो रहा है तो वे आज के ऐसे कोई उदाहरण दें। कुछ अशिष्ट टीवी डिबेटरों की तरह इधर-उधर की बातें न करें।

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