कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व गृह मंत्री पी. चिदंबरम ने एक बार फिर ऐसा बयान दे दिया है जिसने पार्टी नेतृत्व को मुश्किल में डाल दिया है।
पहले 26/11 मुंबई आतंकी हमलों को लेकर उनका खुलासा और अब ऑपरेशन ब्लू स्टार को “गलत रास्ता” बताने वाला बयान — दोनों ने कांग्रेस के भीतर राजनीतिक असहजता पैदा कर दी है।
सवाल यह उठता है कि क्या चिदंबरम सचमुच पार्टी के भीतर बौद्धिक ईमानदारी दिखा रहे हैं या फिर यह किसी राजनीतिक रणनीति का हिस्सा है?
ऑपरेशन ब्लू स्टार पर चिदंबरम का बयान — कांग्रेस की ऐतिहासिक सोच पर चोट

चिदंबरम का कहना है कि 1984 में स्वर्ण मंदिर पर सेना की कार्रवाई गलत तरीका था और इंदिरा गांधी ने इसकी “कीमत अपने जीवन से चुकाई।”
उन्होंने इसे केवल प्रधानमंत्री नहीं बल्कि सेना, पुलिस, खुफिया एजेंसियों और सिविल प्रशासन की सामूहिक विफलता बताया।
यह बयान सीधे-सीधे कांग्रेस की उस ऐतिहासिक लाइन को चुनौती देता है जिसके तहत पार्टी ब्लू स्टार को राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए आवश्यक कदम मानती रही है।
इंदिरा गांधी के कार्यकाल में जब पंजाब में चरमपंथ बढ़ा, तो यह ऑपरेशन राष्ट्रीय अखंडता की रक्षा का प्रतीक माना गया था।
लेकिन चिदंबरम का “गलत रास्ता” कहना पार्टी की नैतिक स्थिति को कमजोर कर देता है और राजनीतिक विरोधियों को नया हमला करने का अवसर देता है।
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26/11 खुलासा — कांग्रेस पर विदेशी दबाव का आरोप दोहराया गया
यह पहला अवसर नहीं जब चिदंबरम ने पार्टी के लिए असुविधा खड़ी की हो।
हाल ही में उन्होंने कहा था कि 26/11 मुंबई हमलों के बाद भारत ने अमेरिका के दबाव में आकर पाकिस्तान पर सैन्य कार्रवाई नहीं की।
उन्होंने कोंडोलीज़ा राइस की सलाह का भी उल्लेख किया जिसमें भारत को संयम बरतने को कहा गया था।
इस बयान ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा को कांग्रेस पर यह कहने का मौका दिया कि “कांग्रेस विदेशी दबाव में झुकती रही है।”
इसके बाद कांग्रेस प्रवक्ताओं को बार-बार सफाई देनी पड़ी कि ये चिदंबरम के “व्यक्तिगत विचार” हैं।
राजनीतिक प्रभाव — आत्ममंथन या आत्मघात?
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, चिदंबरम के ये बयान कांग्रेस के लिए दोहरे खतरे की तरह हैं।
पहला, विपक्ष को यह कहने का मौका मिल गया कि कांग्रेस के भीतर भी असहमति है।
दूसरा, इससे संवेदनशील समुदायों के बीच भ्रम की स्थिति पैदा हो रही है, विशेषकर पंजाब में सिख भावनाएँ।
हालांकि, लोकतंत्र में वरिष्ठ नेता को अपनी राय रखने का अधिकार है, लेकिन राजनीति में समय और सन्दर्भ का भी महत्व होता है।
जब कांग्रेस पहले से चुनावी दबाव और नेतृत्व संकट में है, तब ऐसे बयान आत्ममंथन से ज्यादा आत्मघात साबित हो सकते हैं।
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कांग्रेस के लिए सबक — ईमानदारी जरूरी, लेकिन अनुशासन अनिवार्य
चिदंबरम एक अनुभवी नेता हैं, और उनके विचार अकादमिक दृष्टि से मूल्यवान हो सकते हैं,
पर राजनीति में “सत्य” सिर्फ तथ्य नहीं, बल्कि प्रभाव भी होता है।
इस बार प्रभाव साफ दिख रहा है — कांग्रेस असहज है, विपक्ष उत्साहित है,
और इतिहास फिर से राजनीतिक बहस के केंद्र में है।
पार्टी नेतृत्व को अब यह तय करना होगा कि क्या वह इतिहास से मुठभेड़ करने का साहस रखेगी या हर असुविधाजनक बयान को “व्यक्तिगत राय” कहकर टाल देगी।
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