डॉलर की दादागिरी पर लगाम लगाने की तैयारी

8 Min Read

शम्भूनाथ शुक्ल
(वरिष्ठ पत्रकार)
ब्रिक की कल्पना 2001 में की गई थी. इससे आशय था विश्व के उभरते हुए देशों का एक संगठन बने जो अमेरिका और यूरोप के विकसित देशों के लिए चुनौती बन सकें. ये देश थे, ब्राजील, रूस, भारत और चीन. 2009 में यह संगठन साकार रूप ले पाया. रूस के शहर येकातेरिनबर्ग में इसकी पहली बैठक हुई. 2010 में इसमें दक्षिण अफ़्रीका भी इस समूह में जुड़ा और इस समूह को ब्रिक्स कहा जाने लगा. वर्ष 2024 में मिस्र, इथियोपिया, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और ईरान भी जुड़ गए हैं. बाद में इंडोनेशिया भी इसके साथ जुड़ गया. आज ब्रिक्स समूह दुनिया के विकसित देशों के समूह जी 7 के समानांतर एक संगठन है. इसकी अर्थव्यवस्था 28 ट्रिलियन डॉलर की है.
आज की तारीख में बेलारूस, बोलीविया, क्यूबा, कजाकिस्तान, उज़्बेकिस्तान, मलेशिया, थाईलैंड, नाइजीरिया और युगांडा इसके पार्टनर देश हैं. अब रविवार को ब्राजील की राजधानी रियो डी जेनेरियो में वियतनाम को भी ब्रिक्स का पार्टनर देश बना लिया गया है. एशिया और अफ्रीका के 11 देशों का यह संगठन अब अमेरिका और यूरोप के लिए चुनौती बनता जा रहा है. अब तो इन देशों ने डॉलर के समानांतर अपनी करेंसी बनाने का निर्णय भी लिया है. दुनिया की 45 प्रतिशत आबादी इस समूह से जुड़ी हुई है. ब्रिक्स में शुरू से जुड़ने वाले पाँचों देश जी 20 में भी हैं. आज यह समूह अपनी क्रय क्षमता में विकसित देशों के बराबर खड़ा हुआ है. न्यू डेवलपमेंट बैंक तथा अन्य कई संस्थाएँ भी यह समूह चला रहा है.
अपनी समानांतर करेंसी लाने की इनकी घोषणा से अमेरिका बेचैन है. झुंझलाए डोनाल्ड ट्रंप ने दक्षिण कोरिया और जापान पर 25 प्रतिशत टैरिफ़ लगा दिया है और ब्रिक्स देशों को भी धमकाया है. यद्यपि इस सम्मेलन में चीन, रूस, ईरान और मिस्र के राष्ट्रपति नहीं मौजूद रहे फिर भी यह माना जा रहा है कि परदे के पीछे से पुतिन और शी जिन पिंग अपनी चालें चलते रहे. रूस और चीन सीधे अमेरिका से नहीं भिड़ना चाहते किंतु समानांतर मुद्रा के हामी सभी हैं. सबसे बड़ी बात कि यह समानांतर मुद्रा न रूबल होगी और न युआन. इसलिए ब्रिक्स देशों पर धौंस किसी की नहीं चलेगी. यह समानांतर मुद्रा डिजिटल करेंसी के रूप में होगी. एक तरह से यह दुनिया के सभी दादा देशों को चुनौती है कि ब्रिक्स देश किसी के पिछलग्गू नहीं बनेंगे. न अमेरिका के न अपने ही साथी रूस और चीन के.

पहलगाम पर चर्चा और एससीओ के रवैये की परोक्ष निंदा
इसके अलावा ब्रिक्स का यह सम्मेलन भारत के लिए पर्याप्त अनुकूल रहा. इस सम्मेलन में आतंकवाद के विरुद्ध ब्रिक्स देशों को एकजुट होने का आह्वान किया गया. कुछ दिन पहले हुए शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ ) में पहलगाम हमले पर इस सम्मेलन में आये देशों ने चुप साध ली थी. यहाँ तक कि आतंकवाद की निंदा तक नहीं की गई. किंतु ब्रिक्स सम्मेलन में पहलगाम घटना की निंदा की गई. इस सम्मेलन में जो साझा घोषणापत्र जारी हुआ, उसमें लिखा गया है, हम आतंकवाद को कतई बर्दाश्त न करने की नीति सुनिश्चित करने और आतंकवाद का मुकाबला करने में दोहरे मापदंड को खारिज करने का आग्रह करते हैं. यहाँ दोहरे मापदंड से आशय चीन के रूख से है. क्योंकि चीन ने शंघाई सहयोग संगठन में पहलगाम घटना का ज़िक्र नहीं होने दिया था.
ब्रिक्स सम्मेलन से अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प बौखला गए हैं. उन्होंने हर उस देश पर टैरिफ लगाने की धमकी दी है, जो ब्रिक्स में शामिल हुए. अब रूस और चीन का तो कुछ बिगाड़ नहीं सकते और ईरान पर तो वैसे भी प्रतिबंध लगा रखा है. ऐसे में बचता है सिर्फ भारत क्योंकि ब्राज़ील एक तो दक्षिण अमेरिकी देश है और वहां कम्युनिस्ट सरकार है. भारत एक निर्यातक देश है और कोयला तथा कई और तरह के कच्चा माल वह अमेरिका को निर्यात करता है. अब भारत पर टैरिफ लगाने का मतलब है कि अमेरिका में भारतीय माल का महँगा हो जाना. लेकिन ट्रंप यह भी भूल रहे हैं कि भारत दुनिया का एक बड़ा उपभोक्ता बाज़ार है. भारत से यदि वह ट्रेड बंद करता है तो नुकसान उसको भी होगा. दुनिया में आज भी चीन और भारत अमेरिका से काफ़ी कुछ आयात भी करते हैं.

अमेरिका पुतिन का कुछ बिगाड़ नहीं सका
डोनाल्ड ट्रम्प की अमेरिका फ़र्स्ट की नीति अब उनको ही महँगी पड़ती जा रही है. क्योंकि ब्रिक्स के माध्यम से दुनिया के अधिकांश ट्रेड रूट्स पर रूस हावी है. रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने 2022 के यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद से जो नीतियां बनाई उससे अमेरिका परेशान हो गया है. अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बाइडेन ने नाटो देशों को यूक्रेन की सैन्य और आर्थिक मदद में लगा दिया. और रूस पर प्रतिबंध लगा दिए. लेकिन बाइडेन भूल गए कि एशिया के कई देश इन प्रतिबंधों को नहीं मानेंगे. चीन जो क्रूड ऑयल का बहुत बड़ा आयातक हैं, वह रूस से तेल मंगाता रहा. एक तो यह सस्ता पड़ता और पड़ोसी देश होने के कारण ट्रांसपोर्ट का खर्च कम. उधर पुतिन ने ईरान के माध्यम से भारत को भी सप्लाई की.
रूस का तेल सस्ता तो था ही वह भारत से व्यापार रुपए के माध्यम से करता. यूक्रेन गेहूं का एक बड़ा उत्पादक है किंतु युद्ध के बाद वह गेहूं बेचे किसे और कैसे! क्योंकि उसके पास जो काला सागर है, उससे एशिया और अफ़्रीका में प्रवेश करने के लिए जो नहर है उस पर तुर्किये का पहरा है. पुतिन ने तुर्किये पर दबाव बना कर संयुक्त राष्ट्र के जरिये 2022 में हुआ ब्लैक सी ग्रीन इनिशिएटिव को रद्द कर दिया. इससे यूक्रेन का गेहूं और मक्का खेतों में ही सड़ने लगा. मध्य एशिया, खाड़ी देश और अफ्रीका को निर्यात बंद हो गया. अमेरिका यह सब देख कर भी कुछ नहीं कर पा रहा. तुर्किये भले ही अमेरिका के नाटो समझौतों वाले देशों में हो लेकिन उसके राष्ट्रपति अर्दोआन बहुत चतुर और काइयां राजनेता हैं. वे अब नाटो छोड़ ब्रिक्स में जाने की धमकी ड़े रहे हैं.
तुर्किये का बड़ा हिस्सा तो एशिया में है लेकिन एक छोटा हिस्सा यूरोप में पड़ता है. राजधानी इस्तांबुल यूरोपीय क्षेत्र में है. इसलिए तुर्किये ने यूरोपीय यूनियन में भी घुसने की कोशिश की थी. पर 27 देशों के ईयू समूह में उसे पूरी तरह एंट्री कभी नहीं मिली. नाटो के 22 देशों के समूह में भी अर्दुआन इधर-उधर करते रहते हैं. उधर पुतिन उनको ब्रिक्स समूह में प्रवेश दिला सकते हैं. देर-सबेर ऐसा हुआ तो ब्रिक्स देशों का समूह बहुत ताकतवर हो जाएगा. ब्रिक्स देशों में चीन है ज़रूर लेकिन इस समूह पर पुतिन भारी पड़ते हैं. शायद इसीलिए चीन के प्रभाव वाले शंघाई सहयोग संगठन में भारत पाकिस्तान के विरुद्ध साझा वक्तव्य नहीं प्रसारित करवा पाया मगर ब्रिक्स में उसे जीत मिली. पहलगाम का ज़िक्र भी हुआ और आतंकवाद पर दोहरा रवैया अपनाने की निंदा भी.

Share This Article