भाकपा(माले) असम पुलिस द्वारा द वायर के वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ वर्धराजन और करण थापर पर भारतीय न्याय संहिता की धारा 152 के तहत नए रूप में देशद्रोह जैसे आरोप थोपने की कड़ी निंदा करती है। भारत के दो सम्मानित पत्रकारों को निशाना बनाना भाजपा सरकार की सोची-समझी साजिश है, ताकि पत्रकारिता को अपराध घोषित किया जा सके और मीडिया को डराया-धमकाया जा सके। दोनों पत्रकारों को गुवाहाटी क्राइम ब्रांच में पेश होने का समन भेजा गया है, बिना यह बताए कि शिकायत क्या है और आरोप किस बात के हैं।
यह द वायर के खिलाफ सिर्फ दो महीनों के भीतर दर्ज दूसरी एफआईआर है। खास बात यह है कि 12 अगस्त 2025 को जिस दिन सुप्रीम कोर्ट ने द वायर की याचिका पर नोटिस जारी किया और असम पुलिस को “ज़बरदस्ती की कार्रवाई” से रोका, उसी दिन गुवाहाटी क्राइम ब्रांच ने नया देशद्रोह का समन भेज दिया। यह कार्रवाई न्यायपालिका की खुली अवहेलना और ढिठाई को दर्शाती है।
द वायर के पत्रकारों पर हमले दमन के एक भयावह पैटर्न की तरफ़ इशारा करते हैं, जिसमें असम को जनता के अधिकारों और लोकतांत्रिक मूल्यों पर सांप्रदायिक-कारपोरेट फासीवादी हमलों की प्रयोगशाला बनाया जा रहा है। यही समय है जब राज्य की भाजपा सरकार आदिवासियों और बंगला-भाषी प्रवासियों को बड़े पैमाने पर उनके घरों से बेदखल कर रही है, ज़मीनों को कॉरपोरेट्स और बड़े पूंजीपतियों को सौंप रही है, और इस विस्थापन को क्रूर पुलिस दमन से लागू कर रही है।
भाकपा(माले) द वायर के पत्रकारों के ख़िलाफ़ जारी समन को तुरंत वापस लेने की मांग करती है। साथ ही हम ज़ोर देकर कहते हैं कि भारतीय न्याय संहिता की धारा 152 औपनिवेशिक काल के देशद्रोह क़ानून का ही नया और खतरनाक रूप है, जिसे तुरंत ख़त्म किया जाना चाहिए।