सुप्रीम फटकार: राहुल गांधी के लिए चिंतन का मौका

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नीरज कुमार दुबे (वरिष्ठ स्तंभकार)
कांग्रेस सांसद और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी अक्सर अपनी तीखी राजनीतिक बयानबाज़ी के कारण विवादों में रहते हैं। ऐसा ही एक विवादित बयान देने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने राहुल गांधी को कड़ी फटकार लगाते हुए साफ कहा है कि विपक्ष के नेता के रूप में उन्हें अपनी बातें संसद के पटल पर रखनी चाहिए, सोशल मीडिया या सार्वजनिक मंचों पर नहीं। उच्चतम न्यायालय ने राहुल गांधी को फटकार लगाते हुए कहा कि अगर आप सच्चे भारतीय हैं तो आप ऐसी बातें नहीं कहेंगे। उच्चतम न्यायालय ने राहुल गांधी से पूछा है कि उन्हें कैसे पता चला कि 2,000 किलोमीटर जमीन चीन ने कब्जा ली है। अदालत ने राहुल गांधी के खिलाफ दर्ज आपराधिक कार्यवाही पर भी रोक लगा दी।
सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने इस मामले में उत्तर प्रदेश सरकार और शिकायतकर्ता उदय शंकर श्रीवास्तव को नोटिस जारी किया है। उल्लेखनीय है कि उदय शंकर श्रीवास्तव की शिकायत पर ही यह मामला दर्ज हुआ था। शिकायत में आरोप लगाया गया था कि राहुल गांधी ने भारत-चीन सीमा विवाद के संदर्भ में भारतीय सेना के खिलाफ कई अपमानजनक बयान दिए थे। राहुल गांधी ने अपने खिलाफ दर्ज शिकायत और सम्मन आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। उन्होंने दलील दी कि यह शिकायत राजनीतिक द्वेष से प्रेरित है और इसे दुर्भावना से दायर किया गया है।
हम आपको याद दिला दें कि राहुल गांधी ने अपनी भारत जोड़ो यात्रा (दिसंबर 2022) के दौरान भारतीय सेना को लेकर आपत्तिजनक बयान दिया था। राहुल गांधी ने तवांग में हुई झड़प के बाद विवादित बयान देते हुए कहा था कि चीनी सैनिक भारतीय सैनिकों को पीट रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा था कि चीन युद्ध की तैयारी कर रहा है और हमारी सरकार सोई हुई है। उस समय राहुल गांधी के बयान पर राजनीतिक हंगामा तो हुआ ही था, सेना के पूर्व अधिकारियों ने भी नाराजगी जताते हुए कहा था कि भारतीय सेना दुश्मन से मुकाबले को हमेशा तैयार रहती है। सेना के पूर्व अधिकारियों ने राहुल गांधी का ध्यान कांग्रेस शासन के दौरान की कमजोरियों की ओर भी दिलाया था। यही नहीं, अरुणाचल प्रदेश का तवांग, जहां भारत और चीनी सैनिकों के बीच झड़प हुई थी वहां के लोगों ने भी राहुल गांधी के बयान पर नाराजगी जताते हुए कहा था कि हमें भारतीय सेना पर गर्व है और उन पर पूरा भरोसा है।
हम आपको यह भी याद दिला दें कि सिर्फ तवांग ही नहीं, राहुल गांधी ने गलवान घाटी में भारत-चीन सैनिकों के बीच हुई झड़प को लेकर भी गलतबयानी की थी। उन्होंने उस समय सरकार से पूछा था कि गलवान घाटी कांड और उसके पहले चीन ने जो हमारी जमीन छीनी है, उसके बारे में प्रधानमंत्री मोदी चुप क्यों हैं? हालांकि राहुल को शायद पता नहीं कि उसके परनाना नेहरुजी के जमाने में हमारी लगभग 38 हजार किमी जमीन पर चीन ने कब्जा कर लिया था और 1962 के युद्ध में भारत को भारी शार्मिंदगी उठानी पड़ी थी। यही नहीं, पांच-छह दशक के शासन-काल में कांग्रेस पार्टी ने उस जमीन की वापसी के लिए कभी कोई ठोस कोशिश ही नहीं की।
तवांग घटना के बाद कांग्रेस ने प्रधानमंत्री मोदी से जो सात सवाल पूछे थे वह राष्ट्रहित के विरुद्ध तो थे ही साथ ही हमारी सेना का मनोबल गिराने वाले भी थे। राहुल गांधी को यह भी पता होना चाहिए कि साल 2007 में संसद में एक प्रश्न पूछा गया था, तब तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने बताया था कि 38 हजार स्क्वयार किलोमीटर की जमीन और कुल 43180 स्क्वयार किलोमीटर जमीन कांग्रेस शासन के दौरान चीन ने कब्जाई है। यह कोई पहला मौका नहीं है जब राहुल गांधी की टिप्पणी पर न्यायपालिका ने सवाल खड़े किए हों। इससे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ उनकी ‘चौकीदार चोर है’ वाली टिप्पणी पर भी सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें फटकार लगाई थी। अब तवांग घटना और चीन से जुड़ी सीमा स्थिति पर सेना के शौर्य पर सवाल उठाने वाले उनके बयान ने एक बार फिर राजनीतिक बयानबाज़ी की सीमाओं पर बहस छेड़ दी है।
जहां तक तवांग में घटे घटनाक्रम की बात है तो इसके बारे में बताया जाता है कि चीनी सेना ने नियंत्रण रेखा को पार करने का प्रयास किया था जिसका विरोध किया गया था। हालांकि इस मुद्दे का स्थानीय स्तर पर ही समाधान हो गया था और बुमला में इसको लेकर एक फ्लैग मीटिंग भी हुई थी। इस घटना के बाद एक वीडियो भी सोशल मीडिया पर आया था जिसमें भारतीय सेना चीनी सेना को पीटते और खदेड़ते देखी गयी थी। हालांकि इस बात की पुष्टि नहीं हो सकी थी कि वह वीडियो तवांग में हुई झड़प का था या नहीं।
राहुल गांधी को समझना होगा कि भारतीय सेना केवल एक संस्था नहीं, बल्कि देश की सुरक्षा और सम्मान का प्रतीक है। जब कोई प्रमुख नेता सेना के शौर्य या क्षमता पर सार्वजनिक रूप से सवाल उठाता है, तो यह न केवल सैनिकों का मनोबल प्रभावित कर सकता है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी गलत संदेश जाता है। विपक्ष की भूमिका सरकार से सवाल पूछने की है, लेकिन यह प्रक्रिया तथ्यों और जिम्मेदाराना भाषा पर आधारित होनी चाहिए। सोशल मीडिया और जनसभाओं में दिए गए बयान त्वरित राजनीतिक लाभ दे सकते हैं, लेकिन उनके दीर्घकालिक प्रभाव राष्ट्रीय सुरक्षा के दृष्टिकोण से गंभीर हो सकते हैं।
सुप्रीम कोर्ट की ओर से कार्यवाही पर रोक लगाना फिलहाल राहुल गांधी के लिए राहत है, लेकिन अदालत की सख्त टिप्पणी उनके लिए एक स्पष्ट चेतावनी भी है। राहुल गांधी को यह समझना होगा कि विपक्ष के नेता के रूप में उनके हर शब्द का राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर असर होता है। व्यक्तिगत या दलगत राजनीति के लिए भारतीय सेना के शौर्य पर सवाल उठाना किसी भी दृष्टिकोण से उचित नहीं ठहराया जा सकता।
बहरहाल, सुप्रीम कोर्ट की फटकार को राहुल गांधी को आत्मचिंतन के अवसर के रूप में लेना चाहिए। राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दों पर संवाद और बहस हो सकती है, लेकिन यह तथ्यों पर आधारित और गरिमापूर्ण होनी चाहिए। यही लोकतंत्र और देशहित की सच्ची कसौटी है।

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