अशोक भाटिया (वरिष्ठ स्तंभकार)
हमारे देश में कुत्ते प्रेमियों की बड़ी संख्या है। ये कुत्ता प्रेमी अपने घरों में नहीं, बल्कि सड़कों पर कुत्तों की देखभाल करना चाहते हैं। चौक में आवारा कुत्तों को खाना खिलाना चाहते हैं। एक तरफ कुत्तों द्वारा किए गए उपद्रव की जिम्मेदारी नहीं लेने और दूसरी तरफ कुत्तों के खिलाफ कार्रवाई करने पर सड़कों पर प्रदर्शन करने, अदालत का दरवाजा खटखटाने को तैयार रहते है। रात में, अभिजात वर्ग अपने वाहनों में भोजन के साथ सड़कों पर आवारा कुत्तों की तलाश करता है। सरकार द्वारा सर्वोच्च न्यायालय में प्रस्तुत आंकड़ों के अनुसार, भारत में हर साल कुत्ते के काटने के 37 मामले होते हैं। एक लाख से अधिक घटनाएं होती हैं; रेबीज से 305 लोग मरते हैं। अकेले नसबंदी पर्याप्त नहीं है, अब मानव जीवन की रक्षा करना आवश्यक है। हालांकि 3।7 मिलियन का आंकड़ा प्रलेखित है, संख्या अधिक होने की संभावना है। ग्रामीण से शहरी क्षेत्रों तक कचरे के डिब्बे आवारा कुत्तों का घर बन गए हैं। संबंधित व्यक्ति न्यायालय में पंजीकरण कराने और प्रशासन को शुल्क का भुगतान करने में आनाकानी कर रहे हैं। अक्सर बचपन से ही कुछ ऐसे तत्व घर में कुत्ते पालते थे, बाद में उन्हीं कुत्तों को सड़क पर छोड़ दिया जाता है।
सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद कि दिल्ली में आवारा कुत्तों को आश्रय स्थलों में रखा जाए, के बाद अब मुंबई, ठाणे, कल्याण-डोंबिवली , पनवेल, उरण, नवी मुंबई, बदलापुर, अंबरनाथ, वसई-विरार के मुंबईकरों ने भी इसका विरोध शुरू कर दिया है। जब स्थानीय प्रशासन नसबंदी के लिए कुत्तों को पकड़ने का अभियान शुरू करता है, तो ये कुत्ता प्रेमी आवारा कुत्तों को छतों पर और सोसायटियों के परिसर में छिपा देते हैं। पिछले 15 वर्षों में, 12.73 लाख मुंबईकरों को आवारा कुत्तों ने और 1,35,253 मुंबईकरों को काटा है। 2014 की जनगणना के अनुसार, मुंबई में 95,174 आवारा कुत्ते थे। पिछले 11 सालों में मुंबई में आवारा कुत्तों की संख्या कुछ लाख तक पहुंच गई है। पिछले 22 सालों में मुंबई में 16.60 लाख आवारा कुत्तों की समस्या पैदा हुई है। हर साल बीएमसी इन आवारा कुत्तों की नसबंदी करती है। आवारा कुत्तों की समस्या के नियंत्रण से बाहर होने से पहले उसके समाधान की मांग की जा रही है। मुंबई में कई विधायकों ने न केवल निर्वाचन क्षेत्र में बल्कि शहर और उपनगरों में भी आवारा कुत्तों पर अंकुश लगाने के लिए बीएमसी के साथ हाथ मिलाया है। 2009 और 2024 के बीच, आवारा कुत्तों के नियंत्रण पर 24.03 करोड़ रुपये खर्च किए गए थे। आवारा कुत्तों की समस्या मुंबई के पास नवी मुंबई में भी है। दीघा, ऐरोली और घनसोली के साथ-साथ मिडक इलाकों और गांव में विभाजन से दहशत अधिक है। रात में नवी मुंबई में आवारा कुत्तों के गिरोह घूमते नजर आते हैं।
यूरोप के इस देश नीदरलैंड ने एक व्यापक वेलफेयर-फर्स्ट रणनीति अपनाई। पेट स्टोर से पालतू खरीदने पर भारी टैक्स लगाया गया ताकि लोग शेल्टर से गोद लेने को प्रोत्साहित हों। सरकार ने आवारा कुत्तों की मुफ्त नसबंदी और टीकाकरण किया जाता है। कड़े एंटी-क्रुएल्टी कानून और भारी जुर्माने लागू किए गए। साथ ही रेस्क्यू और कानून लागू करने के लिए समर्पित एनिमल वेलफेयर यूनिट बनाई गई। देशव्यापी गोद लेने के अभियान और पब्लिक अवेयरनेस से जिम्मेदार पेट ओनरशिप को बढ़ावा दिया गया।
मोरक्को में हर साल करीब 1 लाख लोग कुत्तों के काटने का शिकार होते हैं। 2019 में सरकार ने इसके लिए प्रोग्राम शुरू किया जिसमें आवारा कुत्तों की नसबंदी कर रेबीज का टीका लगाया जाता है, फिर उन्हें आईडी टैग के साथ उसी इलाके में छोड़ दिया जाता है ताकि लोग जान सकें कि वे सुरक्षित हैं।
आवारा कुत्तों की आबादी को नियंत्रित करने के लिए 100 मिलियन डॉलर का बजट घोषित किया गया । इसके तहत 130 कम्यूनल हाइजीन ऑफिस खोले गए, जिनमें 60 डॉक्टर, 260 नर्स, 260 हेल्थ टेक्नीशियन और 130 वेटरिनेरियन नियुक्त किए गए, ताकि 1244 नगरपालिकाओं में शेल्टर मैनेज किए जा सकें।
कंबोडिया ने बड़े पैमाने पर डॉग वैक्सीनेशन कैंपेन चलाया, जिसमें सिर्फ दो हफ्तों में 2।2 लाख कुत्तों को रेबीज के टीके लगाए गए। ये पहल बीमारी फैलने से पहले रोकथाम पर केंद्रित थी, न कि हमले के बाद कार्रवाई पर। भूटान ने 100% फ्री-रोमिंग डॉग पॉपुलेशन की नसबंदी कर दी। ये उपलब्धि हासिल करने वाला दुनिया का पहला देश बन गया। मार्च 2022 में शुरू हुआ यह प्रोजेक्ट अक्टूबर 2023 में पूरा हुआ, जिसकी लागत $3।55 मिलियन रही। तीन चरणों में चले इस अभियान में 12,812 लोग शामिल थे, जिनमें वेटरिनेरियन भी थे। 217 क्लीनिक से ऑपरेशन करते हुए कुल 61,680 कुत्तों की नसबंदी की गई, जिनमें से 91% आवारा थे।
तुर्की में कानून के तहत लाखों आवारा कुत्तों को हटाने, शेल्टर में रखने, टीकाकरण, नसबंदी और गोद लेने के लिए देने का प्रावधान है। सिर्फ बीमार या खतरनाक जानवरों को ही मारने की अनुमति है। पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में मार्च 2025 में कुत्तों के हमलों में बढ़ोतरी के बाद सिर्फ दो हफ्तों में 1,000 आवारा कुत्तों को मार दिया गया।विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, रेबीज हर साल 150 से ज्यादा देशों में करीब 59,000 लोगों की जान लेता है। इनमें ज्यादातर मौतें अफ्रीका और एशिया में होती हैं।
बहरहाल डॉग शेल्टर्स ना होने की स्थिति में दिल्ली, नोएडा, गाजियाबाद और गुरुग्राम में सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का पालन कैसे करेंगे? अगर नगर निगम के कर्मचारी आवारा कुत्तों को पकड़ भी लें, तो उन्हें रखेंगे कहां? अमेरिका और यूरोपीय देशों में जो लोग छुट्टियां मनाने जाते हैं, वो अक्सर कहते हैं कि वहां की सड़कें साफ हैं, और वहां पर आवारा जानवर खासतौर से आवारा कुत्ते नहीं दिखते। अमेरिका में आवारा कुत्तों की समस्या राज्य और स्थानीय स्तर पर निपटाई जाती है। यहां पर पालतू जानवर रखने के लिए लाइसेंस लेना पड़ता है और उनमें माइक्रोचिप लगाई जाती है। पालतू जानवर को आवारा छोड़ने वाले व्यक्ति पर जुर्माना भी लगाया जाता है। अमेरिका के कई राज्यों में आवारा कुत्तों की नसबंदी और शेल्टर को लेकर कानून बनाए गए हैं। वहां नियमित रूप से आवारा कुत्तों का रेबीज वैक्सीनेशन होता है।
जर्मनी में भी आपको सड़कों पर आवारा कुत्ते नजर नहीं आएंगे। यहां पर पालतू कुत्तों का रजिस्ट्रेशन होता है, उनमें माइक्रोचिप लगाई जाती है और इनका इंश्योरेंस भी होता है। यहां डॉग शेल्टर्स पर काफी पैसा खर्च किया जाता है और आम लोग इन्हीं डॉग शेल्टर्स से कुत्तों को गोद लेते हैं। रोमानिया में आवारा कुत्तों को पकड़कर, उनकी नसबंदी कर दी जाती है। इसके बाद उन्हें 14 दिनों तक डॉग शेल्टर में रखा जाता है और जब उन्हें कोई नहीं ले जाता तो उन्हें मार दिया जाता है।
देश ही नहीं विदेशों में भी समस्या हैं आवारा कुत्ते
