राष्ट्र निर्माण में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सौ वर्ष

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Highlights
  • • 27 सितंबर 1925 को नागपुर में डॉ. हेडगेवार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की। • संघ की शाखा पद्धति ने समाज को संगठित करने और अनुशासन लाने का काम किया। • स्वतंत्रता संग्राम में संघ ने प्रत्यक्ष भाग न लेकर अनुशासित और राष्ट्रनिष्ठ समाज निर्माण पर जोर दिया। • विभाजन के दौरान राहत और पुनर्वास कार्य में संघ स्वयंसेवकों ने उल्लेखनीय योगदान दिया। • सेवा भारती, वनवासी कल्याण आश्रम, शिक्षा भारती जैसी संस्थाएं संघ की प्रेरणा से संचालित हैं। • विद्या भारती विद्यालयों में बच्चों को आधुनिक शिक्षा के साथ भारतीय जीवनदृष्टि और संस्कार दिए जाते हैं। • संघ ने महिला सशक्तिकरण के लिए राष्ट्र सेविका समिति और युवाओं में राष्ट्रभक्ति जागरूक करने की पहल की। • आपातकाल (1975-77) में लोकतंत्र की रक्षा में संघ की भूमिका उसकी राष्ट्रीय विश्वसनीयता का आधार बनी। • विदेशों में हिंदू स्वयंसेवक संघ और सेवा इंटरनेशनल के माध्यम से भारतीय संस्कृति का प्रसार। • 100 वर्षों में संघ ने संगठन, सेवा और संस्कार के जरिए आधुनिक भारत के निर्माण में गहरा प्रभाव डाला।


नवीन सिंह परमार
(विद्या भारती बिहार के मीडिया समन्वयक )
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की स्थापना 27 सितंबर 1925 को नागपुर में डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने इस दृष्टि से की थी कि भारत की स्वतंत्रता और पुनर्निर्माण का मूल आधार एक संगठित, आत्मविश्वासी और सांस्कृतिक चेतना से संपन्न समाज ही हो सकता है। उस समय भारत अंग्रेज़ी दासता से जूझ रहा था। समाज जातिगत भेदभाव, आपसी कलह, धर्मांधता और विदेशी मानसिकता से ग्रसित था। राजनीतिक स्तर पर स्वतंत्रता की मांग तो जोर पकड़ रही थी, परंतु समाज में आत्मबल, एकता और संगठन की कमी थी। ऐसे कठिन समय में संघ ने यह संकल्प लिया कि राजनीतिक सत्ता प्राप्त करने से पहले समाज को सशक्त, संगठित और संस्कारित बनाना आवश्यक है। यही विचार आगे चलकर आधुनिक भारत के निर्माण में उसकी सबसे बड़ी देन साबित हुआ।

संगठन के माध्यम से राष्ट्रनिर्माण
संघ की कार्यशैली का मूल तत्व समाज को संगठित करना है। शाखा पद्धति के माध्यम से हर उम्र और वर्ग के लोग प्रतिदिन एक साथ आते हैं, खेलकूद, व्यायाम, गीत, प्रार्थना और बौद्धिक चर्चा के माध्यम से शारीरिक, मानसिक और नैतिक विकास करते हैं। यहां जाति, धर्म, भाषा और क्षेत्र का कोई भेद नहीं होता। यह प्रयोग उस समय अत्यंत क्रांतिकारी था जब समाज कई सामाजिक कुरीतियों और विभाजनों से जूझ रहा था। संघ ने यह स्पष्ट कर दिया कि भारत की वास्तविक शक्ति उसकी विविधता में निहित एकता है और संगठित समाज ही स्वतंत्रता और प्रगति का आधार बन सकता है।
शाखाओं के माध्यम से तैयार हुए स्वयंसेवक केवल शाखा तक सीमित नहीं रहे। वे अपने-अपने क्षेत्र में समाज सेवा, शिक्षा, ग्राम विकास, पर्यावरण संरक्षण और सांस्कृतिक पुनर्जागरण के लिए कार्य करते रहे। इसने भारत में आत्मनिर्भर और जागरूक नागरिकों का एक विशाल वर्ग तैयार किया, जिसने स्वतंत्रता आंदोलन से लेकर आज तक राष्ट्र निर्माण के हर प्रयास में सक्रिय योगदान दिया।

स्वतंत्रता संग्राम में अप्रत्यक्ष योगदान
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर अक्सर यह प्रश्न उठता रहा कि उसने स्वतंत्रता संग्राम में प्रत्यक्ष भाग क्यों नहीं लिया। इसका उत्तर संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार के दृष्टिकोण में निहित है। उनका मानना था कि स्वतंत्रता केवल राजनीतिक सत्ता परिवर्तन नहीं, बल्कि समाज की मानसिक और सांस्कृतिक मुक्ति का नाम है। इसीलिए संघ ने प्रत्यक्ष राजनीतिक आंदोलनों की बजाय समाज जागरण, अनुशासन और राष्ट्रभावना निर्माण को प्राथमिकता दी। संघ की शाखाओं में तैयार हुए अनुशासित और राष्ट्रनिष्ठ युवाओं ने विभिन्न स्वतंत्रता आंदोलनों में सक्रिय भागीदारी निभाई, चाहे वह व्यक्तिगत रूप से हो या अन्य संगठनों के माध्यम से। कई स्वयंसेवकों ने भूमिगत क्रांतिकारी गतिविधियों में भी योगदान दिया।

विभाजन काल और आपदा प्रबंधन
1947 में देश के विभाजन ने भारत के सामाजिक ताने-बाने को झकझोर दिया। लाखों लोग विस्थापित हुए, दंगे और हत्याएं हुईं। इस कठिन समय में संघ के स्वयंसेवकों ने राहत और पुनर्वास कार्यों में उल्लेखनीय योगदान दिया। शरणार्थियों को भोजन, वस्त्र और आश्रय उपलब्ध कराना, दंगा पीड़ितों की रक्षा करना और पुनर्वास शिविरों का संचालन करना संघ की सेवा भावना का उदाहरण बना। दिल्ली, पंजाब, बंगाल और अन्य क्षेत्रों में संघ के कार्यकर्ताओं ने बिना किसी प्रचार के दिन-रात सेवा कार्य किए। यह अनुभव आगे चलकर संघ की सेवा परियोजनाओं का आधार बना।

सामाजिक सेवा और विकास कार्य
आज़ादी के बाद से संघ ने सेवा कार्यों का एक विस्तृत नेटवर्क खड़ा किया। भारत विकास परिषद्,सेवा भारती, वनवासी कल्याण आश्रम, ग्राम विकास योजनाएं, एकल विद्यालय, शिक्षा भारती, आरोग्य सेवा, प्राकृतिक आपदाओं में राहत कार्य—ये सभी संघ की प्रेरणा से चलने वाली परियोजनाएं हैं। आज देश के सबसे दूरस्थ क्षेत्रों में भी संघ के स्वयंसेवक शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और सामाजिक जागरूकता के लिए काम कर रहे हैं। उत्तर-पूर्व, जम्मू-कश्मीर, छत्तीसगढ़ और अंडमान-निकोबार जैसे संवेदनशील इलाकों में संघ के कार्यकर्ताओं ने न केवल बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराईं, बल्कि स्थानीय लोगों में आत्मविश्वास और राष्ट्रभावना को भी मजबूत किया।
संघ का मानना है कि भारत का उत्थान तभी संभव है जब अंतिम व्यक्ति तक विकास की रोशनी पहुंचे। इसी दृष्टि से ग्राम विकास, जल संरक्षण, जैविक खेती, गौ संरक्षण और स्वदेशी उद्योगों को प्रोत्साहन देने जैसी परियोजनाएं चलाई जा रही हैं। यह आधुनिक भारत के लिए सतत और समावेशी विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।

शिक्षा और सांस्कृतिक जागरण
संघ ने शिक्षा को राष्ट्र निर्माण का सबसे महत्वपूर्ण साधन माना। विद्या भारती विद्यालयों सरस्वती शिशु मंदिर व सरस्वती विद्या मंदिर के माध्यम से लाखों बच्चों को भारतीय जीवनदृष्टि पर आधारित आधुनिक शिक्षा दी जा रही है। यहां विज्ञान और तकनीक के साथ-साथ नैतिकता, चरित्र निर्माण और देशभक्ति पर भी जोर दिया जाता है। भारतीय भाषाओं, योग, आयुर्वेद, कला और संस्कृति को बढ़ावा देकर संघ ने शिक्षा को केवल रोजगार का साधन न बनाकर राष्ट्र निर्माण का उपकरण बनाया।
सांस्कृतिक पुनर्जागरण संघ की कार्यशैली का दूसरा बड़ा आयाम है। वेद, उपनिषद, गीता, महाकाव्य और संत परंपरा से प्रेरणा लेकर संघ ने भारतीय संस्कृति को केवल अतीत का गौरव नहीं, बल्कि वर्तमान की दिशा और भविष्य की संभावना के रूप में प्रस्तुत किया। पारिवारिक मूल्यों का संरक्षण, त्योहारों का सामूहिक उत्सव, लोक कला और लोक भाषा का सम्मान—ये सभी पहल आधुनिक भारत को अपनी जड़ों से जोड़े रखने का प्रयास हैं।

राजनीति में वैचारिक योगदान
यद्यपि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ स्वयं को एक सांस्कृतिक संगठन मानता है और प्रत्यक्ष राजनीति से दूर रहता है, लेकिन उसका प्रभाव भारतीय राजनीति में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। 1951 में स्थापित भारतीय जनसंघ और बाद में भारतीय जनता पार्टी को संघ ने वैचारिक आधार और कार्यकर्ता शक्ति प्रदान की। आज भारतीय राजनीति में राष्ट्रवाद, सांस्कृतिक गौरव, स्वदेशी अर्थव्यवस्था और समग्र विकास जैसे मुद्दे मुख्यधारा में हैं, जिनकी प्रेरणा संघ की विचारधारा से मिलती है। आपातकाल (1975-77) के समय संघ के स्वयंसेवकों ने लोकतंत्र की रक्षा में जो भूमिका निभाई, उसने उसकी राष्ट्रीय विश्वसनीयता को और मजबूत किया।

महिला सशक्तिकरण और युवाओं में जागरूकता
संघ ने केवल पुरुषों तक ही अपना कार्य सीमित नहीं रखा। राष्ट्र सेविका समिति, मातृशक्ति संगठनों और विभिन्न सेवा परियोजनाओं के माध्यम से महिलाओं को समाज निर्माण में सक्रिय भागीदारी का अवसर दिया। युवाओं में अनुशासन, राष्ट्रभक्ति और आत्मनिर्भरता की भावना जगाने के लिए संघ निरंतर कार्य करता रहा है। आज लाखों युवा स्वयंसेवक ग्रामीण क्षेत्रों से लेकर शहरी बस्तियों तक सेवा कार्यों में लगे हुए हैं।

वैश्विक दृष्टि और भारतीयता का प्रसार
पिछले सौ वर्षों में संघ का कार्यक्षेत्र केवल भारत तक सीमित नहीं रहा। अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, अफ्रीका और एशिया के कई देशों में संघ की शाखाएं भारतीय प्रवासियों को सांस्कृतिक आधार और समाज सेवा के लिए प्रेरित कर रही हैं। हिंदू स्वयंसेवक संघ, सेवा इंटरनेशनल और विभिन्न सांस्कृतिक मंचों के माध्यम से भारतीय संस्कृति, योग, वेदांत और परिवार मूल्यों का संदेश विश्व तक पहुंच रहा है। यह प्रयास भारत को एक सांस्कृतिक महाशक्ति के रूप में स्थापित करने में सहायक है।

आधुनिक भारत का सशक्त स्तंभ
सौ वर्षों की यात्रा में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने यह सिद्ध कर दिया है कि राष्ट्र का उत्थान केवल सरकारों या योजनाओं से नहीं, बल्कि जागरूक और संगठित समाज की सामूहिक शक्ति से संभव है। संघ ने संगठन, सेवा, शिक्षा, संस्कृति और आत्मनिर्भरता के माध्यम से आधुनिक भारत को गहराई से प्रभावित किया है। आज जब भारत वैश्विक मंच पर आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ रहा है, उसकी सांस्कृतिक पहचान मजबूत हो रही है और समाज में स्वदेशी चेतना का पुनर्जागरण दिख रहा है, तो इसके पीछे संघ की सतत साधना और समर्पण को नकारा नहीं जा सकता।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का योगदान केवल इतिहास का विषय नहीं, बल्कि भविष्य की प्रेरणा भी है। सेवा, संगठन और संस्कार की जिस परंपरा को संघ ने सौ वर्षों में विकसित किया है, वही आधुनिक भारत को आत्मनिर्भर, सशक्त और सांस्कृतिक रूप से जागरूक बनाने का आधार है। संघ ने यह संदेश दिया है कि राष्ट्रनिर्माण केवल राजनीतिक स्वतंत्रता से नहीं, बल्कि समाज की आत्मिक जागृति, सांस्कृतिक पुनर्जागरण और संगठित प्रयासों से ही संभव है। यही दृष्टि आधुनिक भारत के निर्माण में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सबसे बड़ी देन है।

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