महेश खरे (वरिष्ठ पत्रकार )
शी जिनपिंग लगभग दो सप्ताह से अधिक समय के अज्ञात वास के बाद प्रकट हो गए हैं। ‘साउथ चाइना मार्निंग पोस्ट’ ने यह खबर दी है। तो क्या अब चीन में सत्ता-पलट की खबरों को विराम लग जाएगा? बीते मई और जून के दो महीनों के दौरान चीन में घटी घटनाएं संकेत दे रही हैं कि वहां कुछ भी सामान्य नहीं है। जब दुनिया में भारी उथल पुथल का दौर चल रहा हो तब चीन जैसे देश का राष्ट्रपति ग्लोबल सीन से गायब रहे, ऐसी स्थिति में क्या यह गले उतरने की बात है कि चीन में सब कुछ सामान्य चल रहा है? 20 मई से शी जिनपिंग लगभग लापता रहे। मीडिया में ना कोई बयान और ना ही कोई फोटो। ना किसी परेड में दिखे और ना ही कहीं भाषण दिया। चीनी सरकारी मीडिया ‘शिन्हुआ’ में भी राष्ट्रपति शी नहीं दिखे। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर भी उनकी अनुपस्थिति रही। क्या यह सामान्य बात है? कोई राष्ट्राध्यक्ष इतने लंबे समय तक मीडिया की सुर्खियों से नदारद कैसे रह सकता है?
4 जून को जिनपिंग सरकारी मीडिया में उस समय नजर आए जब बेलारूस के राष्ट्रपति अलेक्सांद्र लुकाशेंको चीन के दौरे पर पहुंचे। इस मुलाकात में दो बातें असहज करने वाली थीं। हमेशा उनके साथ रहने वाली सिक्योरिटी कम नजर आई। वहीं, मुलाकात के दौरान शी जिनपिंग थके-थके से और परेशान नजर आए। इसका जिक्र बेलारूस की मीडिया ने भी किया। इसके बाद 5 जून को उनकी अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से फोन पर बात हुई। नई खबर में दावा किया गया है कि शी का पता चल गया है। आलोचक कह रहे हैं कि आर्टीफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) के जमाने में किसी को भी कहीं भी दिखा दिया जाना अब बहुत कठिन नहीं है। चीन वैसे भी एआई के प्रयोगों में काफी प्रवीण है।
सवाल यह भी उठ रहे हैं कि अगर सबकुछ ठीक है तो राष्ट्रपति सार्वजनिक कार्यक्रमों से अभी भी दूरी क्यों बनाए हुए हैं? 12 साल में यह पहली बार है जब ब्राजील में होने वाली ब्रिक्स देशों की बैठक में जिनपिंग नहीं गए। ब्रिक्स में प्रधानमंत्री ली कियांग ने चीन का प्रतिनिधित्व किया। बीते डेढ़ महीने के अंतराल में और उसके पहले भी अनेक ऐसी घटनाएं हुईं जो यह भरोसा दिलाने के लिए पर्याप्त हैं कि चीन में कुछ ना कुछ ऐसा चल रहा है जो शी जिनपिंग के लिए सामान्य तो कतई नहीं कहा जा सकता। साउथ चाइना मार्निंग पोस्ट की खबर के अनुसार राज्य और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) के मीडिया ने गत सोमवार को श्री जिनपिंग को पोलित ब्यूरो को निर्देश देते हुए दिखाया। इससे माना जा रहा है कि लंबी गुमनामी के बाद जिनपिंग लौट आए हैं। इस संकेत के साथ कि अभी भी सत्ता की कमान उनके ही हाथ में है। तो क्या जिनपिंग इतने दिनों तक स्वास्थ्य लाभ पर थे?
इस बीच अंतरराष्ट्रीय मीडिया शी की खोज-खबर लेता रहा।सीएनएन ने चीन के बड़े खुफिया अधिकारियों के हवाले से खबर दी कि चीनी राष्ट्रपति का लापता होना ‘अनयूजुअल’ नहीं है। दरअसल चीन के इतिहास पर नजर डालें तो वहां सत्ता का हस्तांतरण अचानक नहीं, स्टेप बाई स्टेप होता है। सत्ता भले ही नेता के नाम पर चले पर पॉवर किसी और के हाथ में रहता है। शायद इसीलिए अटकलबाजियों का बाजार आज भी ठंडा नहीं पड़ा है।
15 जून 1953 को बीजिंग में जन्मे शी जिनपिंग ने 15 नवंबर 2012 को चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के प्रमुख का पद संभाला था। 14 मार्च 2013 को राष्ट्रपति पद की शपथ ली। शी जिनपिंग संभवतः चीन के पहले राष्ट्राध्यक्ष हैं जिनके पास देश के सभी प्रमुख पद हैं। निरंकुश नीति के कारण वे चर्चा में रहते आए हैं। उन्होंने एक-एक करके अपने लगभग सभी विरोधियों को किनारे लगा दिया है। बदले माहौल में अब उन्हें बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। मीडिया की खबरों को सही मानें तो चीनी सेना के बड़े अधिकारी भी शी से खुश नहीं हैं। राष्ट्रपति के करीबी अफसरों की छंटनी हो गई है। उनकी सिक्योरिटी आधी से भी कम हो गई। सबसे बड़ी बात उनके पिताजी शी झोंगसुन की समाधि का विशेष दर्जा भी समाप्त कर दिया गया है। पार्टी में विरोधी गुट का पहले की तुलना में अचानक बहुत एक्टिव हो जाने का क्या अर्थ लगाया जाए?
बीजिंग से छन-छन कर निकल रही चर्चाओं को गंभीरता से लिए जाने का कारण भी है। शी की विदाई की अटकलों के साथ उनके उत्तराधिकारी का नाम भी लिया जा रहा है। चूंकि राष्ट्रपति शी के खिलाफ सेना में नाराजी बढ़ रही है इसलिए उनके उत्तराधिकारियों में पीपल्स लिबरेशन आर्मी के जनरल झांग यूक्सिया का नाम लिया जा रहा है। झांग को पूर्व राष्ट्रपति हू जिंताओ का समर्थन प्राप्त है। हू जिंताओ चीन के लोकप्रिय नेताओं में से एक हैं। उन्हें शी से 2022 का हिसाब चुकता करना है। शी जिनपिंग ने तब बैठक से उन्हें बाहर निकलवा दिया था। हालांकि चीन में लोकप्रिय तो शी जिनपिंग भी हैं। लेकिन अगर देर सबेर उनका तख्ता पलटता है तो इसके पीछे उनकी निरंकुश नीति और चीन के बिगड़ते हालात हैं। चीन पर कर्ज बढ़कर 50 ट्रिलियन डॉलर से अधिक हो गया है। एक सामाजिक मसला भी है। चीन के लोग शादियों से बिमुख हो रहे हैं। जो शादी कर लेते हैं वो संतान सुख का विचार भी मन में नहीं लाते। नतीजतन चीन की आबादी में बुढ़ापे का अनुपात तेजी से बढ़ रहा है।
जहां तक भारत के साथ रिश्तों का संबंध है, डिप्टी आर्मी चीफ लेफ्टिनेंट जनरल राहुल आर सिंह ने ऑपरेशन सिंदूर में पाकिस्तान, चीन और तुर्किए की भूमिका की जिस प्रकार कलई खोली है, उसके बाद अब चीन और तुर्किए भी भारत के शत्रुओं की श्रेणी में खड़े दिखाई देने लगे हैं। सीधे युद्ध से परहेज़ करने की नीति पर चीन चल रहा है। अब यह छुपी हुई बात नहीं रही कि उस समय पाकिस्तान के कंधे पर बंदूक थी पर चला चीन रहा था। यह तो भारत का रण कौशल है जिसके बूते हमारी सेना एक साथ तीन-तीन देशों को हराने में कामयाब रही।
दो सप्ताह लापता रहना एक राष्ट्रपति का!
