वर्कफोर्स में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने बढ़ाने की जरुरत

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तृप्ति सिंघल सोमानी
भारत ने जेंडर इक्विटी की दिशा में काफी कुछ किया है, लेकिन अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। देश ने महिला साक्षरता और हायर एजुकेशन में महत्वपूर्ण प्रगति की है। हालांकि, ये उपलब्धियां अभी तक प्रपोशनल वर्कफोर्स पार्टिसिपेशन में तब्दील नहीं हुई हैं। हालिया डब्ल्यूईपी (वुमन एम्पावरमेंट प्रिंसिपल्स) लेबर फोर्स विश्लेषण के अनुसार, 2024 में महिला साक्षरता दर 77% से अधिक पहुंच गई थी और महिलाएं अब उच्च शिक्षा में महिलाओं का हिस्सा करीब 48 प्रतिशत हैं। इसके बावजूद फीमेल लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन रेट 2023-24 में 41.7 फीसदी थी , जो वैश्विक औसत से काफी नीचे है। यह आंकड़ा शिक्षा और रोजगार के बीच एक बड़े अंतर को उजागर करता है।
गौर करने वाली बात यह है कि भले ही अब पहले से अधिक महिलाएं ग्रेजुएट हो रही हैं, लेकिन फॉर्मल वर्कफोर्स में उनकी भागीदारी अभी भी अपेक्षाकृत कम है। डब्ल्यूईपी डेटा के अनुसार, सभी ग्रेजुएट्स में से लगभग आधी हिस्सेदारी के बावजूद केवल 20 फीसदी महिलाएं ही फॉर्मल एम्प्लॉयमेंट या एंटरप्रेन्योरशिप में प्रवेश कर पाती हैं। यहां तक कि ग्रेजुएशन में सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वालीं महिलाएं भी कभी-कभी वर्कफोर्स का हिस्सा नहीं बन पातीं। शिक्षा और नौकरी के बीच का यह अंतर महिलाओं की क्षमता का प्रतिबिंब नहीं है, बल्कि ऐसे माहौल को दर्शाता करता है, जहां महिलाओं को अपनी प्रोफेशनल यात्रा को आगे बढ़ाने के लिए पर्याप्त सपोर्ट नहीं मिलता। एजुकेशनल इंस्टिट्यूट अक्सर अपने यहां बढ़ती स्टूडेंट्स की संख्या का जश्न मनाते हैं, लेकिन उतने उत्साह के साथ शायद ही कन्वर्शन रेट को ट्रैक करते हैं।
वूमेनोवेटर में हम नीतिगत बदलाव की पुरज़ोर वकालत करते हैं। भारत के नेशनल रैंकिंग फ्रेमवर्क में कॉलेजों और विश्वविद्यालयों की रैंकिंग में एक प्रमुख पैरामीटर के रूप में कन्वर्शन रेट को शामिल किया जाना चाहिए। संस्थानों का मूल्यांकन न केवल एकेडमिक प्रदर्शन के आधार पर बल्कि महिलाओं को वर्क फोर्स में शामिल करने की उनकी क्षमता के आधार पर किया जाना चाहिए। यदि ऐसा सही तरीके से होता है, तो यह न केवल फीमेल एम्प्लॉयमेंट रेश्यो में सुधार करेगा बल्कि भारत की जीडीपी वृद्धि में भी सार्थक योगदान देगा। फीमेल वर्कफोर्स पार्टिसिपेशन में हालिया वृद्धि उल्लेखनीय है, लेकिन इसका अधिकांश हिस्सा सेल्फ-एम्प्लॉयमेंट या अनपेड फैमिली वर्क के कारण है, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में ऐसा ज्यादा देखने को मिलता है। इस तरह की भागीदारी अक्सर वित्तीय स्थिरता और विकास के अवसरों में कमी की वजह बनती है। शहरी क्षेत्रों में, लैंगिक असमानताएं अभी भी मौजूद हैं। एंट्री लेवल की भूमिकाओं में महिलाओं की हिस्सेदारी 31 फीसदी हैं, जबकि लीडरशिप पोजीशन में यह आंकड़ा महज 13 फीसदी है।
वूमेनोवेटर में हम इस तस्वीर को बदलने के लिए काम कर रहे हैं। हमारा मेंटर-मेंटी प्रोग्राम पहले ही 1000 से ज्यादा अनुभवी पेशेवरों को विभिन्न क्षेत्रों की महत्वाकांक्षी महिलाओं से जोड़ चुका है, जिसका सीधा असर 300 से ज्यादा महिलाओं के करियर पर पड़ा है। हमारा मानना है कि वास्तविक सशक्तिकरण कम्युनिटी, मेंटरशिप और सपोर्ट से उत्पन्न होता है, और हम एक ऐसा इकोसिस्टम बना रहे हैं जो सुनिश्चित करता है कि महिलाएं अपनी प्रोफेशनल जर्नी में कभी अकेली न रहें।
जमीनी स्तर पर शिक्षा और नौकरी के इस अंतर को पाटने के लिए, वूमेनोवेटर में हम कॉलेजों में सेल स्थापित करने का लक्ष्य लेकर चल रहे हैं। यह एक तरह का डेडिकेटेड संगठन है, जो मेंटरशिप, करियर काउंसलिंग और एंटरप्रेन्योरियल ट्रेनिंग प्रदान करता है। ये सेल पीयर-टू-पीयर नेटवर्क को बढ़ावा देते हैं और युवा महिलाओं को आत्मविश्वास से वर्कफोर्स में प्रवेश करने और आगे बढ़ने के लिए तैयार करते हैं। इसके अतिरिक्त, हमने महिलाओं को लीडरशिप और कम्युनिटी-बिल्डिंग स्किल्स से लैस करने के लिए डिज़ाइन किया गया एक कम्युनिटी डेवलपमेंट एंड लीडरशिप कोर्स भी शुरू किया है। यह कोर्स न केवल प्रतिभागियों को अपनी पहचान विकसित करने में मदद करता है, बल्कि उन्हें दूसरों को ऊपर उठाने में भी सक्षम बनाता है, ताकि सशक्तिकरण का प्रभाव विभिन्न क्षेत्रों तक महसूस किया जा सके।
भारत जैसे देश में जहां सामाजिक और संरचनात्मक बाधाएं अभी भी महिलाओं की प्रोफेशनल प्रगति को सीमित करती हैं, वूमेनोवेटर एक रिलेवेंट, स्केलेबल और इम्पैक्ट-ड्रिवेन सल्यूशन प्रदान करता है। हमारे प्रयास प्रत्यक्ष तौर पर राष्ट्रीय आर्थिक लक्ष्यों के साथ संरेखित हैं और क्षमता को भागीदारी में बदलने की प्रतिबद्धता को दर्शाते हैं। शोध से पता चलता है कि रोजगार में लैंगिक अंतर यानी जेंडर गैप को पाटने से 2025 तक भारत के सकल घरेलू उत्पाद में 770 अरब डॉलर की वृद्धि हो सकती है। यदि भारत अपने 5 ट्रिलियन डॉलर के आर्थिक लक्ष्य को प्राप्त करना चाहता है, तो वह महिलाओं के रूप में अपनी आधी प्रतिभावान आबादी को पीछे नहीं छोड़ सकता। महिलाओं को वर्कफोर्स का हिस्सा बनने और लीडरशिप की भूमिका निभाने के लिए सशक्त बनाना महज एक सामाजिक अनिवार्यता नहीं है- यह एक आर्थिक आवश्यकता भी है।
वूमेनोवेटर केवल बदलाव की वकालत नहीं कर रहा- हम खुद ऐसे रास्ते निर्मित कर रहे हैं जो इसे संभव बनाते हैं। मेंटरशिप, पॉलिसी एडवोकेसी और कम्युनिटी लीडरशिप के माध्यम से, हम वर्कफोर्स में भारतीय महिलाओं की भूमिका को फिर से परिभाषित करने के लिए काम कर रहे हैं। इस अंतर को पाटने का समय अब आ गया है, और इसकी शुरुआत सफलता को मापने के लिए कन्वर्शन रेट को आवश्यक पैमाना बनाने से होती है।

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