पुष्परंजन (वरिष्ठ पत्रकार )
अब चूंकि प्रधानमंत्री मोदी को साइप्रस का सर्वोच्च सम्मान मिल चुका है, तो हम उम्मीद करते हैं कि दक्षिणी दिल्ली की उस सड़क के नाम को सुधारा जायेगा। लोधी रोड के पीछे, पेड़ों से घिरा एक छोटा-सा रास्ता, जहां हरे रंग के एक बोर्ड पर हिंदी में लिखा है- ‘आर्च बिशप माकोरियस मार्ग’। अंग्रेजी, गुरुमुखी, और उर्दू में भी वही लिखा है। दिल्ली स्थित साइप्रस उच्चायोग वालों का भी ध्यान दशकों से लगे इस बोर्ड पर नहीं गया। वास्तविक नाम है- ‘आर्चबिशप मकारियोस तृतीय।’ प्रधानमंत्री मोदी से पहले पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी इस सर्वोच्च सम्मान से नवाज़े जा चुके हैं। वर्ष 2017 में उन्हें यह पुरस्कार, साइप्रस की यात्रा के दौरान मिला, जहां उन्होंने साइप्रस के राष्ट्रपति निकोस अनास्तासियादेस से मुलाकात की। यह पुरस्कार भारत और साइप्रस के बीच द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने में उनके योगदान के लिए दिया गया था।
वर्ष 2017 में साइप्रस गणराज्य ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) में भारत की स्थायी सदस्यता प्राप्त करने का समर्थन किया। मगर, मकारियोस तृतीय के वास्तविक नाम से आठ साल तक दिल्ली वाले अनजान रहे। प्रधानमंत्री मोदी को मिले पुरस्कार पर भी उनका नाम है, जिसने निकोसिया और नई दिल्ली के बीच एक ऐतिहासिक सूत्र को मजबूत किया था। वर्ष 1983 में गुटनिरपेक्ष शिखर सम्मेलन के लिए दिल्ली में कई महत्वपूर्ण नेता आए थे, तब मुझे भी विदेश मंत्रालय में बहैसियत ‘प्रोटोकॉल असिस्टेंट’, काम करने का अवसर मिला था। दिल्ली आये जिन नेताओं को तब नज़दीक से देखने का अवसर मिला था, उनमें फिदेल कास्त्रो, यासिर अराफात भी शामिल थे। इसके बाद, कुछ चुनिंदा सड़कों को गुटनिरपेक्ष नेताओं के नाम रखा गया- ‘जोसिप ब्रोज टीटो मार्ग, गमाल अब्देल नासर मार्ग, हो ची मिन्ह मार्ग- और ‘माकोरियस मार्ग’।
मकारियोस के नाम पर यह सड़क उस कूटनीतिक युग का अवशेष है, जो कभी बहुत चमकता था। बाद के दिनों में मनमोहन सरकार ने आर्चबिशप मकारियोस तृतीय की स्मृति में डाक टिकट जारी किया था। अब अचानक से आर्चबिशप मकारियोस तृतीय भारत में वायरल हो गए, जिन्होंने 1950 से 1977 तक साइप्रस के चर्च के आर्च बिशप के रूप में और 1960 और जुलाई, 1974 के बीच साइप्रस के पहले राष्ट्रपति के रूप में कार्य किया। उसके प्रकारांतर, दिसंबर, 1974 और 1977 के बीच दूसरे कार्यकाल में भी वो शासन प्रमुख बने रहे। उन्हें साइप्रस गणराज्य के संस्थापक पिता, ‘एथनार्क’ के रूप में माना जाता है, जिन्होंने ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन से इसके हस्तांतरण का नेतृत्व किया था। हालांकि, ब्रिटिश सरकार इस द्वीप को उपनिवेश मुक्त करने के लिए अनिच्छुक थी। ब्रिटिश गए भी, तो साइप्रस को भारत-पाकिस्तान की तरह बांटकर, और विवाद को रोपकर।
आर्च बिशप मकारियोस एकमात्र यूरोपीय नेता थे, जिन्होंने अप्रैल 1955 में इंडोनेशिया में आयोजित उपनिवेशवाद विरोधी ‘बांडुंग सम्मेलन’ में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के साथ मिलकर काम किया था। यह वह सम्मेलन था, जिसने अंततः गुटनिरपेक्ष आंदोलन की स्थापना की, जो अमेरिका और यूएसएसआर के नेतृत्व वाले शीतयुद्धीय शिविरों का विकल्प था। साइप्रस बेलग्रेड में 1961 के गुटनिरपेक्ष सम्मेलन में पच्चीस प्रतिभागियों में से एक था, जिसने औपचारिक रूप से आंदोलन की स्थापना की। 1957 में, संयुक्त राष्ट्र महासभा में, भारत के विदेश मंत्री कृष्ण मेनन साइप्रस की स्वतंत्रता के पहले अधिवक्ताओं में से एक थे। मेनन ने साइप्रस की बिना शर्त स्वतंत्रता की वकालत की। आज, साइप्रस संयुक्त राष्ट्र और यूरोपीय संघ का सदस्य राज्य है। तुर्की का प्रतिद्वंद्वी, जो सारे घोड़े खोल लेने के बाद भी यूरोपीय संघ का सदस्य देश नहीं बन सका। साइप्रस 1 मई, 2004 को यूरोपीय संघ का सदस्य देश बना, 2026 में उसे ईयू का अध्यक्ष देश बनना है। इससे पहले 2012 में साइप्रस ईयू का अध्यक्ष देश बना था।
भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 16 जून, 2025 को ग्रीक-साइप्रस संबंधों को और गहरा करने का संकल्प लिया। उन्हें इस साल के अंत तक यूरोपीय संघ के साथ एक मुक्त व्यापार समझौते को अंतिम रूप देने की उम्मीद है। ज़ाहिर है, जब साइप्रस यूरोपीय संघ का अध्यक्ष देश बनेगा, भारत से संबंधों की नई इबारत लिखी जाएगी। मोदी ने संयुक्त राष्ट्र द्वारा गश्त की जाने वाली उस ग्रीन लाइन का भी दौरा किया, जो राजधानी निकोसिया को दो भागों में विभाजित करती है। यह एर्दोआन को अखर रही होगी।
सम्भव है, साइप्रस अगला टूरिस्ट डेस्टिनेशन बने। यह विशेष रूप से ध्यान देने योग्य है, कि अंकारा द्वारा इस्लामाबाद का समर्थन करने के बाद, तुर्की में भारतीय पर्यटकों की आमद में कमी आई थी, साथ ही भारतीयों ने तुर्की के उत्पादों और सेवाओं का भी बहिष्कार किया। भारत सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा चिंताओं का हवाला देते हुए तुर्की के ग्राउंड सर्विस प्रदाता सेलेबी के लिए सुरक्षा मंजूरी भी रद्द कर दी। भारत और साइप्रस के दोनों शिखर नेताओं ने सीमा पार लेन-देन के लिए साइप्रस में यूपीआई सेवाएं शुरू करने, भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम (एनपीसीआई) और साइप्रस के यूरोबैंक के बीच एक समझौता ज्ञापन की सुविधा प्रदान की। भारत, ऊर्जा- तकनीकी सहकार के साथ-साथ मध्य पूर्व-यूरोप व्यापार गलियारे को डेवलप करने के लिए प्रयासरत है, जो चीन का ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’ का विकल्प बन सकता है।
फिर भी, निकोसिया और नई दिल्ली के दिल मिलाने के प्रयास काफी करने होंगे। अव्वल, आम भारतीय साइप्रस के मैरोनाइट ईसाई, अर्मेनियाई, और कुछ हज़ार अरबी भाषियों के स्वभाव, खान-पान, संगीत-संस्कृति से अनजान है। यह ग्रीस के दक्षिण-पूर्व में, तुर्की के दक्षिण में, सीरिया और लेबनान के पश्चिम में, इस्राइल- फलस्तीन के उत्तरपश्चिम में, और मिस्र के उत्तर में अवस्थित, साढ़े नौ हज़ार वर्ग किलोमीटर की परिधि वाला देश है। ‘तुर्की का कट्टर दुश्मन, भारत का पक्का दोस्त…।’ जैसे टेलीविजनी हेडलाइंस सुनने में अच्छे तो लगते हैं, लेकिन लगभग त्रिपुरा के साइज़ के इस छोटे से देश को तुर्किये के मुक़ाबले टूरिस्ट डेस्टिनेशन हम बना दें, खान-पान, संगीत हमें रात भर में रुचिकर लगने लगे, ये सब हवा-हवाई बातें हैं। साइप्रस के कवि और लेखक, प्रोफेसर स्टेफानोस स्टेफनाइड्स को हिंदी साहित्य का विद्यार्थी कितना जानता है? भारतीय प्रकाशन द्वारा उनकी अनुदित कविता अद्भुत है, ‘हम सभी का वध करो, और हमारे खून को नदी बना दो…।’
साइप्रस से कूटनीतिक-आर्थिक संबंधों के निहितार्थ
