नीरज कुमार दुबे,वरिष्ठ स्तंभकार
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने संविधान की प्रस्तावना में ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्दों की समीक्षा करने का आह्वान किया तो कांग्रेस आग बबूला हो गयी। कांग्रेस शायद भूल गयी है कि आपातकाल के दौरान जब सारा विपक्ष जेल में ठूँस दिया गया था तब इंदिरा गांधी की तत्कालीन सरकार ने संविधान की प्रस्तावना में जबरन दो शब्द जोड़ दिये थे। कांग्रेस को समझना चाहिए कि समाजवाद और धर्मनिरपेक्ष शब्द जब बाबा साहेब आंबेडकर के लिखे गये संविधान की प्रस्तावना में थे ही नहीं तो उस पर सवाल उठेंगे ही। ऐसा भी नहीं है कि आरएसएस ने ही पहली बार इन दोनों शब्दों पर सवाल उठाया हो। समाज के कई वर्गों की ओर से इन दोनों शब्दों को संविधान की प्रस्तावना में शामिल करने को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी गयी थी।
आरएसएस पर संविधान विरोधी होने का आरोप लगा रही कांग्रेस शायद भूल रही है कि उसकी सरकारों ने ही सर्वाधिक बार संविधान में संशोधन किये और संविधान की प्रस्तावना तक को संशोधित कर डाला। इंदिरा गांधी सरकार ने 1976 में 42वें संविधान संशोधन के जरिए प्रस्तावना में समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष शब्द तब जोड़े थे जब देश में आपातकाल लगा था और विपक्ष के सारे नेता जेल में थे। यह सही है कि संविधान के अनुच्छेद 368 के अनुसार, संविधान में संशोधन किया जा सकता है और यह शक्ति संसद के पास है जो प्रस्तावना तक भी विस्तारित है। मंगर उस समय संसद ने लोकतंत्र की भावना के अनुरूप काम नहीं किया और विपक्ष की गैर-मौजूदगी में संशोधन के जरिये प्रस्तावना में भारत के वर्णन को ‘संप्रभु, लोकतांत्रिक गणराज्य’ से बदलकर ‘संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य’ कर दिया गया। उस समय राजनीतिक कारणों से संविधान की प्रस्तावना में समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष शब्द को डाला गया। कांग्रेस को इस बात का भी जवाब देना चाहिए कि जब प्रस्तावना को 26 नवंबर 1949 में संविधान सभा ने स्वीकार किया था, तब 1976 में उसे बदल क्यों दिया गया ? कांग्रेस को इस बात का भी जवाब देना चाहिए कि 1976 में किये गये संशोधन के बाद भी संविधान की प्रस्तावना में क्यों लिखा है कि उसे 26 नवंबर 1949 को स्वीकार किया गया?
आरएसएस पर सवाल उठा रही कांग्रेस को यह भी पता होना चाहिए कि साल 2023 में नये संसद भवन में कामकाज के पहले दिन सांसदों को दी गई संविधान की प्रति में प्रस्तावना में ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द नहीं थे। उस समय केंद्र सरकार ने तर्क दिया था कि यह मुद्रित प्रति ही मूल प्रस्तावना थी। कांग्रेस को समझना होगा कि संविधान में सामान्य संशोधनों और प्रस्तावना में किये गये संशोधन में बड़ा फर्क है। कांग्रेस ने आपातकाल के दौरान अलोकतांत्रिक रूप से जो कार्य किया था अब उसे ठीक करने का आह्वान किया जा रहा है तो इसमें गलत क्या है? संविधान की प्रस्तावना में धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी शब्द रहें या नहीं रहें, यदि इस पर संसद के दोनों सदनों में चर्चा के बाद फैसला करने की मांग की जा रही है तो इसमें गलत क्या है? यह वाकई हास्यास्पद है कि कांग्रेस आरएसएस के आह्वान को बाबा साहब के संविधान को नष्ट करने की साजिश बता रही है जबकि इसी पार्टी की सरकार ने बाबा साहेब के संविधान की प्रस्तावना से छेड़छाड़ की थी। बहरहाल, इसमें कोई दो राय नहीं कि डॉ. बीआर अंबेडकर के नेतृत्व में संविधान सभा ने विश्व का उत्तम संविधान भारत को दिया जिससे हमारे लोकतंत्र की नींव मजबूत हुई।
आरएसएस की अपील, संविधान की प्रस्तावना में जोड़े गए समाजवाद और धर्मनिरपेक्ष शब्दों की हो समीक्षा
