नीरज कुमार दुबे
पाकिस्तानी सेनाध्यक्ष फील्ड मार्शल असीम मुनीर को अपने अमेरिका दौरे पर इतराते हुए और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नॉमिनेट किये हुए 24 घंटे भी नहीं बीते थे कि पाकिस्तान एक बड़े राजनयिक संकट में फंस गया और उसे ऐसा डिप्लोमेटिक यूटर्न लेना पड़ा जोकि राजनय के इतिहास में हमेशा के लिए हास्यास्पद घटना के तौर पर देखा जायेगा। हम आपको बता दें कि जैसे ही पाकिस्तान ने 2026 के नोबेल शांति पुरस्कार के लिए डोनाल्ड ट्रंप को नामांकित करने की घोषणा की उसके कुछ ही घंटों बाद अमेरिकी राष्ट्रपति ने ईरान के तीन परमाणु संयंत्रों पर बंकर बलास्टर बम बरसवा कर मध्य पूर्व में युद्ध का खतरा पैदा कर दिया। ऐसे में पाकिस्तान के लिए सिर मुंडाते ही ओले पड़ने वाली स्थिति पैदा हो गयी। सोशल मीडिया पर पाकिस्तान का मजाक भी उड़ाया जाने लगा। ईरान पर अमेरिकी हमलों से पहले डोनाल्ड ट्रंप को विश्व का शांति दूत करार दे रहे पाकिस्तान ने अमेरिकी बमवर्षक विमानों के हमले की निंदा वाला बयान जारी करते हुए कहा कि ये हमले अंतरराष्ट्रीय कानून के सभी मानदंडों का उल्लंघन हैं। पाकिस्तान ने यह भी कहा कि संयुक्त राष्ट्र चार्टर के तहत ईरान को आत्मरक्षा का वैध अधिकार है।
हम आपको यह भी बता दें कि पाकिस्तान के कुछ नेताओं और प्रमुख हस्तियों ने ईरान के तीन परमाणु केंद्रों पर अमेरिका के हमले के बाद सरकार से 2026 के नोबेल शांति पुरस्कार के लिए राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के नाम की सिफारिश करने के अपने फैसले पर पुनर्विचार करने को कहा है। इसलिए देखना होगा कि क्या पाकिस्तान सरकार नोबेल पुरस्कार समिति से की गयी अपनी सिफारिश को वापस लेती है या नहीं? हालांकि उप प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री इशाक डार के हस्ताक्षर वाला अनुशंसा-पत्र नॉर्वे में नोबेल शांति पुरस्कार समिति को भेजा जा चुका है। लेकिन अमेरिका द्वारा ईरान के फोर्दो, इस्फहान और नतांज परमाणु केन्द्रों पर हमले किए जाने के बाद इस फैसले को लेकर पाकिस्तानी नागरिकों, संगठनों और मीडिया की ओर से आपत्तियां आने लगी हैं।
पाकिस्तान के कई प्रमुख राजनेताओं ने शहबाज शरीफ सरकार से नवीनतम घटनाक्रम के मद्देनजर अपने फैसले की समीक्षा करने की मांग की है। जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम (जेयूआई-एफ) के प्रमुख वरिष्ठ नेता मौलाना फजलुर रहमान ने मांग की है कि सरकार अपना फैसला वापस ले। फजल ने पार्टी की एक बैठक में कार्यकर्ताओं से कहा, ‘राष्ट्रपति ट्रंप का शांति का दावा झूठा साबित हुआ है; नोबेल पुरस्कार के लिए प्रस्ताव वापस लिया जाना चाहिए।’ उन्होंने कहा कि ट्रंप की हाल में पाकिस्तान के सेना प्रमुख फील्ड मार्शल आसिम मुनीर के साथ बैठक और दोनों के साथ में भोजन करने से ‘पाकिस्तानी शासकों को इतनी खुशी हुई’ कि उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति को नोबेल पुरस्कार के लिए नामित करने की सिफारिश कर दी। फजल ने सवाल किया, ‘ट्रंप ने फलस्तीन, सीरिया, लेबनान और ईरान पर इजराइल के हमलों का समर्थन किया है। यह शांति का संकेत कैसे हो सकता है?’ उन्होंने कहा, ‘जब अमेरिका के हाथों पर अफगानों और फलस्तीनियों का खून लगा हो, तो वह शांति का समर्थक होने का दावा कैसे कर सकता है?’
वहीं पाकिस्तान के पूर्व सीनेटर मुशाहिद हुसैन ने ‘एक्स’ पर लिखा, ‘चूंकि ट्रंप अब संभावित शांतिदूत नहीं रह गए हैं, बल्कि एक ऐसे नेता हैं जिन्होंने जानबूझकर एक अवैध युद्ध छेड़ दिया है, इसलिए पाकिस्तान सरकार को अब नोबेल पुरस्कार के लिए उनके नाम की सिफारिश पर पुनर्विचार करना चाहिए, उसे रद्द करना चाहिए!’ उन्होंने कहा कि ट्रंप इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू और इजराइल की ‘युद्ध लॉबी’ के जाल में फंस गए हैं और अपने राष्ट्रपति पद की सबसे बड़ी भूल कर रहे हैं। इसके अलावा, पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) के सांसद अली मुहम्मद खान ने अपने ‘एक्स’ अकाउंट पर ‘पुनर्विचार करें’ लिखा। उन्होंने ‘ईरान पर अमेरिकी हमले और गाजा में इजराइल द्वारा की गई हत्याओं के लिए निरंतर अमेरिकी समर्थन’ होने का दावा किया।
साथ ही, अमेरिका में पाकिस्तान की पूर्व राजदूत मलीहा लोधी ने अपनी सरकार के इस कदम को दुर्भाग्यपूर्ण करार दिया और कहा कि यह जनता के विचारों को प्रतिबिंबित नहीं करता है। वहीं वरिष्ठ पत्रकार मारियाना बाबर ने ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में कहा कि आज पाकिस्तान भी बहुत अच्छा नहीं दिखता है। उन्होंने ट्रंप के नाम की सिफारिश वाली पाक सरकार की पोस्ट को साझा करते हुए यह बात कही। इसके अलावा, लेखिका और सामाजिक कार्यकर्ता फातिमा भुट्टो ने कहा, क्या पाकिस्तान नोबेल शांति पुरस्कार के लिए उनके (ट्रंप के) नाम की सिफारिश वापस लेगा?’ वहीं, पत्रकार तलत हुसैन ने कहा कि यह मानसिक गुलामी और अमेरिकी स्वीकृति पाने की बेताबी को दर्शाता है। इसके अलावा, राजनीतिक विश्लेषक मुशर्रफ ज़ैदी ने कहा, जनता के बीच असंगति को लेकर गुस्सा बढ़ रहा है। यह पाकिस्तान की नैतिक स्थिति को कमजोर करता है और इसे सौदेबाज़ी वाली कूटनीति के रूप में पेश करता है। हम आपको यह भी बता दें कि ईरान पर अमेरिकी हमले के बाद पाकिस्तान में सोशल मीडिया पर #NobelForWar और #TrumpNominationShame जैसे हैशटैग ट्रेंड करने लगे थे। इस तरह ट्रंप के नाम का नोबेल के लिए सिफारिश कर पाकिस्तान ने जो कूटनीतिक उपलब्धि हासिल करनी चाही थी वह अब एक बड़ी चूक साबित हो चुकी है।
शहबाज़ शरीफ सरकार भले अमेरिका के साथ संबंध बनाए रखने के लिए तरह-तरह की रणनीति अपना रही है, लेकिन उसकी सारी चालें उलटी पड़ती जा रही हैं। ट्रंप को पूरी दुनिया में सिर्फ पाकिस्तान ने ही शांति पुरुष कहा और ईरान पर हमले के ठीक बाद जिस तरह इस्लामाबाद ने बड़ी तेजी दिखाते हुए निंदा वाला बयान जारी कर दिया उससे पूरी दुनिया में यह संदेश चला गया है कि पाकिस्तान की बातों का कभी भी भरोसा नहीं किया जा सकता और वह किसी का सगा नहीं है। साथ ही, पाकिस्तान में जिस प्रकार अपनी सरकार और सेना की ओर से ट्रंप के लिए नोबेल शांति पुरस्कार की सिफारिश का विरोध किया जा रहा है उसको देखते हुए यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या पाकिस्तान सरकार अपना फैसला वापस लेती है? यह देखना भी रुचिकर होगा कि पाकिस्तान सरकार की सिफारिश पर नोबेल शांति पुरस्कार समिति का क्या रुख रहता है?
पकिस्तान की ‘नोबेल डिप्लोमेसी’ पर गिरी गाज
